
गरमी के मौसम में पैदा होने वाले फलों में तरबूज सर्वश्रेष्ठ फल है क्योंकि वह स्वादिष्ट, शीतल तथा स्वास्थ्यवर्धक ही नहीं बल्कि इतना सस्ता भी होता है कि इसे गरीब से गरीब आदमी भी खा सकता है। गरमी के झुलसाने वाले मौसम में अपनी शीतलता से तन-मन को ठंडक पहुंचाने वाला यह फल रेगिस्तानी क्षेत्रों में तो बहुत ही प्रतिष्ठित माना जाता है।
इसे जो खाता है, उसे यह लू से तो बचाता ही है, साथ ही यह उसके शरीर में पानी की कमी भी नहीं होने देता। सचमुच यह फल हमारे लिए वरदान ही है जिसके कारण गरमी जैसे आग बरसाने वाले मौसम में भी तरबूज जैसा शीतल और मधुर फल पैदा होता है।
पूरी तरह पके हुए इस फल में 76 प्रतिशत खाने योग्य गूदा, प्रति किलोग्राम तरबूज में लगभग 40 ग्राम लाल अथवा काले रंग के बीज तथा 24 प्रतिशत न खाने योग्य छिलका होता है। यह छिलका मनुष्य के खाने योग्य तो नहीं होता किंतु यह दुधारू पशुओं हेतु अति पौष्टिक आहार है। इसे उन्हें यदि नियमित खिलाया जाए तो उनकी दूध देने की क्षमता और भी बढ़ जाती है।
शीघ्र पाचक शर्करा से युक्त क्षार प्रधान इस फल में जो 76 प्रतिशत खाने योग्य गूदा होता है, वह जितना शीतल तथा मधुर होता है उतना ही स्वास्थ्यवर्धक भी क्योंकि उसमें 96 प्रतिशत जल, 3ण्2 प्रतिशत कार्बोहाईटेªट, 0.3 प्रतिशत प्रोटीन 0,2 प्रतिशत खनिज लवण तथा 0.2 प्रतिशत वसा भी होता है। इन तत्वों के अलावा इसमें प्रति 100 ग्राम गूदे में 11 मिली ग्राम फास्फोरस, 8 मिलीग्राम लौह तथा 12 मिलीग्राम कैल्शियम तो होता ही है, साथ ही उसमें अति अल्प मात्रा में विटामिन-सी तथा पोटेशियम लवण भी होता है।
तरबूज का 100 ग्राम गूदा हमारे शरीर के लिए 37 कैलोरी ऊर्जा देता है जबकि यदि हम तरबूज के बीजों की 100 ग्राम गिरी खा लें तो हमें 512 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त हो जाएगी। हालांकि बीजों की तुलना में गूदा ज्यादा स्वादिष्ट होता है लेकिन गूदे की अपेक्षा बीज कुछ ज्यादा ही पौष्टिक होते हैं। इसके बीजों में 50 प्रतिशत वसा, 34 प्रतिशत प्रोटीन, तथा 4 प्रतिशत जल होता है। इसके अलावा प्रति 100 ग्राम बीज में 100 मिलीग्राम कैल्शियम, 937 मिलीग्राम फास्फोरस तथा 3 मिलीग्राम लौह होता है। यही कारण है कि ठंडे शर्बतों के निर्माण एवं विभिन्न प्रकार की मिठाइयों की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए उनमें तरबूज के बीज भी डाले जाते हैं।
पौष्टिकता का पर्याय बन गए तरबूज की दो प्रमुख किस्में होती हैं। उसकी किस्म की पहचान इसके अन्दर पाए जाने वाले बीजों के आधार पर ही होती है। एक किस्म के तरबूज के बीज लाल तथा दूसरे के बीज काले होते हैं। यह ककड़ी, खीरा और खरबूजा की तरह ही कुकुर्विटेशी कुल का फल है।
इतने सस्ते किन्तु स्वादिष्ट फल तरबूज के इतने ज्यादा प्रतिष्ठित होने का एक कारण और यह है कि यह कई छोटी-मोटी नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी बीमारियों में औषधि का काम भी करता है जैसे, 50 ग्राम तरबूज का रस मिश्री मिलाकर डे़ढ माह तक प्रातः काल खाली पेट पीने से मूत्राशय से संबंधित विभिन्न रोग, सुजाक, टायफायड, उच्च अम्लता तथा हाई ब्लड प्रेशर जैसी जटिल बीमारियों से भी छुटकारा तो दिलाता ही है, साथ ही यह रोग निरोधक क्षमता तथा आंखों की रोशनी बढ़ाने वाला भी साबित होता है।
तरबूज का रस दिमाग को भी ताकत देता है। इस कारण यह हिस्टीरिया, दिमाग की गरमी और अनिद्रा ही नहीं बल्कि पागलपन में भी लाभदायक होता है। इतना ही नहीं, इसका रस रक्त विकारनाशक तथा रक्त वर्धक भी है, इस कारण इसका सेवन करने से पीलिया तथा विभिन्न चर्म रोगों से भी छुटकारा मिल जाता है।
तरबूज के रस के साथ ही साथ इसके बीज भी औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। जहां एक ओर तरबूज के बीजों की गिरी लगभग एक सप्ताह तक प्रतिदिन तीन बार खाई जाए तो उससे बंद मासिक धर्म चालू हो जाता है वहीं दूसरी ओर तरबूज की गिरी को पानी के साथ बारीक पीस कर तैयार किया गया लेप, यदि बीस दिन तक सुबह-शाम सिर पर लगाया जाए तो पुराने से पुराना सिरदर्द भी ठीक हो जाता है। इसके अलावा पानी के साथ महीन पिसी तरबूज के बीजों की लुग्दी को घी में भूनकर तथा उसमें मिश्री मिलाकर लगभग दो सप्ताह तक दिन में तीन बार खाने से थूक के साथ खून आने की बीमारी भी ठीक हो जाती है।
हालांकि तरबूज पौष्टिक तथा स्वादिष्ट फल तो है, लेकिन इसको न तो ज्यादा मात्रा में खाना चाहिए और न ही भोजन करने से पहले अर्थात खाली पेट, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में यह पाचन तन्त्रा पर कुप्रभाव डालता है जिस कारण हमें भूख तो कम लगती ही है, साथ ही हमारा शरीर भी शिथिल हो जाता है। इसके खाने के तुरन्त बाद पानी पीना भी अनुचित है क्योंकि इससे जुकाम हो जाने की संभावना तीव्र हो जाती है। इसके अलावा दमे के मरीजों को तो तरबूज का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके सेवन से कफ और बलगम की वृद्धि होती है।
उक्त परिस्थितियों में तरबूज हमारी सेहत के लिए हानिकारक तो है किन्तु इससे हमें लाभ की तुलना में हानि बहुत ही कम है। तरबूज को निश्चित रूप से मानवता को प्रकृति द्वारा दिया गया उपहार नहीं बल्कि वरदान ही मानना चाहिए।
इसे जो खाता है, उसे यह लू से तो बचाता ही है, साथ ही यह उसके शरीर में पानी की कमी भी नहीं होने देता। सचमुच यह फल हमारे लिए वरदान ही है जिसके कारण गरमी जैसे आग बरसाने वाले मौसम में भी तरबूज जैसा शीतल और मधुर फल पैदा होता है।
पूरी तरह पके हुए इस फल में 76 प्रतिशत खाने योग्य गूदा, प्रति किलोग्राम तरबूज में लगभग 40 ग्राम लाल अथवा काले रंग के बीज तथा 24 प्रतिशत न खाने योग्य छिलका होता है। यह छिलका मनुष्य के खाने योग्य तो नहीं होता किंतु यह दुधारू पशुओं हेतु अति पौष्टिक आहार है। इसे उन्हें यदि नियमित खिलाया जाए तो उनकी दूध देने की क्षमता और भी बढ़ जाती है।
शीघ्र पाचक शर्करा से युक्त क्षार प्रधान इस फल में जो 76 प्रतिशत खाने योग्य गूदा होता है, वह जितना शीतल तथा मधुर होता है उतना ही स्वास्थ्यवर्धक भी क्योंकि उसमें 96 प्रतिशत जल, 3ण्2 प्रतिशत कार्बोहाईटेªट, 0.3 प्रतिशत प्रोटीन 0,2 प्रतिशत खनिज लवण तथा 0.2 प्रतिशत वसा भी होता है। इन तत्वों के अलावा इसमें प्रति 100 ग्राम गूदे में 11 मिली ग्राम फास्फोरस, 8 मिलीग्राम लौह तथा 12 मिलीग्राम कैल्शियम तो होता ही है, साथ ही उसमें अति अल्प मात्रा में विटामिन-सी तथा पोटेशियम लवण भी होता है।
तरबूज का 100 ग्राम गूदा हमारे शरीर के लिए 37 कैलोरी ऊर्जा देता है जबकि यदि हम तरबूज के बीजों की 100 ग्राम गिरी खा लें तो हमें 512 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त हो जाएगी। हालांकि बीजों की तुलना में गूदा ज्यादा स्वादिष्ट होता है लेकिन गूदे की अपेक्षा बीज कुछ ज्यादा ही पौष्टिक होते हैं। इसके बीजों में 50 प्रतिशत वसा, 34 प्रतिशत प्रोटीन, तथा 4 प्रतिशत जल होता है। इसके अलावा प्रति 100 ग्राम बीज में 100 मिलीग्राम कैल्शियम, 937 मिलीग्राम फास्फोरस तथा 3 मिलीग्राम लौह होता है। यही कारण है कि ठंडे शर्बतों के निर्माण एवं विभिन्न प्रकार की मिठाइयों की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए उनमें तरबूज के बीज भी डाले जाते हैं।
पौष्टिकता का पर्याय बन गए तरबूज की दो प्रमुख किस्में होती हैं। उसकी किस्म की पहचान इसके अन्दर पाए जाने वाले बीजों के आधार पर ही होती है। एक किस्म के तरबूज के बीज लाल तथा दूसरे के बीज काले होते हैं। यह ककड़ी, खीरा और खरबूजा की तरह ही कुकुर्विटेशी कुल का फल है।
इतने सस्ते किन्तु स्वादिष्ट फल तरबूज के इतने ज्यादा प्रतिष्ठित होने का एक कारण और यह है कि यह कई छोटी-मोटी नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी बीमारियों में औषधि का काम भी करता है जैसे, 50 ग्राम तरबूज का रस मिश्री मिलाकर डे़ढ माह तक प्रातः काल खाली पेट पीने से मूत्राशय से संबंधित विभिन्न रोग, सुजाक, टायफायड, उच्च अम्लता तथा हाई ब्लड प्रेशर जैसी जटिल बीमारियों से भी छुटकारा तो दिलाता ही है, साथ ही यह रोग निरोधक क्षमता तथा आंखों की रोशनी बढ़ाने वाला भी साबित होता है।
तरबूज का रस दिमाग को भी ताकत देता है। इस कारण यह हिस्टीरिया, दिमाग की गरमी और अनिद्रा ही नहीं बल्कि पागलपन में भी लाभदायक होता है। इतना ही नहीं, इसका रस रक्त विकारनाशक तथा रक्त वर्धक भी है, इस कारण इसका सेवन करने से पीलिया तथा विभिन्न चर्म रोगों से भी छुटकारा मिल जाता है।
तरबूज के रस के साथ ही साथ इसके बीज भी औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। जहां एक ओर तरबूज के बीजों की गिरी लगभग एक सप्ताह तक प्रतिदिन तीन बार खाई जाए तो उससे बंद मासिक धर्म चालू हो जाता है वहीं दूसरी ओर तरबूज की गिरी को पानी के साथ बारीक पीस कर तैयार किया गया लेप, यदि बीस दिन तक सुबह-शाम सिर पर लगाया जाए तो पुराने से पुराना सिरदर्द भी ठीक हो जाता है। इसके अलावा पानी के साथ महीन पिसी तरबूज के बीजों की लुग्दी को घी में भूनकर तथा उसमें मिश्री मिलाकर लगभग दो सप्ताह तक दिन में तीन बार खाने से थूक के साथ खून आने की बीमारी भी ठीक हो जाती है।
हालांकि तरबूज पौष्टिक तथा स्वादिष्ट फल तो है, लेकिन इसको न तो ज्यादा मात्रा में खाना चाहिए और न ही भोजन करने से पहले अर्थात खाली पेट, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में यह पाचन तन्त्रा पर कुप्रभाव डालता है जिस कारण हमें भूख तो कम लगती ही है, साथ ही हमारा शरीर भी शिथिल हो जाता है। इसके खाने के तुरन्त बाद पानी पीना भी अनुचित है क्योंकि इससे जुकाम हो जाने की संभावना तीव्र हो जाती है। इसके अलावा दमे के मरीजों को तो तरबूज का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके सेवन से कफ और बलगम की वृद्धि होती है।
उक्त परिस्थितियों में तरबूज हमारी सेहत के लिए हानिकारक तो है किन्तु इससे हमें लाभ की तुलना में हानि बहुत ही कम है। तरबूज को निश्चित रूप से मानवता को प्रकृति द्वारा दिया गया उपहार नहीं बल्कि वरदान ही मानना चाहिए।