कॉलेजियम प्रणाली को बदलने, कुछ बेहतर लाने का समय आ गया है: पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार
Focus News 6 April 2025 0
नयी दिल्ली, छह अप्रैल (भाषा) पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने रविवार को कहा कि न्यायिक नियुक्तियों की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को बदलने का समय आ गया है और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वैकल्पिक तंत्र के पक्ष में ‘‘जनता की राय मजबूती से’’ आगे बढ़ रही है।
उन्होंने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों पर लगे आरोपों सहित न्यायपालिका को प्रभावित करने वाले मुद्दों के समाधान के लिए एक मजबूत आंतरिक तंत्र स्थापित करने का भी आह्वान किया।
पूर्व केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री ने पीटीआई-भाषा के साथ एक विशेष साक्षात्कार में न्यायपालिका के भीतर की समस्याओं को दूर करने के लिए तंत्र, न्यायिक नियुक्तियां और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) तथा संसद द्वारा पारित कानूनों को अदालतों में लगातार चुनौती दिए जाने जैसे कई विवादास्पद मुद्दों पर विस्तार से बात की।
कुमार ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘एनजेएसी के लिए समय 2014-15 में सही था, जब इसे पहली बार प्रस्तावित किया गया था और मतदान के लिए रखा गया था। आज यह निश्चित रूप से सही समय है। और अब, मैं आश्वस्त हूं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वैकल्पिक तंत्र के पक्ष में जनमत की प्रक्रिया मजबूती से आगे बढ़ रही है। यह प्रस्तावित एनजेएसी की तर्ज पर हो सकता है, यह कुछ बेहतर भी हो सकता है।’’
संप्रग शासन के दौरान कानून मंत्री के रूप में कुमार के कार्यकाल के दौरान एनजेएसी विधेयक का मसौदा तैयार किया गया था, लेकिन बाद में राजग के सत्ता में आने के बाद इसे संशोधित रूप में पारित किया गया, लेकिन अक्टूबर 2015 में उच्चतम न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया।
यह पूछे जाने पर कि उन्हें क्यों ऐसा लगता है कि एनजेएसी को लाने का समय आ गया है, कुमार ने कहा कि उन्हें उस निर्णय की वैधता पर गंभीर आपत्ति है जिसके तहत एनजेएसी को असंवैधानिक करार देकर रद्द कर दिया गया, जबकि इसमें ‘‘संसद की सर्वोच्च इच्छा और बहुमत’’ था।
वक्फ संशोधन अधिनियम सहित संसद द्वारा पारित विवादास्पद कानूनों को अदालतों में लगातार चुनौती दिए जाने के बारे में कुमार ने कहा कि यह उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जिसका राष्ट्र और इसकी राजनीतिक तथा न्यायिक प्रक्रियाओं को निकट भविष्य में समाधान करना होगा। उन्होंने कहा कि राजनीतिक महत्व और राजनीतिक प्रभाव वाले लगभग हर बड़े सवाल को किसी न किसी तरह उच्चतम न्यायालय के पास भेज दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने स्वयं बार-बार कहा है कि राजनीतिक पचड़े में पड़ना न्यायिक कार्य का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि जो प्रश्न मूलतः राजनीतिक हैं, उनका निर्णय अंततः जनता की अदालत में किया जाना है।
कुमार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास से नकदी बरामद होने की घटना को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ करार दिया और कहा कि उच्चतम न्यायालय को अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं को अधिक न्यायसंगत और संतुलित बनाना चाहिए ताकि न्यायाधीशों को तुच्छ आरोपों से बचाया जा सके और एक प्रभावी निवारण तंत्र प्रदान किया जा सके।
इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि यह कहना उचित होगा कि इस घटना का इस्तेमाल सरकार न्यायिक नियुक्तियों की शक्ति हथियाने के लिए कर रही है।’’
उन्होंने कहा कि इस घटना ने न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर बहस छेड़ दी है।
कुमार ने कहा कि नकदी बरामदगी मामले ने न्यायपालिका की संस्थागत निष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है और जांच के शुरुआती चरण में ही न्यायाधीश की ‘‘निंदा की जा रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह बिलकुल सच है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने न्यायपालिका की संस्थागत शुचिता पर गहरा प्रभाव डाला है, लेकिन इसने संवैधानिक न्यायशास्त्र के कई मौलिक सिद्धांतों को भी जन्म दिया है।’’
कुमार ने कहा कि इस विशेष मामले में, जब जांच प्रक्रिया के प्रारंभिक चरण चल रहे हैं, तब भी न्यायाधीश को मीडिया में आलोचना का सामना करना पड़ रहा है तथा उनकी निंदा की जा रही है, तथा उन्हें इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया है और उनसे काम वापस ले लिया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि उच्चतम न्यायालय अपनी आंतरिक प्रक्रिया की समीक्षा करे, ताकि इसे और अधिक न्यायसंगत, संतुलित बनाया जा सके तथा इसका उद्देश्य पूरा हो सके, जो न्यायाधीशों को तुच्छ आरोपों से बचाने और साथ ही न्यायपालिका के बीमार मुद्दों को हल करने के लिए एक प्रभावी निवारण तंत्र प्रदान करना है।’’