नारे, गीत और एकजुटता: चुनाव से पहले जेएनयू में ‘प्रेसीडेंशियल डिबेट’ ने माहौल गर्म किया

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नयी दिल्ली, 24 अप्रैल (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में जेएनयू छात्र संघ चुनाव में ‘प्रेसीडेंशियल डिबेट’ के दौरान छात्रों ने ढोल बजाए, नारे लगाए और झंडे फहराए, जिससे माहौल जोश से भर गया। यह एक ऐसा नजारा था जिसमें छात्र राजनीति और उनकी जोशीली सक्रियता का मिला-जुला रूप साफ साफ नजर आ रहा था।

इस दौरान, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के ‘‘कश्मीर हमारा है’’ और ‘‘हिंदू जीवन मायने रखता है’’ के नारे से लेकर ‘‘आजादी’’ के नारे गूंजे, जबकि ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने एकजुटता में फलस्तीनी झंडा दिखाया। इन दृश्यों ने छात्र राजनीति के इस अखाड़े को भारत के राजनीतिक रूप से सर्वाधिक जागरूक परिसर की एक छोटी संसद में बदल दिया।

आयोजन स्थल का हर इंच एक कहानी बयां कर रहा था। हाथ से लिखे पोस्टरों पर जवाब मांगा जा रहा था। एक छात्र ने पूछा, ‘‘हमारा छात्रावास कहां है?’’ कुछ पर जवाहरलाल नेहरू की फीकी लेकिन दृढ़ तस्वीरें लगी हुई थीं, जो विश्वविद्यालय की जड़ों की याद दिलाते हुए भीड़ से झांक रही थीं।

चुनाव समिति को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ा क्योंकि ढपली, ढोल और जयकारों के तेज स्वर माइक्रोफोन की आवाज को दबा दे रहे थे।

बहस बुधवार रात 11:30 बजे शुरू हुई और बृहस्पतिवार तड़के तक चली तथा सुबह चार बजे समाप्त हुई। सभी 13 उम्मीदवारों को अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए 10-10 मिनट का समय दिया गया, जिससे परिसर वैचारिक टकराव और राजनीतिक अभिव्यक्ति के एक आवेशपूर्ण क्षेत्र में बदल गया।

भाषण शुरू होने से पहले जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हाल में हुए आतंकवादी हमले में मारे गए 26 लोगों की याद में दो मिनट का मौन रखा गया। इस गमगीन पल ने रात के तनावपूर्ण माहौल को कुछ देर के लिए जरूर शांत कर दिया।

एबीवीपी की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार शिखा स्वराज ने हाल में हुए पहलगाम आतंकवादी हमले का जिक्र करते हुए भीड़ में जोश भर दिया।

उन्होंने पूछा, ‘‘जो लोग कहते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता…., क्या मारे जाने से पहले पीड़ितों से उनका धर्म नहीं पूछा गया था?’’

स्वराज ने कहा, ‘‘वामपंथियों ने जेएनयू को विफल कर दिया है। अब समय आ गया है कि एबीवीपी दिखाए कि छात्र अधिकारों के लिए सही मायने में कैसे लड़ा जाए।’’

स्वराज ने कहा, ‘‘अंधेरा है, रात है, यह लाल अंधेरा छटेगा और इस जेएनयू परिसर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का सूरज उगेगा।’’

आइसा के नीतीश कुमार ने कथित चुनाव धांधली का तीखा खंडन किया।

कुमार ने कहा, ‘‘यह चंडीगढ़ में होने वाला कोई महापौर का चुनाव नहीं है, जिसमें धांधली हो। यह जेएनयू है!’’

इसके बाद उन्होंने फैज अहमद फैज की मशहूर शायरी सुनाई, ‘‘चली है रस्म की कोई न सर उठाके चले। जो कोई चाहने वाला तवाफ को निकले नजर चुरा के चले जिस्म-ओ-जां बचे के चले।’’

नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के प्रदीप ढाका ने अपने भाषण में गौतम अदाणी से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, पंजाब के किसानों से लेकर संविधान तक का जिक्र किया।

उन्होंने जोशीले स्वर में कहा, ‘‘इस देश को संविधान चलाएगा, कोई संगठन नहीं।’’

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एआईडीएसओ) के सुमन ने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक संसाधनों की एक ज्वलंत तस्वीर पेश की।

उन्होंने कहा, ‘‘लाइब्रेरी में कोई जर्नल नहीं है। कोई फंड नहीं है। हमें एचईएफए (हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी) से कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। हमें भगत सिंह और सुभाष जैसी राजनीति करने की जरूरत है।’’

निर्दलीय उम्मीदवारों ने खामोशी से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई तथा वाम और दक्षिणपंथी दोनों पर बड़े वैचारिक संघर्ष के पक्ष में छात्रों की वास्तविक चिंताओं की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।

इस बार के चुनाव में आइसा ने डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) के साथ गठबंधन किया है, जबकि स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), बिरसा आंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बाप्सा), एआईएसएफ और पीएसए ने एक अलग गुट बनाया है।

इस बार चुनाव में 7,906 छात्र मतदान के लिए पात्र हैं, जिनमें 57 प्रतिशत पुरुष और 43 प्रतिशत महिलाएं हैं। 25 अप्रैल को दो सत्रों में सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक और दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक मतदान होगा। मतगणना उसी रात शुरू होगी और 28 अप्रैल तक नतीजे आने की उम्मीद है।

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