
आजकल जो भी कोई मिलता है तो अपने घुटनों के दर्द का जिक्र जरूर करता है। लगता है जैसे सभी लोगों के घुटने बिना चले ही घिस गए हैं। घुटने की बात चली है तो सर्वप्रथम पूर्व यशस्वी प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की याद जेहन में कौंध जाती है,जब वे दूसरी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए तब उनके भी घुटने टिक गए थे। थक हार कर उनको अपने घुटनों की शल्य चिकित्सा करवानी पड़ी थी जिसके कारण उनकी चाल अत्यंत धीमी हो गई थी। आजकल जो समस्या आई है वह तो बड़ी ही भयावह स्थिति है। पिछले दिनों यह समस्या राजनैतिक गलियारों से होकर कई राज्यों से गुजरी। राजधानी दिल्ली में या यूं कहें एन सी आर में केजरीवाल की आप सरकार के घुटनों में हुआ दर्द इतना बढ़ा कि हद से गुजर गया। घुटनों ने ऐसा जवाब दिया कि सरकार ही गिर पड़ी और गिरी भी तो बुरी तरह से गिरी। मनीष सिसोदिया ,अरविंद केजरीवाल जैसे कट्टर ईमानदार नेताओं के घुटने ऐसे टिके कि इस दर्द की दवा आज भी ढूंढ रहे हैं । दिल्ली के खास ओ आम को सस्ती दारू बेचने के चक्कर में , मोहल्ला क्लीनिक के कथित घोटाले के चक्कर में, फिर शिक्षा घोटाले के चक्कर में फिर जमुना जी की सफाई न करवाने के चक्कर में,और अंत में मुफ्त की रेवड़ी बांटने के चक्कर में पहले तिहाड़ जेल में वर्षों तक हाड़ गलवाते रहे। जैसे- तैसे बाहर आए तो चुनाव का चक्र चला। चक्र क्या था यार चक्रव्यूह था,जिसमें आप सुप्रीमो की आपदा में फंसे पीडि़त जैसी स्थिति हो गई,नतीजा तो हम सभी ने देख ही लिया! जिन घुटनों पर लोग बरसों बरस बड़े- बड़े प्रदेशों को मुखिया बन कर चलाते रहे। उनके घुटनों को भी समय ने टिका दिया। महाराष्ट्र में एक नाथ शिंदे जी जो अपने मजबूत घुटनों के बल पर उद्धव ठाकरे जी को घुटनों के बल पर चला दिए थे आज वे खुद भी घुटनों पर आ गए हैं और अपने दर्द की दवा ढूंढने को बाध्य हैं। लोगों का प्रमोशन होता है मगर इन का डिमोशन हुआ और डिमोशन किसका होता है यह सभी जानते हैं जो पढ़े लिखे हैं।
इसी प्रकार मध्य प्रदेश के सबसे मजबूत घुटने समझे जाने वाले मुख्य मंत्री भी समय के जाल में ऐसे फंसे कि कुर्सी छोड़ कर कृषि मंत्री जैसी कुर्सी से काम चलाना पड़ रहा है। मामा बन कर पूरे मध्य प्रदेश को मामा बना दिया। उड़ीसा के मुखिया के घुटने तो बुरी तरह से घिस जाने के कारण अब लगता है कि लाइलाज हो गए हैं।
कोराना जैसी वैश्विक आपदा के दौरान लगाई गई वैक्सीन से लोगों की जान तो बच गई मगर लगता है आपदा में अवसर की तर्ज़ पर घुटनों ने भी अपने हारने की घोषणा का अवसर पा लिया। मेरे घुटनों में भी इस दर्द के बीज रोपित हो गए हैं। इन दर्द भरे घुटनों की दवा ढूंढने के लिए यू ट्यूब पर जानकारी जुटाने के लिए जैसे ही घुसा,देख कर दंग रह गया यहां पर नीम हकीमों की इतनी लंबी कतार लगी थी कि यकीन नहीं हो रहा था। इतने इलाज दुनिया में पड़े हैं और हम घुटने टेक रहे है? यू ट्यूब पर कथित विशेषज्ञों द्वारा हर मर्ज के आयुर्वेदिक,घरेलू,होम्योपैथी, एलोपैथी, हलवापैथी, जलवापैथी वीडियो की भरमार है फिर भी हम इन दर्द भरे घुटनों को पकड़े पकड़े चल रहे हैं।
वैसे देखा जाए तो इंसान अपने जीवन में घुटने तभी टेकता है जब मंदिर में भगवान से कुछ मांगने जाता है या फिर अपनी प्रेमिका से उसका हाथ शादी के लिए मांगता है मगर आजकल जो घुटने टेकने की घटनाएं घट रही है वह अत्यंत ही विचारणीय हैं। लोग इतना अच्छा कमा रहे हैं। इतना अच्छा होटलों में खा रहे हैं। इतनी अच्छी बड़ी बड़ी गाडिय़ों में, हवाई जहाज में यात्रा कर रहे हैं फिर भी घुटने टेक रहे हैं तो यह स्थिति तो पड़ोसी पाकिस्तान बांग्लादेश जैसी हो रही है जहां आए दिन सरकारों के घुटने सेना टिका देती है या पाकिस्तान में बलूचिस्तान ने सरकार को घुटने पर ला दिया है। कुल मिला कर कहें तो हम सब किसी न किसी के सामने घुटने टेक रहे हैं।अब पूरी दुनिया के समक्ष एक यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है कि यह घुटने टेकने का रोग आया है या बुलाया गया है?