
साधु, महात्मा, संत, ऋषि, मुनि आदि सभी शब्द समाज कल्याण के लिए हैं। इन सभी ने अपने जीवन में कठोर व्रत धारण कर स्वयं को परमपिता परमेश्वर की भक्ति में अपने को लगाया है। साथ ही समाज का उद्धार कर समाज को नई दिशा और ऊर्जा दी है। इस वर्ष प्रयागराज में हुए महाकुंभ में कितने ही दिव्य संतों के दर्शन लोगों ने किए और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। दैनिक जीवन में भी संत अपनी वाणी से लोगों को प्रेरित करते रहते हैं। समाज और लोक कल्याण की भावना से भरा संतों का मन और हृदय हर समय सृष्टि के उत्थान में लगा रहता है। संतों की ऊर्जा को सामान्य जीव समझने में सक्षम नहीं है। संतो के जीवन, लेखन, वचनों आदि से कितने ही पृष्ठ भरे हुए हैं। संत वाणी के एक-एक शब्द की व्याख्या करने में सारा जीवन निकल सकता है।
संत ब्रह्म का ही स्वरुप हैं। संतों के विषय में हर कालखंड में कितने ही कवियों, साहित्यकारों ने लिखा और गाया है। स्वयं संत भी हर एक कालखंड में आकर अपनी वाणी से समाज को जागृत करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। जिसने भी संतों को गाया-पढ़ा-लिखा है वह भी संत ही हो गया, ऐसा भी कहा जा सकता है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं- हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहि सुनहिं बहु विधि संता।। अर्थात भगवान की कथा अनंत है, यह संतो के द्वारा ही सुनी, कही और गायी गई है। रामचरितमानस के बालकांड में ही गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि, बंदऊँ संत समान चित हित अनहित नहि कोई। अर्थात मैं संतों को प्रणाम करता हूँ, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु। अष्टछाप के भक्त कवि कुंभनदास लिखते हैं कि, संतन को कहां सीकरी सों काम। अर्थात संतों को राज दरबारों या भौतिक सुखों से कोई लेना देना नहीं है। यह तो भगवान का भजन करने में लगे रहते हैं।
दूसरी ओर देखें तो भौतिक वस्तुओं के पीछे व्यक्ति जितना भागते हैं, वह उतनी ही दूर होती जाती है या उन्हें पाने की इच्छा बढ़ती ही जाती हैं। जब हम किसी संत के पीछे दौड़ते हैं या चलते हैं तो वह भौतिक वस्तुओं से दूर आध्यात्मिक शक्तियों और ज्ञान से जोड़ते चले जाते हैं। संत जीवन में हमेशा सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं। संत का जीवन आत्मज्ञान से भरा हुआ है, वह सच्चाई का ज्ञान समाज को करते हैं। हनुमान चालीसा में लिखा है, साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे। अर्थात हनुमान जी साधु, संतों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं। संत ईश्वर के प्रति समर्पित हैं। ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखते हैं और जीव को भी उसके प्रति समर्पित कर देते हैं। संत का जीवन सादगी से भरा है, वह सांसारिक सुख-सुविधाओं से दूर समाज को नया जीवन देते हैं।
संत शब्द का अर्थ है कि एक ऐसा व्यक्ति जो सत्य के मार्ग पर चलता है, आत्मज्ञानी होता है। संत समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत होते हैं। वे लोगों को सत्य, प्रेम और करुणा का मार्ग दिखाते हैं। संतों की शिक्षाएं लोगों को एक बेहतर व्यक्ति बनने में मदद करती हैं। कहा भी गया है, संत मिलन को जाइये, तज माया अभिमान। ज्यों ज्यों पग आगे धरे कोटि यज्ञ समान।। अर्थात संत से मिलने के लिए चलना भी यज्ञ के समान है। जीवन में कोई साथ दे या ना दे, संत वचन हमेशा साथ देते हैं। संतों की वाणी जीवन को बदल देती है। भारतवर्ष की इस दिव्य भूमि और संतों को बार-बार प्रणाम है। संत देश-दुनिया और इस सृष्टि का प्राण हैं।