महत्वपूर्ण है बच्चों की आंखों की सुरक्षा

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हम अपने चारों ओर देखें तो पाएंगे कि जीवन में जो वस्तुएं अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, उन पर अनजाने, अनचाहे हम ध्यान नहीं दे पाते। इसका कारण अशिक्षा तो है ही, हमारी असावधानी भी है। यदि सावधानी रखी जा सके तो ऐसी क्षति जो अज्ञानवश घटित होती है, उससे उबरा जा सकता है।
हमारे शरीर का प्रत्येक अंग अमूल्य है, कोई अधिक या कम महत्त्वपूर्ण नहीं है लेकिन आंखों का महत्त्व तो वही जान सकता है जो आंखों के अंधेरे को भुगत चुका हो। आंखें हमारे लिए अमूल्य हैं। जो कुछ बाहर घटित हो रहा है, जो कुछ हमारे अन्दर चल रहा है, उसके दर्शन केवल आंखों से ही हो सकते हैं किन्तु इतने महत्त्वपूर्ण अवयव के प्रति भी हम उपेक्षा बरतते हैं, इसका क्या अर्थ हो सकता है?
बच्चों को आंखों के रोग हमारी उदासीनता से हो सकते हैं। आंखों के रोग सामान्यतः दो वर्ष से पांच वर्ष की उम्र में होते हैं। ये रोग विटामिन ’ए‘ की कमी से होते हैं। यदि इसका पता प्रारम्भ से न हो तो बच्चा अंधा तक हो सकता है, इसलिए यह जान लेना आवश्यक है कि कैसे यह पता चले कि बच्चा विटामिन ’ए‘ की कमी का शिकार है। जैसे ही यह पता चले, उसका उपचार प्रारंभ हो जाना चाहिए। उपचार का न होना एक खतरनाक बिन्दु है जिसका सुधार बाद में नहीं हो सकता।
रतौंधी में बच्चा सामान्य बच्चों की तरह अंधेरे में नहीं देख सकता। इस बच्चे की आंखें शुष्क हो जाती हैं। आंखों की सफेदी अपनी चमक खोने लगती है। आंखों पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं। आंखों में भूरे रंग की छोटी-छोटी फुंसियां हो सकती हैं। यह रोग जैसे-जैसे बढ़ता है, आंखों की पुतली भी सूखी और तेज रहित दिखाई देने लगती है और आंखों पर छोटे-छोटे गड्डे भी पड़ सकते हैं। यह अंतिम स्थिति है। इसके बाद शीघ्र ही आंख की पुतली मुलायम सी पड़ने लगती है या उसमें उभार आ सकता है या वह फूट सकती है। इसमें सामान्य रूप से दर्द नहीं होता।
बच्चों को स्तनपान कराना इस बीमारी से बचने के लिए महत्त्वपूर्ण है। यदि बच्चा दो वर्ष तक स्तनपान करे तो इस रोग से बचने के लिए सहायक होगा किन्तु इसके अतिरिक्त बच्चों को पहले छह महीनों के बाद हरी पत्तेदार सब्जियां, लाल-पीले फल व सब्जियों जैसा आहार देना भी आवश्यक है क्योंकि इनमें विटामिन ’ए‘ पाया जाता है। इसके अतिरिक्त
दूध, अंडा, कलेजी, मांस आदि में भी विटामिन ‘ए‘ पाया जाता है। बच्चों में यह रोग विटामिन ‘ए’ की कमी से ही होता है।
आंखों को दुर्घटना से बचाएं:- यह तो बीमारी की बात हुई। बच्चों के अंधत्व के लिए दुर्घटनाएं भी बड़ी संख्या में उत्तरदायी हैं। हमारे देश में रामायण सीरियल के प्रारम्भ होने पर अनेक बच्चों ने खेल-खेल में धनुष बाण चलाए और आंखें क्षतिग्रस्त हुई। बच्चों को खतरनाक खेलों से बचाना हमारी जिम्मेदारी है। इसलिए ऐसे खेलों के प्रति सावधान रहना आवश्यक है। हमारे देश में आंखों की क्षति गुल्ली डण्डा, तीर-कमान व पत्थरांे के खेलों से अधिक होती हैं।
दीपावली या अन्य उत्सवों पर पटाखे चलाने या छोड़ने से भी आंखों को क्षति पहुंचती है। अतः आवश्यक है कि बच्चे आपकी उपस्थिति में पटाखे चलाएं। दुर्घटना घट जाने के बाद पछताने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं बचता।
इसी प्रकार से नुकीली वस्तुओं को दूर रखिए। इनसे आंखें दुर्घटनाग्रस्त हो सकती हैं। जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उनसे स्पष्ट है कि बड़ी संख्या में आंखों का नुकसान दुर्घटनाओं से होता है। यह ऐसा अंधत्व है कि जिस पर किसी का बस नहीं रह जाता। बाद में आंसू बहाने से कोई फायदा नहीं। आज से ही सावधानी बरतना व निरन्तर इनके तथ्यों को स्मरण रखना आपके अच्छे माता-पिता होने का सबूत है।
बच्चों की आंखों पर ध्यान दीजिएः- बच्चों की आंखों पर माता पिता व शिक्षकों द्वारा निरंतर ध्यान देना अब समय की आवश्यकता हो गई है। बड़ी संख्या में बच्चे आंखों की कमजोरी के कारण चश्मा पहनने लगे हैं, इसलिए आवश्यक है कि बच्चा यदि ब्लैक बोर्ड को देख नहीं पा रहा, पुस्तक को आंख के पास ला कर पढ़ रहा है या खेल में अन्य बच्चों की तरह गेंद को पकड़ नहीं पा रहा तो आप बच्चे की आंखों की जांच अवश्य कराएं। यदि बच्चा धुंधलेपन की शिकायत करे, उसकी पुतलियां लाल तथा सूजी हों, पढ़ते समय आंखों को मलता हो या रंग पहचानने में परेशानी हो तो तत्काल नेत्रा चिकित्सक को दिखाएं।
चश्मा पहनने से परेशान न हों:- हमारे देश में चश्मा पहनने से बचना एक आदत है। विशेष रूप से माताएं अभी भी यह मानती हैं कि यदि बेटी चश्मा पहन लेगी तो उसके विवाह में परेशानी होगी क्योंकि यह माना जाएगा कि बेटी की आंखें कमजोर हैं पर यह व्यर्थ की बात है। इसे दूर किया जाना चाहिए। चश्मा पहनने से आंखों की क्षमता बढ़ जाती है और बच्चा खेल में पूरी शक्ति से पढ़ाई में पूर्ण मनोयोग से भाग लेकर महान सफलताएं अर्जित कर सकता है।
शिक्षक-पालकों का योग:- बच्चों की आंखों की सुरक्षा के लिए शिक्षक भी यदि कक्षा में, खेल के मैदान में ध्यान दें और कमजोर आंखों वाले बच्चों को विशषज्ञों को दिखाने की व्यवस्था करें वो अपना तो कर्तव्य पूरा करेंगे ही, पुण्य लाभ भी प्राप्त करेंगे। देश के लिए अंधत्व नियंत्राण कार्यक्रम में हर कोई हर कहीं सहयोगी हो सकता है।
अच्छी आदतों का निर्माण:- शिक्षक व माता पिता आंखों की देखभाल के लिए अच्छी आदतों का निर्माण भी कर सकते हैं जैसे बच्चों को दिन मे कम से कम तीन बार अपनी आंखें धोनी चाहिए। पढ़ने के लिए पर्याप्त प्रकाश होना चाहिए। टेलीविजन को देखते समय बच्चों को कम से कम तीन मीटर दूर बैठना चाहिए।
अशिक्षा व असावधानी हमारे शत्रु हैं। आंखें इन्हें दूर करने का साधन हैं। इसकी रक्षा कीजिए। देश के भविष्य बच्चे आपका भी भविष्य हैं। उन को दिशादान दीजिए।
 

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