यमुनानगर, 14 अप्रैल (भाषा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को केरल में जन्मे अधिवक्ता सी शंकरन नायर को याद किया और अमृतसर में 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड को लेकर ब्रिटिश साम्राज्य से भिड़ने के लिए उनकी सराहना की।
दीनबंधु छोटूराम ताप विद्युत संयंत्र में 800 मेगावाट के ‘अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल’ ताप विद्युत संयंत्र की आधारशिला रखने के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने लोगों से नायर के योगदान के बारे में जानने का आग्रह किया।
उनकी यह टिप्पणी इस महीने के अंत में नायर के जीवन पर आधारित फिल्म ‘केसरी-2’ की रिलीज होने से पहले आई है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के अंत में जलियांवाला बाग हत्याकांड का उल्लेख किया और कहा कि अंग्रेजों की क्रूरता के कारण मरने वालों के अलावा एक पहलू ऐसा भी था, जिसे अंधेरे में रखा गया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह पहलू मानवता की भावना और देश के साथ खड़े होने से जुड़ा है। उनका नाम शंकरन नायर था।’’
मोदी ने उपस्थित लोगों से कहा, ‘‘आप में से किसी ने भी उनका नाम नहीं सुना होगा। लेकिन इन दिनों, उनके बारे में बहुत चर्चा हो रही है। नायर जी एक प्रसिद्ध वकील थे और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार में उनका पद बहुत ऊंचा था। वह सत्ता और सभी सुख-सुविधाओं का आनंद ले सकते थे।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि लेकिन नायर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड से आहत होकर ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया।
मोदी ने कहा, ‘‘उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और अपना पद छोड़ दिया। वह केरल के थे और घटना पंजाब में हुई थी। उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड पर मुकदमा लड़ने का फैसला किया। उन्होंने लड़ाई लड़ी और ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर ब्रिटिश सरकार को अदालत में भी घसीटा।
उन्होंने कहा, ‘‘यह न केवल मानवता के साथ खड़े होने का मामला था, बल्कि यह ‘एक भारत और श्रेष्ठ भारत’ का भी एक बेहतरीन उदाहरण था। कैसे केरल के एक व्यक्ति ने पंजाब में हुई एक घटना में ब्रिटिश साम्राज्य का सामना किया। ऐसी भावना हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के पीछे की असली प्रेरणा थी। यह हमारी ‘विकसित भारत’ यात्रा की सबसे बड़ी ताकत है।’’
मोदी ने कहा, ‘‘हमें शंकरन नायर के योगदान के बारे में जानना चाहिए। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के हर बच्चे को उनके बारे में जानना चाहिए।’’
पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में रॉलेट कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे सैकड़ों लोगों को बिना किसी उकसावे के 13 अप्रैल, 1919 को ब्रिटिश सेना ने गोलियों से भून दिया था।
रॉलेट कानून ने औपनिवेशिक प्रशासन को दमनकारी शक्तियां प्रदान की थीं।
नायर 1919 तक वायसराय की परिषद के सदस्य रहे। उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में इस्तीफा दे दिया था।