नालंदा के केवल 10 प्रतिशत हिस्से की ही खुदाई हुई, वहां भव्य स्थल संग्रहालय बनाया जाए : डेलरिम्पल

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नयी दिल्ली, नौ अप्रैल (भाषा) प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने कहा है कि नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों के केवल 10 प्रतिशत हिस्से का ही उत्खनन किया गया है। साथ ही उन्होंने नालंदा में एक ‘‘उचित’’ स्थल संग्रहालय स्थापित करने पर जोर दिया, जो भारतीय सभ्यता का ‘‘विशाल और भव्य स्मारक’’ होगा।

यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मंगलवार को आयोजित एक संवाद के दौरान डेलरिम्पल ने कहा, ‘‘यह चौंकाने वाली बात है कि 21वीं सदी में, बिहार में इस स्थल के पुरातात्विक खंडहरों पर उत्खनन कार्य में अधिक खर्च नहीं किया गया।’’

नालंदा विश्वविद्यालय या नालंदा महाविहार के खंडहर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल हैं। इन खंडहरों को 2016 में यह प्रतिष्ठित टैग मिला था।

डेलरिम्पल ने कहा, ‘‘नालंदा का केवल 10 प्रतिशत ही उत्खनन किया गया है, जबकि 90 प्रतिशत की खोज होनी बाकी है।’’

उनकी नवीनतम पुस्तक ‘‘द गोल्डन रोड: हाउ एनशिएंट इंडिया ट्रांसफॉर्म्ड द वर्ल्ड’’ प्राचीन भारतीय सभ्यता पर रोशनी डालती है।

उन्होंने कहा कि नालंदा के शैक्षणिक प्रांगणों का डिज़ाइन आधुनिक ऑक्सब्रिज कॉलेजों (ब्रिटेन) में देखा जा सकता है।

डेलरिम्पल ने कहा, ‘‘यह भारत की सॉफ्ट पावर का सबसे बड़ा क्षण था। कौन जानता था कि ऐसे असाधारण अवशेष वहां पाए जा सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘….यह बात और भी असाधारण है कि अपनी प्राचीन सभ्यता को महत्व देने वाली सरकार ने और अधिक उत्खनन कार्य के लिए धन उपलब्ध नहीं कराया।’’

उन्होंने उत्खनन कार्य जारी रखने और वहां पर ‘‘उचित संग्रहालय’’ बनाने की वकालत की।

वर्तमान में, बिहार की राजधानी पटना से लगभग 98 किलोमीटर दूर इसी नाम के शहर में स्थित नालंदा खंडहरों में एक साधारण ढांचे में एक स्थल संग्रहालय है।

डेलरिम्पल ने विद्वानों, शोधकर्ताओं और इतिहास के प्रति उत्साही लोगों की सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘यह तो भारतीय सभ्यता का एक विशाल, भव्य स्मारक होना चाहिए।’’

चर्चा का मुख्य विषय ‘‘नालंदा: हाउ इट चेंज्ड द वर्ल्ड’’ था, जो राजनयिक और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के उप महानिदेशक अभय द्वारा लिखी गई नवीनतम पुस्तक है।

यूनेस्को की वेबसाइट के अनुसार, नालंदा महाविहार स्थल में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 13वीं शताब्दी ईसवी तक के मठ और शैक्षणिक संस्थान के पुरातात्विक अवशेष शामिल हैं। इसमें स्तूप, मंदिर, विहार (आवासीय और शैक्षणिक भवन) और प्लास्टर, पत्थर और धातु से बनी महत्वपूर्ण कलाकृतियां शामिल हैं।

नालंदा भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। यह 800 वर्षों की निर्बाध अवधि में ज्ञान के संगठित प्रसारण में लगा रहा।

यूनेस्को ने अपनी वेबसाइट पर कहा है, ‘‘स्थल का ऐतिहासिक विकास बौद्ध धर्म के एक धर्म के रूप में विकसित होने और मठ और शैक्षिक परंपराओं के उत्कर्ष का प्रमाण है।’’

करीब 23 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली इस संपत्ति का स्वामित्व, संरक्षण, रखरखाव और प्रबंधन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) करता है, जो संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।

बिहार में वर्तमान में पटना सर्कल के तहत 70 एएसआई संरक्षित विरासत स्मारक और स्थल हैं।

मार्च 2023 में केंद्र सरकार द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 में केंद्र द्वारा संरक्षित स्थलों के संरक्षण और रखरखाव पर 435.39 करोड़ रुपये खर्च किए गए; 2020-21 में 260.83 करोड़ रुपये; 2021-22 में 269.57 करोड़ रुपये; और 2022-23 में एक मार्च 2023 तक 340.92 करोड़ रुपये संरक्षित स्थलों के संरक्षण और रखरखाव पर खर्च किए गए।

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