वक़्फ़ पर नई लकीर: ‘उम्मीद’ या उलझन?

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डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2024, 2 और 3 अप्रैल 2025 को संसद के दोनों सदनों से पास होने और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वक़्फ़ संशोधन अधिनियम बन गया है और अब इसे ‘उम्मीद’ अर्थात ‘यूनिफाइड वक्फ़ मैनेजमेंट एम्पॉवरमेंट, एफिशियंसी एंड डवलपमेंट एक्ट’ के नाम से जाना जाएगा। वास्तव में इस विधेयक के सदन के पटल पर रखे जाने के बाद से ही इस पर निरन्तर विवाद चल रहा है और अब इसके कानून बन जाने के बाद यह मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय में पहुँच गया है जिसमें इसको संवैधानिक आधार पर चुनौती दी गयी है। आखिर वक़्फ़ क्या है ,इसमें संशोधन क्यों जरूरी था और अब संशोधन के बाद इसकी वस्तुस्थिति क्या है, ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं  जिनको जानना नितान्त आवश्यक है।

‘वक़्फ़’ संपत्ति से जुड़ा एक ऐसा मसला है जो आज-कल विवाद का विषय बना हुआ है। वक़्फ़ एक ऐसी संपत्ति है जिसका मालिक अल्लाह और रखवाला एक बोर्ड है। कहने के लिए वक़्फ़ का मतलब है भलाई के लिए दी गई सम्पत्ति जिसे गरीबों और जरूरतमन्दों का भला हो सके। वक़्फ़ का अर्थ होता है लोकोपरार्थ दी गई चल या अचल सम्पत्ति। मुस्लिम कानूनविद बहाउद्दीन एदुवल्दीज ने इसके तीन तत्व बताएं हैं- 1. हयारत- जिसका मतलब है भलाई करना, यह दान देने वाले की नियत को बताता है 2. अकारत इसका मतलब होता है राजस्व, जिसे समाज सेवा के लिए खर्च किया जाता है और 3. वक़्फ़ अर्थात जहां ये सेवाएं दी जाती हैं। इसमें दो और महतत्त्वपूर्ण शब्दावलियाँ जुड़ी हैं- अल वाक़िफ़ (दान देने वाला) और अल मौकुफ़ (दान की गई सम्पत्ति)। दान लिखकर या बोलकर किया जाता है। एक बार वक़्फ़ होने के बाद उसे ना तो बेच जा सकता है, ना ही किसी को दिया जा सकता है। वक़्फ़ का इतिहास उतना ही पुराना है जितना इस्लाम। वस्तुतः कुरान में इसका बहुत जिक्र नही है परन्तु कुरान के सूरा ‘अल ए  इमरान’ में आया है कि जब तक तुम अपनी प्यारी चीज में से कुछ दान नही करते, तब तक तुम सच्ची नेकी नही पाते। यह इस बात का सबूत है कि दान में  हमेशा मूल्यवान चीज दी जाती है और इससे सबाब मिलता है।

हदीस में पहले वक़्फ़ का जिक्र है जब हिजरत के बाद मोहम्मद साहब ने 600 खजूरों के पेड़ को मदीना के गरीबों के लिए वक़्फ़ किया था। भारत में पहले वक़्फ़ का जिक्र ऐन-अल-मुल्क-मुल्तानी की पुस्तक ‘इंशा ए महरू’ में मिलता है। इस पुस्तक में उल्लिखित है कि 1185 में मुहम्मद गोरी ने मुल्तान की एक मस्जिद को दो गाँव वक़्फ़ किया था। गोरी के बाद जब भारत में गुलाम वंश की नीव पड़ी तो इस वंश ने वक़्फ़ को संस्थात्मक बना दिया। बरनी ने अपनी पुस्तक तारीख-ए-फिरोजशाही में लिखा है कि सरायों, मस्जिदों, नहरों या किसी भी समाजसेवा से जुड़ी संस्था के रख-रखाव के लिए वक़्फ़ किया जाता था। एस.अतहर हुसैन एवं एस.खालिद रसीद ने अपनी पुस्तक ‘भारत में वक़्फ़ प्रशासन 1968’ में इस बात का उल्लेख किया है कि 1206 से 1526 के मध्य वक़्फ़ बोर्ड बन चुका था। मुगल काल में भी यह जारी रहा और जब जनता का जुड़ाव गांवों की तरफ हुआ तो वक़्फ़ का प्रसार ग्रामीण इलाकों में हो गया।

मुगलिया हुकूमत की यह रवायत ब्रिटिश काल में भी जारी रही परन्तु लन्दन की प्रिवी काउंसिल के चार जजों की बेंच ने इसे खारिज भी कर दिया था। 1913 में आए ‘द मुसलमान वक्फ बैलिडेटिंग एक्ट 1913’ ने इसे एक बार फिर से फलक पर पहुँच दिया। इसके बाद 1924 में इसमें परिवर्तन हुआ। आजादी के बाद से अब तक इसमें  चार बार संशोधन (1955, 1995, 2013 और अब 2025 में ) हो चुका है। 1964 में वक्फ बोर्ड की स्थापना हुई जिससे इसे अत्यधिक शक्तियां प्राप्त हुईं। 1995 में किये गए संशोधन ने प्रत्येक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश को वक़्फ़ बोर्ड गठित करने की अनुमति दे दी। इसके बाद से ही केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद वक़्फ़ संपत्तियों से सम्बद्ध मामलों पर केंद्र के लिए एक सलाहकार के रूप में काम करती है। 2013 में संप्रग सरकार ने 1995 के मूल वक़्फ़ एक्ट में बदलाव करके बोर्ड की शक्तियां बढ़ा दीं।

वक़्फ़ का ढांचा तीन आधारभूत स्तंभों पर टिका है- 1. केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद 2. राज्य वक़्फ़ बोर्ड और 3.वक़्फ़ न्यायाधिकरण। धारा 85 के तहत कोई भी व्यक्ति इस न्यायाधिकरण के खिलाफ न्यायपालिका की शरण में नही जा सकता है। भारत में 32 से भी ज्यादे वक्फ बोर्ड कार्यरत हैं। रेलवे और सेना के बाद वक्फ बोर्ड के पास देश में सबसे अधिक भूमि है किन्तु इसमें कुछ लोगों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर रखा है। 1913 से 2013 के मध्य जिस वक़्फ़ बोर्ड के पास 18 लाख एकड़ भूमि थी, 2024 में बढ़कर साढ़े लगभग 39 लाख एकड़ हो गई परन्तु इस भूमि का सालाना राजस्व 1200 करोड़ से घटकर 160 करोड़ रह गया है। वक़्फ़ से सम्बन्धित 21618 मुकदमें लम्बित हैं। कदाचित इसी कारण अगस्त 2024 में वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2024 प्रस्तुत किया गया, जहाँ से इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। इस समिति ने 40 संशोधनों का सुझाव दिया. पुनश्च इन सुझावों को संसद के दोनों सदनों में रखा गया। अब दोनों सदनों से पास होने और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वक़्फ़ संशोधन अधिनियम बन गया है जिसे ‘उम्मीद’  के नाम से जाना जाएगा।

इस नए कानून में जो संशोधन किया गया है उसमें  वक़्फ़ सम्पत्ति के रूप में उपयोग में लायी जाने वाली सम्पत्ति वक़्फ़ की ही रहेगी, अर्थात उस पर भूतलक्षी प्रभाव नही होगा, किन्तु अगर कोई सम्पत्ति भविष्य में वक़्फ़ की जाती है तो उसके लिए उस सम्पत्ति से सम्बन्धित साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे। साथ ही यह भी उल्लिखित है कि इस कानून के लागू होने के पूर्व किसी वक़्फ़ पर विवाद है तो उसकी जांच होगी। जैसे कोई जमीन सरकारी हो और उसे वक़्फ़ कर दिया गया हो। जिला मजिस्ट्रेट से ऊपर का कोई अधिकारी इसकी जांच करेगा।

वह व्यक्ति ही वक़्फ़ कर सकता है जो कम से कम 5 वर्षों से मुस्लिम हो। 2 मुस्लिम महिलाओं को राज्य एवं केन्द्र में वक़्फ़ से जोड़ा गया है। न्यायाधिकरण के विरुद्ध भी उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली जा सकती है। साथ ही इस नए कानून में यह भी प्रावधान है किया गया है कि अगर कोई ऐतिहासिक विरासत है जिसका प्रशासन एन्सीएन्ट मोन्यूमेंट एंड प्रोटेक्सन एक्ट 1904 और एन्सीएन्ट मोन्यूमेंट एण्ड आर्कियोलाजिकल साइट्स एण्ड रिमेंस एक्ट 1958 के तहत हो रहा है तो उसका वक़्फ़ नही हो सकता है। साथ ही कोई भूमि जनजातीय क्षेत्र से जुड़ी हो तो उसे भी वक़्फ़ नही किया जा सकता है। जब से यह कानून बना है तभी से मुस्लिम संगठन और विपक्षीय दल विविध अधरों पर इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शन यद्यपि संवैधानिक आधार पर जायज है, लेकिन जब नागरिक समाज इसे हिंसक रूप देने लगे तो वह उचित नही है, जैसा पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में देखने को मिल रहा है। इसका विरोध संविधान के दायरे में रहकर करना चाहिए और जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में चला  गया है तो निर्णय आने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। वस्तुतः न्यायपालिका यह सुनिश्चित करेगी कि यह संविधान के आधारभूत ढाँचे के विरुद्ध तो नही है। अगर उसमें कोई असंगतता दिखती है तो विधायिका को स्वयं उसमें परिवर्तन करना होगा। इस समय अफवाह से बचते हुए एक जिम्मेदार नागरिकता का परिचय देना होगा। विरोध के लोकतान्त्रिक तरीके को अपनाना ही उचित होगा। इस पर राजनीति करना कहीं से भी न्यायोचित नही है।

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