बढ़ती असमानता देश की आर्थिक वृद्धि की प्रकृति में गहराई से समा गई है: कांग्रेस

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नयी दिल्ली, 27 अप्रैल (भाषा) कांग्रेस ने रविवार को एक विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा और दावा किया कि बढ़ती असमानता अब देश की आर्थिक वृद्धि की प्रकृति में गहराई से समा गई है। कांग्रेस ने यह भी कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में सुधार, खुलेआम किये जा रहे कॉरपोरेट पक्षपात को समाप्त करने और परिवारों को आय सहायता प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है।

कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि विश्व बैंक ने इस महीने भारत के लिए अपनी गरीबी और समानता रिपोर्ट (पॉवर्टी एंव इक्विटी ब्रीफ) जारी की है और रिपोर्ट में कई गंभीर चिंताएं जताई गई हैं, जबकि मोदी सरकार इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल की कोशिश कर रही है।

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘‘पिछले एक दशक के दौरान भारत में गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है। वर्ष 2011-12 में अत्यधिक गरीबी में जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन) का आंकड़ा 16.2 प्रतिशत था, जो 2022-23 में घटकर 2.3 प्रतिशत रह गया है। इस दौरान 17.1 करोड़ लोग इस रेखा से ऊपर आ गए।’’

रिपोर्ट पर अपने बयान में रमेश ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (2.15 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन) के आधार पर किये गए आकलन के अनुसार, हाल के वर्षों में गरीबी में निरंतर गिरावट आई है और यह अब बेहद निम्न स्तर पर पहुंच गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह भारत की विकास गाथा की सफलता को दर्शाता है – जिसकी शुरुआत जून 1991 में उदारीकरण से हुई थी और इसके बाद इसने अपनी गति पकड़ ली है। यह डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा 2004-14 के दौरान शुरू की गई कई महत्वपूर्ण सामाजिक कल्याण योजनाओं के प्रभाव को भी रेखांकित करता है।’’

रमेश ने दावा किया कि इसमें सबसे प्रमुख पहल है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005, जिसने करोड़ों परिवारों के लिए वार्षिक आय की एक न्यूनतम सीमा सुनिश्चित कर परिवारों को गरीबी से बाहर रखने के लिए एक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य किया। उन्होंने कहा कि इसके अलावा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेवाई) के लिए आधार प्रदान किया।

हालांकि, उन्होंने बताया कि विश्व बैंक ने भी चेतावनी दी है कि अधिक अद्यतन डेटा (2017 की तुलना में 2021 से क्रय शक्ति समता रूपांतरण कारक को अपनाना) का परिणाम अत्यधिक गरीबी की उच्च दर के रूप में सामने आएगा।

रमेश ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, ‘‘घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 से जुड़ी प्रश्नावली के डिजाइन, सर्वेक्षण की विधि और ‘सैंपलिंग’ (नमूना एकत्र करने का तरीका) में परिवर्तन से अलग-अलग कालखंड के बीच तुलना करना मुश्किल हो गया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह याद रखना जरूरी है कि ये बदलाव तब किये गए जब सरकार ने 2017-18 में हुए पिछले सर्वेक्षण को खारिज कर दिया, क्योंकि इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में खपत में गिरावट दिखाई गई थी।’’

रमेश ने कहा कि निम्न मध्यम आय वाले देश भारत में गरीबी को मापने के लिए उपयुक्त पैमाना 3.65 डॉलर प्रतिदिन की आय है। उन्होंने कहा कि इस आधार पर भारत में वर्ष 2022 में गरीबी दर काफी अधिक (28.1 फीसदी) रही है।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘भारत में वेतन असमानता अब भी काफी अधिक बनी हुई है, 2023-24 में शीर्ष 10 फीसदी लोगों की औसत आय निचले 10 फीसदी लोगों की तुलना में 13 गुना अधिक रही। इसके अलावा ‘सैंपलिंग’ और डेटा की सीमाओं के कारण हो सकता है कि उपभोग आधारित असमानता (जैसा कि सरकारी आंकड़ों में मापा गया है) वास्तविकता के मुकाबले कम आंकी गई हो।

रमेश ने तर्क दिया कि रिपोर्ट में भारतीय नीति निर्माताओं के लिए कई सुझाव हैं- जैसे कि अलग-अलग गरीबी रेखाओं के बीच का अंतर यह दिखाता है कि आबादी का बड़ा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय अत्यधिक गरीबी रेखा से केवल मामूली रूप से ऊपर है।

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए)-2013 जैसी सामाजिक कल्याण प्रणालियों को छोड़ा नहीं जा सकता है, बल्कि उन्हें और मजबूत करना होगा, ताकि ये योजनाएं इन कमजोर वर्गों को किसी भी नकारात्मक झटकों से बचा सकें।’’

रमेश ने कहा कि कांग्रेस की यह पुरानी मांग रही है कि मनरेगा मजदूरी बढ़ाई जाए, वर्ष 2021 में कराई जाने वाली दशकीय जनगणना को शीघ्र कराया जाए और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में 10 करोड़ अतिरिक्त लोगों को शामिल किया जाए। इन नए आंकड़ों के मद्देनजर इन मांगों को पूरा करना और भी जरूरी है।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में गरीबी की व्यापकता के बारे में स्पष्टता और पारदर्शिता का अभाव इस सरकार की भ्रमित और अपारदर्शी नीतियों का नतीजा है। वर्ष 2014 में रंगराजन समिति की रिपोर्ट आने के बाद से केंद्र सरकार ने देश के लिए कोई अद्यतन गरीबी रेखा निर्धारित नहीं की है। सरकार को तुरंत ऐसा करना चाहिए।’’

डेटा की गुणवत्ता, स्थिरता और विश्वसनीयता को सर्वोच्च प्राथमिकता पर बल देते हुए रमेश ने कहा कि इस मोर्चे पर सरकार का हालिया रिकॉर्ड (जिसका सबसे अच्छा उदाहरण उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2017-18 को दबाया जाना है) भरोसा दिलाने वाला नहीं है।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘वास्तव में जब आर्थिक वास्तविकताएं सरकार के दावों और डींग के विपरीत होती हैं, तो डेटा को तोड़-मरोड़ कर पेश करना और तथ्यों के साथ खिलवाड़ करना मोदी सरकार के ‘टूल-किट’ का हिस्सा बन गया है।’’

रमेश ने दावा किया, ‘‘ बढ़ती असमानता अब हमारे आर्थिक विकास की प्रकृति में मजबूती से समाहित हो चुकी है, जिसे मोदी सरकार की नीतियों ने और भी अधिक गंभीर बना दिया है तथा चंद विशेषाधिकार प्राप्त लोगों और करोड़ों वंचित नागरिकों के बीच बढ़ती खाई को अब नकारा नहीं जा सकता।’’

कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘‘जीएसटी प्रणाली में सुधार कर उसके प्रतिगामी प्रभावों को कम करना अत्यंत आवश्यक है। इसके साथ ही, निजी कॉरपोरेट निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कर आतंकवाद को समाप्त करना, खुलेआम किये जा रहे कॉरपोरेट पक्षपात को रोकना और परिवारों के लिये आय समर्थन सुनिश्चित करना तथा घरेलू बचत को बढ़ावा देने विशेष प्रोत्साहन देना भी अनिवार्य हो गया है।’’

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी 18.4 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत रह गई है, और शहरी क्षेत्रों में 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत हो गई है, जिससे अत्यधिक गरीबी के मामले में ग्रामीण-शहरी अंतर 7.7 से घटकर 1.7 प्रतिशत रह गया है।

संक्षिप्त विवरण में कहा गया है कि भारत निम्न-मध्यम आय वर्ग (एलएमआईसी) वाले देश के रूप में परिवर्तित हो गया है। 3.65 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन की एलएमआईसी गरीबी रेखा का उपयोग करने पर गरीबी 61.8 प्रतिशत से घटकर 28.1 प्रतिशत हो गई, जिससे 37.8 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गए।

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