
मध्य प्रदेश में स्थित दतिया शहर का महत्व सम्पूर्ण भारत वर्ष की आध्यात्म की विरासत में अद्भुत व अतुलनीय है। ब्रह्मास्त्र शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माई पीताम्बरा का दरबार होने के कारण दतिया को पावन धाम का दर्जा प्राप्त है।महाभारत काल की स्मृतियों को अपने आंचल में समेटे दतिया धाम में माई पीताम्बरा के दर्शनों हेतु देश व विदेश से भक्तजनों की आवाजाही निरंतर लगी रहती है इस दरबार के प्रति उत्तराखण्डवासियों की भी गहरी आस्था है। देहरादून,हल्द्वानी, के अलावा दिल्ली,लखनऊ,मुंबई आदि महानगरों में प्रवास कर रहे पहाड़वासी समय समय पर दतिया पहुंचकर माई पीताम्बरा के दर्शन कर अपना जीवन धन्य करते है।
भगवान श्री कृष्ण की आराध्या होने के कारण ये केशवस्तुता भी कही जाती है। अनेक प्राचीन वैदिक संहिताओं तथा धर्म ग्रन्थों में महाविद्या बगलामुखी देवी के स्वरूप, शक्ति व लीलाओं का अत्यन्त विषद वर्णन मिलता है। दश महाविद्याओं में भगवती बगलामुखी को पंचम शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।
भारतवर्ष के मध्य प्रदेश राज्य अन्तर्गत दतिया नगर में स्थित पीताम्बरा शक्ति पीठ, भगवती बगलामुखी देवी के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। इसकी नींव वर्ष 1920 में तत्कालीन महान सन्त पूज्यपाद राष्ट्रगुरु अनन्त श्री स्वामी जी महाराज द्वारा लोक कल्याण के पावन संकल्प के साथ रखी गयी थी। यहीं से बगलामुखी देवी की साधना एवं पूजा-अर्चना पीताम्बरा स्वरूप में आरम्भ हुई और देखते ही देखते इस शक्तिपीठ की कीर्ति पूरे भारतवर्ष में फैल गयी और वर्तमान में तो मॉं का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ दुनिया भर के समर्पित साधकों के लिए एक महातीर्थ के रूप में लोक प्रसिद्ध है ।
दतिया स्थित भगवती पीताम्बरा माई के इस शक्तिपीठ का पुरातन स्वरूप बड़ा ही आकर्षक, मनोहारी एवं परम शान्तिदायक था। नैसर्गिक वातावरण के बीच स्थित यह शक्तिपीठ तब चारों ओर से सघन वनों से घिरा हुआ था। आश्रम से लगे वन क्षेत्र में दिन के समय में भी अनेक वन्य जीव यत्र-तत्र निर्भय होकर विचरते रहते थे। ऐसे भी प्रसंग मिलते हैं जब हिंसक वन्य जीव आश्रम परिसर में आ कर शान्त भाव से घंटों बैठे रहते थे और महाराज के सानिध्य में मानो भक्ति का लाभ उठाते थे। हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित आश्रम में नाना प्रकार के पक्षियों का मधुर कलरव यहां के दिव्य एवं मनोहारी वातावरण को और भी मोहक बना देता था। मन्द पवन के बीच रंग-बिरंगे फूलों पर मंडराते भंवरों की गुंजन समूचे वातावरण में संगीत का अनुभव कराती प्रतीत होती थी। आश्रम में दूर-दूर से आकर सन्त-महात्मा एवं साधकगण नित्य ही शोभा पाते थे और पूज्यपाद अनन्त श्री महाराज जी के स्नेह,सानिध्य एवं मार्गदर्शन में मॉं भगवती पीताम्बरा देवी की कठोर व पवित्र साधना में रत रह कर अनेकानेक सिद्धियां अर्जित करते थे। सभी तरह की सिद्धियों में लोक कल्याण की पुनीत भावना सर्वोपरि रहती थी।आज भी शान्ति का यह स्वरुप यहां कायम है।
महाभारत कालीन दंतवक्र के नाम पर दतिया का नाम जगत में प्रसिद्व हुआ दंतवक्र राजा शिशुपाल के परम मित्रों में एक थे। पीठ में स्थित वनखंडेश्वर मंदिर अश्वत्थामा की तपोस्थली के रुप में प्रसिद्व है। कहा जाता है माई पीताम्बरा के दरबार में स्थित इस देव दरबार में झूठी कसम खाना महाअनर्थ का सूचक माना जाता है। मध्यप्रदेश के प्रमुख नगर ग्वालियर से कुछ ही किमी. की दूरी पर उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित दतिया मध्य प्रदेश के लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक है।झांसी से यहां की दूरी पन्द्रह किलोमीटर है।इस मन्दिर के आसपास तीर्थ स्थलों की लम्बी श्रृंखला मौजूद है। यहां का किला भी अपनी पुरातन ऐतिहासिकता का प्रमाण देता है।
भगवान श्री कृष्ण की आराध्या होने के कारण ये केशवस्तुता भी कही जाती है। अनेक प्राचीन वैदिक संहिताओं तथा धर्म ग्रन्थों में महाविद्या बगलामुखी देवी के स्वरूप, शक्ति व लीलाओं का अत्यन्त विषद वर्णन मिलता है। दश महाविद्याओं में भगवती बगलामुखी को पंचम शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।
भारतवर्ष के मध्य प्रदेश राज्य अन्तर्गत दतिया नगर में स्थित पीताम्बरा शक्ति पीठ, भगवती बगलामुखी देवी के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। इसकी नींव वर्ष 1920 में तत्कालीन महान सन्त पूज्यपाद राष्ट्रगुरु अनन्त श्री स्वामी जी महाराज द्वारा लोक कल्याण के पावन संकल्प के साथ रखी गयी थी। यहीं से बगलामुखी देवी की साधना एवं पूजा-अर्चना पीताम्बरा स्वरूप में आरम्भ हुई और देखते ही देखते इस शक्तिपीठ की कीर्ति पूरे भारतवर्ष में फैल गयी और वर्तमान में तो मॉं का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ दुनिया भर के समर्पित साधकों के लिए एक महातीर्थ के रूप में लोक प्रसिद्ध है ।
दतिया स्थित भगवती पीताम्बरा माई के इस शक्तिपीठ का पुरातन स्वरूप बड़ा ही आकर्षक, मनोहारी एवं परम शान्तिदायक था। नैसर्गिक वातावरण के बीच स्थित यह शक्तिपीठ तब चारों ओर से सघन वनों से घिरा हुआ था। आश्रम से लगे वन क्षेत्र में दिन के समय में भी अनेक वन्य जीव यत्र-तत्र निर्भय होकर विचरते रहते थे। ऐसे भी प्रसंग मिलते हैं जब हिंसक वन्य जीव आश्रम परिसर में आ कर शान्त भाव से घंटों बैठे रहते थे और महाराज के सानिध्य में मानो भक्ति का लाभ उठाते थे। हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित आश्रम में नाना प्रकार के पक्षियों का मधुर कलरव यहां के दिव्य एवं मनोहारी वातावरण को और भी मोहक बना देता था। मन्द पवन के बीच रंग-बिरंगे फूलों पर मंडराते भंवरों की गुंजन समूचे वातावरण में संगीत का अनुभव कराती प्रतीत होती थी। आश्रम में दूर-दूर से आकर सन्त-महात्मा एवं साधकगण नित्य ही शोभा पाते थे और पूज्यपाद अनन्त श्री महाराज जी के स्नेह,सानिध्य एवं मार्गदर्शन में मॉं भगवती पीताम्बरा देवी की कठोर व पवित्र साधना में रत रह कर अनेकानेक सिद्धियां अर्जित करते थे। सभी तरह की सिद्धियों में लोक कल्याण की पुनीत भावना सर्वोपरि रहती थी।आज भी शान्ति का यह स्वरुप यहां कायम है।
महाभारत कालीन दंतवक्र के नाम पर दतिया का नाम जगत में प्रसिद्व हुआ दंतवक्र राजा शिशुपाल के परम मित्रों में एक थे। पीठ में स्थित वनखंडेश्वर मंदिर अश्वत्थामा की तपोस्थली के रुप में प्रसिद्व है। कहा जाता है माई पीताम्बरा के दरबार में स्थित इस देव दरबार में झूठी कसम खाना महाअनर्थ का सूचक माना जाता है। मध्यप्रदेश के प्रमुख नगर ग्वालियर से कुछ ही किमी. की दूरी पर उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित दतिया मध्य प्रदेश के लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक है।झांसी से यहां की दूरी पन्द्रह किलोमीटर है।इस मन्दिर के आसपास तीर्थ स्थलों की लम्बी श्रृंखला मौजूद है। यहां का किला भी अपनी पुरातन ऐतिहासिकता का प्रमाण देता है।