भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत की वैश्विक स्वीकार्यता

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भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत ने विश्व मंच पर एक बार फिर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के प्रतिष्ठित मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया जाना न केवल भारत के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि यह मानव सभ्यता के बौद्धिक और सांस्कृतिक इतिहास के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। इन दोनों ग्रंथों का यूनेस्को धरोहर में शामिल होना, इन ग्रंथों के सांस्कृतिक और दार्शनिक योगदान के वैश्विक प्रभाव और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनके संरक्षण के महत्व को दर्शाता है।

यूनेस्को का मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कार्यक्रम, जो 1992 में शुरू हुआ, विश्व की महत्वपूर्ण दस्तावेजी धरोहरों को संरक्षित करने और उनकी वैश्विक उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है। इसका उद्देश्य ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक दस्तावेजों को विस्मृति से बचाना और भावी पीढ़ियों के लिए उनकी प्रासंगिकता बनाए रखना है। इस रजिस्टर में शामिल होने वाली धरोहरें मानव सभ्यता के लिए असाधारण महत्व रखती हैं, और श्रीमद्भगवद्गीता व नाट्यशास्त्र का इसमें शामिल होना भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को वैश्विक मान्यता प्रदान करता है।

*श्रीमद्भगवद्गीता:आध्यात्मिक और दार्शनिक धरोहर*

श्रीमद्भगवद्गीता, जिसे अक्सर केवल गीता कहा जाता है, भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का एक अनमोल रत्न है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है और इसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश शामिल है। गीता के 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे कर्तव्य (धर्म), ज्ञान (ज्ञान योग), भक्ति (भक्ति योग), और कर्म (कर्म योग) पर गहन दार्शनिक विचार प्रस्तुत करते हैं।

गीता का केंद्रीय संदेश मानव जीवन को संतुलित और अर्थपूर्ण बनाने के लिए है। यह व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वहन निष्काम भाव से करने, आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होने और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की प्रेरणा देता है। गीता में तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) का उल्लेख और सात्विक बुद्धि की महत्ता पर बल दिया गया है, जो मानव को धर्म और अधर्म, बंधन और मोक्ष के बीच अंतर समझने में मदद करती है।

यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में गीता का शामिल होना इसकी सार्वभौमिक प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। यह ग्रंथ न केवल हिंदू धर्म का आधार है, बल्कि इसमें वैदिक, बौद्ध, जैन और चार्वाक जैसे विविध भारतीय दार्शनिक विचारों का समन्वय है। गीता का प्रभाव विश्व स्तर पर देखा जा सकता है, क्योंकि इसे विभिन्न भाषाओं में अनुवादित किया गया है और यह विश्व भर के दार्शनिकों, विचारकों और सामान्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है।

*नाट्यशास्त्र:भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र का आधार*

भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र भारतीय प्रदर्शन कलाओं का एक प्राचीन विश्वकोश है। यह नाटक, अभिनय, नृत्य, संगीत, रस (सौंदर्य अनुभव), और भाव (भावनात्मक अभिव्यक्ति) जैसे विषयों पर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। नाट्यशास्त्र को भारतीय रंगमंच, काव्यशास्त्र और सौंदर्यशास्त्र का आधार माना जाता है। इसमें रस सिद्धांत, जो नौ रसों (शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, और शांत) को परिभाषित करता है, ने भारतीय कला और साहित्य को गहराई से प्रभावित किया है।

नाट्यशास्त्र केवल एक तकनीकी ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की भावनात्मक और सौंदर्यपूर्ण चेतना का प्रतीक है। इसने न केवल भारत में, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया और अन्य क्षेत्रों में भी प्रदर्शन कलाओं को आकार दिया है। नाट्यशास्त्र में वर्णित सिद्धांत आज भी भारतीय शास्त्रीय नृत्य (जैसे भरतनाट्यम, कथक, और ओडिसी) और रंगमंच में जीवंत हैं। यूनेस्को द्वारा नाट्यशास्त्र को मान्यता देना भारतीय कला और संस्कृति की वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है। यह ग्रंथ मानव अभिव्यक्ति और सौंदर्यशास्त्र के क्षेत्र में भारत के योगदान को रेखांकित करता है।

*वैश्विक मंच पर बौद्धिक और सांस्कृतिक छाप*

श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल होना कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। इन ग्रंथों का यूनेस्को द्वारा सम्मानित होना भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक वैभव को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाता है। यह भारत के लिए गर्व का क्षण है, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने बयान में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह भारत की शाश्वत ज्ञान और सांस्कृतिक प्रतिभा का सम्मान है। मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर का उद्देश्य ऐतिहासिक दस्तावेजों को संरक्षित करना है। गीता और नाट्यशास्त्र के शामिल होने से इन ग्रंथों की पांडुलिपियों और उनके ज्ञान को डिजिटल और भौतिक रूप में संरक्षित करने में मदद मिलेगी। यह सुनिश्चित करता है कि ये धरोहरें भावी पीढ़ियों के लिए उपलब्ध रहें।

गीता और नाट्यशास्त्र का वैश्विक मंच पर प्रदर्शन विश्व भर में दार्शनिक और सांस्कृतिक संवाद को प्रोत्साहित करता है। गीता का संदेश और नाट्यशास्त्र के सौंदर्यशास्त्र विश्व की विभिन्न संस्कृतियों के लिए प्रासंगिक हैं, जो मानवता के साझा मूल्यों को मजबूत करते हैं। यूनेस्को की मान्यता से इन ग्रंथों पर वैश्विक स्तर पर शोध और अध्ययन को बढ़ावा मिलेगा। विद्वान और शोधकर्ता इन ग्रंथों के दार्शनिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को और गहराई से समझ सकेंगे। गीता और नाट्यशास्त्र जैसे ग्रंथ भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक शक्ति का प्रतीक हैं, जो विश्व में भारत की छवि को और सशक्त करते हैं।

गीता और नाट्यशास्त्र के शामिल होने के साथ, भारत की कुल 14 कृतियां अब मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर का हिस्सा हैं। इससे पहले, ऋग्वेद (2007 में शामिल), तवांग शास्त्र, और संत तुकाराम की अभंग रचनाएं भी इस सूची में स्थान पा चुकी हैं। यह भारत की समृद्ध साहित्यिक और दार्शनिक परंपरा का प्रमाण है।गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को धरोहर में शामिल होना केवल एक सम्मान नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। भारत को इन ग्रंथों के संरक्षण, प्रचार और प्रसार के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे। डिजिटल संग्रह, अनुवाद, और शैक्षिक पाठ्यक्रमों में इन ग्रंथों को शामिल करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। साथ ही, इन ग्रंथों के मूल्यों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाना भी आवश्यक है, ताकि वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहें। ये ग्रंथ न केवल भारत की आध्यात्मिक और कलात्मक चेतना के आधार हैं, बल्कि वे मानव सभ्यता के लिए भी अमूल्य धरोहर हैं। इस मान्यता से न केवल इन ग्रंथों का संरक्षण सुनिश्चित होगा, बल्कि विश्व स्तर पर भारतीय दर्शन और कला की समझ को भी बढ़ावा मिलेगा। यह भारत के लिए गर्व का क्षण है, जो हमें अपनी समृद्ध विरासत को और अधिक जिम्मेदारी के साथ संजोने और साझा करने की प्रेरणा देता है।

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