
डॉ घनश्याम बादल
उपवास की परंपरा हिंदुस्तान में कोई नई परंपरा नहीं है अपितु सदियों से उपवास रखे जाते रहे हैं अब सोचने की बात यह है कि क्या रोज़ा या उपवास केवल मजहब पंथ अथवा धर्म से ही जुड़े हैं अथवा इनका कुछ और भी आधार एवं लाभ है।
भारतीय संस्कृति में व्रत,उपवास
व्रत और उपवास का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं को जोड़ते हैं । भारतीय संस्कृति में व्रत और उपवास धर्म के साथ ही लंबे समय से स्वास्थ्य लाभों के लिए भी रखे जाते रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान भी अब इसके कुछ लाभों को रेखांकित कर रहा है।
बड़े लाभ के व्रत
पाचन सुधरे शुगर पर नियंत्रण
उपवास के दौरान भोजन का सेवन कम या बंद होने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है। इससे पेट और आंतों की सफाई होती है और शरीर विषाक्त पदार्थों (टॉक्सिन्स) को बाहर निकालने में सक्षम होता है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, नियंत्रित उपवास यानी इंटरमिटेंट फास्टिंग इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित रहता है और टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम कम होता है।
कोशिकाएं हों साफ
उपवास से कैलोरी की मात्रा सीमित होती है जिससे वजन कम करने में मदद मिलती है। यह शरीर में इकट्ठा हो रही चर्बी को ऊर्जा के रूप में उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है। उपवास के दौरान शरीर में ऑटोफैजी की प्रक्रिया शुरू होती है जिसमें पुरानी और क्षतिग्रस्त कोशिकाएं साफ होती हैं. इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है। उपवास से मस्तिष्क में केटोन्स का स्तर बढ़ता है जो मस्तिष्क के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में कार्य करता है। इससे एकाग्रता और मानसिक स्पष्टता में वृद्धि होती है।
तनाव घटाएं
व्रत उपवास से तनाव में भी कमी होती है. उपवास हार्मोनल संतुलन को बेहतर करता है, जैसे कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) को नियंत्रित करके मानसिक शांति प्रदान करता है। इतना ही नहीं व्रत करने से आत्म-अनुशासन बढ़ता है जो मानसिक दृढ़ता और संयम को मजबूत करता है।
बीमारियां रोकें, इम्यूनिटी बढ़ाएं
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि उपवास कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को कम करता है, जिससे हृदय रोगों का खतरा घटता है और शरीर में सूजन को कम करता है, जो कई पुरानी बीमारियों जैसे गठिया और कैंसर का कारण बनती है। व्रत एवं उपवास करने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूती मिलती है नियंत्रित उपवास से इम्यून सिस्टम रीसेट हो सकता है, जिससे शरीर रोगों से लड़ने में अधिक सक्षम बनता है।
आत्म शुद्धि एवं मन की शांति
व्रत और उपवास को अक्सर आत्म-शुद्धि और मन की शांति से भी जोड़कर देखा जाता है। यह भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठकर आत्म-चिंतन और ध्यान के लिए समय प्रदान करता है, जिससे भावनात्मक संतुलन बना रहता है।
सावधानी भी ज़रूरी
अब भले ही व्रत एवं उपवास से कितने ही लाभ क्यों न हों लेकिन जब ज़रूरत से ज्यादा उपवास किया जाता है तब शरीर को कई हानियां होने का भी डर बना रहता है इसलिए व्रत एवं उपवास करने के साथ कुछ सावधानियां भी ध्यान रखा जाना ज़रूरी है। व्रत और उपवास सही तरीके से करना जरूरी है। गर्भवती महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों या गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित लोगों को डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। पर्याप्त जलयोजन (हाइड्रेशन) बनाए रखना महत्वपूर्ण है, खासकर जब उपवास में पानी भी शामिल न हो।
अति न करें
बेहतर हो कि व्रत एवं उपवास की अति न करें. संतुलित दृष्टिकोण अपनाएं। सप्ताह में दो से अधिक व्रत रखना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक हो सकता है, साथ ही साथ यदि हम किसी बीमारी से पीड़ित हैं तब भी व्रत करने से पहले चिकित्सक की राय ले लेनी चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि व्रत के समय यदि कोई दवाई निरंतरता से लेने वाली है उसे कैसे लिया जाए .उदाहरण के लिए शुगर, थायराइड एवं ब्लड प्रेशर की दवाइयां निरंतर ली जाती हैं अतः अपने चिकित्सक से यह जरूर पूछ लेना चाहिए की व्रत करने की स्थिति में इन्हें कैसे और कब लेना है।
व्रत और उपवास, जब समझदारी और संयम के साथ किए जाएं तो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकते हैं। यह न केवल शरीर को डिटॉक्स करता है, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है। हालांकि, इसके लाभ व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थिति और उपवास के तरीके पर निर्भर करते हैं। इसलिए उपवास अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात
और हां, अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि किसी भी सुनी सुनाई जानकारी, नेट या किताब आदि में पढ़कर बिना सोचे समझे नहीं व्रत करने चाहिएं और न ही कोई दवाई लेनी चाहिए इसके लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों का परामर्श ही बेहतर रहता है।