धरती को अब भाषण नहीं, आपका साथ चाहिए

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       आज 22 अप्रैल है। विश्व पृथ्वी दिवस! हम हर साल की तरह फिर से याद कर रहे हैं कि हमें इस धरती को बचाना है। स्कूलों में भाषण होंगे, दफ्तरों में स्लोगन लगाए जाएंगे, सोशल मीडिया पर “#SaveEarth” ट्रेंड करेगा। लेकिन क्या वाकई कुछ बदलेगा?

पृथ्वी अब चेतावनी नहीं दे रही। अब वो गुस्से में है। बेमौसम बारिश, भूकंप, लू, बाढ़, सूखा – ये सब कुदरत की प्रतिक्रिया है। यह केवल प्राकृतिक घटनाएं नहीं, हमारी लापरवाहियों का नतीजा हैं।

धरती हमसे थक चुकी है। वो कह रही है – “अब बहुत हुआ।”

हम हर दिन प्लास्टिक में लिपटे सामान खरीदते हैं। गाड़ियों से धुआं छोड़ते हैं। बिजली ऐसे इस्तेमाल करते हैं जैसे ये कभी खत्म नहीं होगी। हमने अपने बच्चों को स्मार्टफोन देना सीखा दिया है, लेकिन स्मार्ट व्यवहार करना खुद नहीं सीखा।

कुछ कड़वी सच्चाइयों से नज़र मिलाइए :-

हर साल 70 लाख लोग वायु प्रदूषण से समय से पहले मर जाते हैं।

90% समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक पाया जाता है।

अगले 25 सालों में कई तटीय शहर समुद्र में समा सकते हैं।

भारत के 70% से ज़्यादा जलस्रोत प्रदूषित हो चुके हैं।

क्या अब भी हम कह सकते हैं कि “सब ठीक है”?

हमें यह समझना होगा कि धरती हमारे बिना जी सकती है, लेकिन हम धरती के बिना नहीं।

पृथ्वी को बचाने के लिए हमें बड़े कदम नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की छोटी-छोटी आदतें बदलनी होंगी,

थैले में सामान लाएं, प्लास्टिक में नहीं।

जितना खाना खा सकें उतना ही लें, व्यर्थ न करें।

पुराने कपड़ों और सामान का दोबारा उपयोग करें।

अपने घर में हरियाली बढ़ाएं, छत पर या बालकनी में भी पेड़-पौधे लगाएं।

बिजली और पानी का उपयोग समझदारी से करें।

सरकारें योजनाएं बना रही हैं लेकिन अकेले सरकार कुछ नहीं कर सकती। हम सबको मिलकर ये लड़ाई लड़नी होगी।

एक मां की तरह पृथ्वी हमें हमेशा देती रही है, बिना शिकायत। लेकिन अब वक्त है कि हम भी कुछ लौटाएं। शब्दों से नहीं, काम से।

अगर आप वाकई पृथ्वी से प्रेम करते हैं, तो उसका सम्मान कीजिए। क्योंकि जब अंतिम नदी सूख जाएगी, जब आखिरी पेड़ कट जाएगा तब हमें अहसास होगा कि पैसा पीने या खाने के काम नहीं आता।

अब भी समय है। धरती को नहीं, खुद को बदलने का।

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