
डायबिटिज प्राचीन काल से ज्ञात रोग है। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व चरक और सुश्रुत ने इसे मधुमेह की संज्ञा दी थी। उच्च रक्तचाप की तरह डायबिटिज भी एक बार हो जाने के बाद जीवन भर का साथी बन जाता ाहै।
जीवन की बहुदिग्ध स्थितियां, खानपान, शारीरिक श्रम से बचना, रहन-सहन, मानसिक परेशानियां, गर्भावस्था और प्रसव आदि बातें डायबिटिज के रोग को प्रभावित करती हैं।
डायबिटिज क्या है
शरीर की तन्तु कोशिकाओं को अपना कार्य कर पाने के लिए शक्ति रक्त में मौजूद ग्लूकोज से मिलती है। रक्त में ग्लूकोज की असामान्य, अधिक तादाद की स्थिति को ‘हाइपरग्लोईसीमिया’ और पेशाब में ‘ग्लूकोज’ निकलने को ‘ग्लाईकोसूरिया’ कहते हैं। शरीर में ग्लूकोज के समुचित उपयोग के लिए एक विशेष हारमोन ‘इंसुलिन’ अनिवार्य है। जब किसी कारणवश शरीर में ‘इंसुलिन’ का अभाव हो जाता है या इंसुलिन निष्क्रिय हो जाती है तब शरीर में ‘हाइपर ग्लाईसिमिया’ और ‘ग्लाइकोसूरिया’ की जो स्थिति बनती है उसे ‘डायबिटिज’ कहते हैं।
कारण, प्रकार एवं लक्षण
मानव शरीर में इंसुलिन तो बनती है पर कुछ अन्य दवाओं के कारण तंतु कोशिकाओं पर उसका वांछित प्रभाव नहीं पड़ता है। तब मानव मोटा होता है। जीवन में श्रम का अभाव एवं जिगर का रोग भी इसका कारण बन जाता है। यह रोग आनुवंशिक भी होता है। यदि माता-पिता दोनों को ‘डायबिटिज’ हो तो उनकी सभी संतानों में डायबिटिज होने की संभावना रहती है।
डायबिटिज दो प्रकार की होती है
टाइप वन:- जब अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं की क्षति के कारण इंसुलिन बनना बंद हो जाता है तो इस तरह की डायबिटिज को ‘टाइप वन’ कहते हैं। इसमें बाहर से इंसुलिन देना अनिवार्य हो जाता है। ‘टाइप वन’ प्रायः कम उम्र के लोगों में और किशोरावस्था में पाई जाती हैं। इसमें प्रायः शरीर दुबला होने लगता है, वजन कम हो जाता है। प्यास, भूख और पेशाब अधिक लगता है।
टाइप टू:- इसमें इंसुलिन तो शरीर में मौजूद रहती है परन्तु कतिपय कारणों से तंतुकोशिकाओं तक नहीं पहंुच पाती। यह प्रायः अधिक उम्र के लोगों में पाई जाती है। इसके रोगी खाना अपनी जरूरत से ज्यादा खाते हैं। जीवन तनावग्रस्त रहता है।
डायबिटिज का दुष्प्रभाव
आंखें:- डायबिटिज रोग का प्रभाव शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ता है जैसे आंख में मोतियाबिंद रोग पहले होता है जिसका पूर्ण इलाज नहीं कराने पर रोगी पूर्णतया अंधे हो जाते हैं।
गुर्दें:- इस रोग का असर गुर्दों पर भी पड़ता है।
रक्तचाप:- रक्तचाप इस रोगी को अधिक होता है जिससे खून की नली में चर्बी का जमाव ज्यादा होता है जिसकी वजह से वह काम करना बंद कर देती हैं। सही रूप से उपचार न होने पर रोगी की मृत्यु हो सकती है।
निराकरण एवं उपचार
जिन लोगों के बाप-दादों या पूर्वजों को यह रोग हो, उन्हें विशेषकर सावधानी रखने की जरूरत होती है। प्रौढ़ावस्था के लोगों को वर्ष में एक बार रक्त तथा पेशाब की जांच कराते रहनी चाहिए। जिनको ‘डायबिटिज’ की पहले संभावना हो, उनको शुरू से ही कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए जैसे – शक्कर, गुड़, मिठाई, घी, मक्खन आदि का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
शरीर को आलसी नहीं बनने देना चाहिए। शाक सब्जी, फल, अंकुरित अनाज, चोकर आदि का प्रयोग नियमित करना चाहिए। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चािहए। रोग का लक्षण आते ही अच्छे चिकित्सक को दिखाकर ‘इंसुलिन’ या अन्य दवाओं का प्रयोग करना चािहए।
सावधानियां:- रोगी को अपने पैरों की उंगलियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शरीर को तौलिए से जोर से न रगड़ें, नाखूनों को सावधानी से काटें। धूम्रपान बिलकुल न करें। चिकित्सक की सलाह से ही इलाज नियमित रूप से कराये।
इस तरह यदि समय पर इसका नियमित इलाज हो जाए तो डायबिटिज जैसे रोग से बचा जा सकता है।