नयी दिल्ली, 30 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक के मुकाबले चार के बहुमत से फैसला सुनाया कि अदालतें 1996 के मध्यस्थता और सुलह कानून के तहत मध्यस्थता फैसलों को संशोधित कर सकती हैं।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और तीन न्यायाधीशों न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति संजय कुमार एवं न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने इस मुद्दे पर सहमति व्यक्त की और कहा कि अदालतों को ‘‘सावधानी’’ के साथ फैसलों को संशोधित करने का अधिकार है।
प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने अपने तथा तीन अन्य न्यायाधीशों की ओर से लिखे फैसले में कहा, ‘‘कानून के प्रश्न का उत्तर यह है कि न्यायालय के पास मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 और 37 के अंतर्गत मध्यस्थता संबंधी निर्णयों को संशोधित करने की सीमित शक्ति है।’’
हालांकि, न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन ने असहमति जताते हुए कहा कि अदालतें मध्यस्थता के फैसलों में बदलाव नहीं कर सकतीं।
अदालत ने 19 फरवरी को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।