आंजन धाम : हनुमान जी की जन्मस्थली

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हनुमान भारत वर्ष के लोकदेवता हैं। चंडी, गणपति और शिवलिंग की तरह वे भी उस भारतीयता के  प्रसव क्षणों में उदित हुए हैं जो आर्य एवं आर्येतर अर्थात आदि निषाद किरात, द्रविड़ और आर्य के चतुरंग समन्वय से उत्पन्न हुई हैं। अपने विकसित रूप में यह भारतीय लोकाश्रयी और वेदाश्रयी  दोनों हैं परंतु इसकी पृष्ठभूमि है आदिम लोक संस्कृति ही। हनुमान एक ऐसे लोक देवता हैं जो भारतीय धर्म साधना के प्रस्थान बिंदु पर खड़े हैं और वहां से प्रारंभ करके उसके चरम बिंदु वैष्णव धर्म तक वे विकसित होते गए हैं। अपने आदिम रूप में वे महावीर अर्थात बड़का बरम बाबा और प्रेतराज हैं जबकि भारत का आदि निषाद वीर पूजा पूजा तथा प्रेत पूजा का विश्वासी था । अपने चरम रूप में वे विष्णु की दुर्धर्ष शक्ति और बल के प्रतीक हैं तथा एक ही साथ वराह, नृसिंह ताक्षर्य एवं हयग्रीव तत्वों को अपने भीतर समाविष्ट करके वे अपराजिता एवं अपराजेय वैष्णवी शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। साथ ही साथ दुर्गा स्कंध और गणपति की तरह वे रुद्र तत्व अग्नि के प्रतीक हैं और पार्थिव मंडल एवं मूलाधार चक्र के देवता भी हैं । देह के भीतर वे मरुत अर्थात पांच प्राणों के प्रतीक हैं और वायु पुत्र होने कारण वे मरुत शक्ति भी हैं।

 

उनके जन्म की कथा स्कंद जन्म के समरूप हैं और एक ही कथारूढ़ि  ‘शुक्र का स्थानांतरण’ का दोनों में प्रयोग हुआ है । अतः महाकव्य उन्हें मां का वैष्णवी शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं तो पुराण रुद्र शक्ति के रूप में । पुराणों में स्कंद और हनुमान दोनों की जन्म कथाएं एक ही कथा रूढ़ि  का प्रयोग करती हैं और दोनों का जनक रुद्र या माहेश्वर हैं। यद्यपि स्कंद जन्मकथा का स्रोत निषाद किरात लगता है हनुमान जन्म कथा का निषाद द्रविड़। पुराण इन सारी परंपराओं के लिए व्यापक एवं संयुक्त भूमि प्रस्तुत करते हैं । महाकाव्यों ने, हनुमान के चरित्र में वैदिक सुपर्ण का आवेश स्थापित किया है और उनका समुद्र मंथन भी सीतन्वेषण, वैदिक सुपर्ण द्वारा सोम का आहरण एवं  अमृत कलश के अनुसंधान के समरूप है । कहने का तात्पर्य हनुमान केवल राम कथा के पात्र नहीं । वे एक  वृहत्तर व्यक्तित्व वाले देवता हैं जिनसे आदिम, लोकायत, वैदिक, पौराणिक आदि अनेक अनेक परंपराएं जुड़ी हुई हैं । विष्णुऔर शिव तथा दुर्गा के समानांतर वे लोक और वेद, दोनों का बल लेकर प्रतिष्ठित हैं और उनकी जड़े इतिहास के पाताल तक  गई हैं।

 

भगवान हनुमान के जन्म का इतिहास गुमला जिले के उत्तरी क्षेत्र में अवस्थित आंजनग्राम से जुड़ा हुआ है। यहीं माता अंजनी ने हनुमान को जन्म दिया था। माता अंजनी के नाम से इस गांव का नाम आंजन पड़ा। यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 22 किमी की दूरी पर है। हनुमान जी की जन्मस्थली के कारण यह अब आंजनधाम के रूप में विख्यात है। यह धाम प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। साथ ही देश के अंदर यह ऐसा पहला मंदिर है, जिसमें भगवान हनुमान बाल अवस्था में माता अंजनी की गोद में बैठे हैं। रामनवमी के दिन प्रति वर्ष यहां विशाल मेले  का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती पर विशेष पूजा होती है। माता अंजनी पहाड़ की चोटी पर स्थित गुफा में रहती थीं। यह गुफा गांव से दो किमी दूर पहाड़ की चोटी पर है। इसी गुफा में माता अंजनी ने बालक हनुमान को जन्म दिया था। आज भी यह गुफा आंजन धाम में मौजूद है।

 

हनुमानजी के जन्‍म स्‍थान को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां प्रचलित हैं। रामायण में भी इनके जन्‍मस्‍थान को लेकर कोई खास जिक्र नहीं है। कोई नागपुर में इनका जन्‍मस्‍थान मानता है तो कोई कहता है कि बजरंगबली कर्नाटक में जन्‍मे थे। वाबजूद इसके रामभक्‍त हनुमान के जन्‍मस्‍थल के रूप में जो स्‍थान सबसे ज्‍यादा चर्चित है वह झारखंड के गुमला जिले में स्थित है। गुमला जिले के आंजन धाम में हनुमानजी का जन्‍म हुआ था और मां अंजनी के नाम पर ही इस इलाके का नामकरण किया गया।

धार्मिक मान्यताओं की मानें तो भगवान शिव ने हनुमान का अवतार लिया था। हम में से बहुत कम लोग इस बात को लोग जानते हैं कि भगवान शिव ने कुल 12 अवतार लिए हैं जिनमें से एक अवतार उनका हनुमान का भी है।

 

हनुमान जी की पूजा हर मंगलवार और शनिवार को बड़े ही श्रद्धापूर्वक की जाती है। कहा यह भी जाता हैं कि जो भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, उनके जीवन में सभी कष्टों का निवारण हनुमान जी करते है।

 

मान्यताओं की मानें तो हनुमान जी का जन्म झारखंड के गुमला जिला मुख्यालय से करीब 21 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। इसी वजह से इस जगह का नाम आंजन धाम है। इतना ही नहीं माता अंजनी का निवास स्थान होने की वजह से इस स्थान को आंजनेय के नाम से भी जाना जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि इन पवित्र पहाड़ों में एक ऐसी भी गुफा है जिसका संबंध सीधा-सीधा रामायण काल से जुड़ा है। माता अंजनी इस स्थान पर हर रोज भगवान शिव की आराधना करने आती थीं और इसी कारण से यहां 360 शिवलिंग स्थापित हैं।

   

 यहां एक रहस्‍यमयी गुफा है जिसे गुस्‍से में आकर एक बार मां अंजनी ने बंद कर दिया था। पहाड़ों के बीच स्थित आंजन धाम के दर्शन करने भक्‍त दूर-दूर से आते हैं। यहां पालकोट में सुग्रीव गुफा भी है। मां अंजनी के बारे में मान्‍यता है कि साल के हर दिन अलग-अलग तालाब में स्‍नान करती थी। स्‍नान के बाद वह हर रोज शिवलिंग के दर्शन करती थीं।यहां के स्‍थानीय निवासी बताते हैं कि मां अंजनी को प्रसन्‍न करने के लिए आदिवासियों ने एक बार बकरे की बलि दे दी लेकिन मां उनके इस कार्य से नाराज हो गईं। तब से मां ने गुफा के द्वार को सदा के लिए बंद कर दिया जहां हनुमान जी का जन्‍म हुआ था। तब से यह गुफा आज भी बंद है।

कर्नाटक के कोप्‍पल और बेल्‍लारी में भी एक स्‍थान है जिसे अंजनी पर्वत के नाम से जाना जाता है। इस स्‍थान को किष्किन्धा भी बोला जाता है। मान्‍यता है कि यहां मां अंजनी ने घोर तपस्‍या की थी।

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