
दुनिया का स्वर्ग कहलाने वाला कश्मीर यूं तो तीर्थों का घर है लेकिन कश्मीर क्षेत्र में बाबा अमरनाथ परम पावन एक ऐसा धार्मिक स्थल है जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु उसकी यात्रा कर अपने को धन्य समझते हैं। आदिशक्ति माँ जगदंबा ने इस क्षेत्र में जहां अपना स्थायी निवास बनाया, वहीं ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने भी इसी पावन भूमि को अपना आश्रय स्थल बनाया लेकिन इनमें सर्वाधिक चर्चित तीर्थ अमरनाथ जी का है। बर्फानी बाबा अमरनाथ की गुफा हिम आच्छादित पर्वतों के मध्य 12729 फुट की ऊंचाईईपर स्थित है, जहां विश्व प्रसिद्ध बर्फ का शिवलिंग हैं।
यहाँ भगवान शिव का स्वर्ग प्रकृति द्वारा रचित हिम शिवलिंग का प्रकट होना अपने आप में कौतूहल का विषय है। यह शिवलिंग अमावस्या से पूर्णिमा तक बढ़कर पूर्ण होता हैं व पुनः धीरे-धीरे घट जाता है। बर्फ से ढकी पहाडि़यों में यह गुफा हज़ारों वर्षों तक गुप्त ही रही लेकिन वर्षो पूर्व स्थानीय मुस्लिम गड़रिये बुट्टा मल्लिक ने श्रावण मास में इस गुफा में जब प्राकृतिक हिमलिंग को देखा तो उसने वहाँ के हिंदू पंडितों को इससे अवगत कराया। हिंदू पंडितों ने शिवलिंग के दर्शन कर पुराणों के आधार देकर श्रावण मास में इसकी पूजा-अर्चना कर यहाँ की यात्रा प्रारम्भ की थी।
धीरे-धीरे इस पावन तीर्थ का प्रचार बढ़ने से पूरे भारत से श्रद्धालु श्रावण मास में यहाँ की यात्रा करने लगे जो आज भी अनवरत जारी है। बाबा अमरनाथ की गुफा में पूजा-अर्चना से आने वाली धनराशि का एक भाग आज भी श्रद्धावश बुट्टा मल्लिक के वंशजों को दानस्वरूप दिया जाता है जिसने इस तीर्थ की जानकारी दी थी। बाबा अमरनाथ की यात्रा का मार्ग पहलगाम से शुरू होता है जो जम्मू से बस द्वारा 308 किमी॰ की दूरी तय कर पहुंचा जाता है. यह समुद्रतल से 7500 फुट की ऊंचाईं पर स्थित है। श्रद्धालु पहलगाम से 9 मील का मार्ग तय कर चन्दन बाड़ी पहुंचते हैं व बाद में इससे आगे शेषनाग जाते समय पिस्सुघाटी की 3 किमी॰ की दुर्गम चढ़ाई तय कर 13 किमी॰ दूर शेषनाग पहुँचते हैं। श्रद्धालु यहाँ बर्फीली झील के पानी से स्नान कर आगे बढ़ते हैं। इस झील के बारे ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने अपने गले का नाग इसी झील में त्यागा था। इस झील में सर्प की पूर्णाकृति भी नज़र आती है। यह अमरनाथ यात्रा का तीसरा पड़ाव है।
यहीं से असली अमरनाथ गुफा की ओर श्रद्धालु आगे बढ़ते हैं। पहलगाम से शिव की प्रतीक ’मुबारक छड़ी’ लेकर ये पूरे रास्ते बम-बम भोले के जैकारे के साथ पूरे जोश में नाचते- गाते आगे जाते हैं। इसी रास्ते में पंचतरणी है जिसकी चढ़ाई अत्यंत कठिन है चूंकि यहाँ महागुनस नामक पर्वत हैं जो 14800 फुट ऊंचा है। यह मार्ग बर्फ से ढका रहता है। पर्वत पार करने पर भैरव पर्वत के दामन में पाँच नदियां मिलती हैं। यहाँ श्रद्धालु विश्राम कर पवित्र गुफा की ओर बढ़ते है। यहाँ की गहरी खाइयों मे बहती हिमनदी को देखकर सिहरन पैदा होती हैं। यहाँ बर्फानी बाबा भोलेनाथ की गुफा दिखाई देने लगती हैं व भक्तगण बर्फ के पुल को पार कर अमरगंगा तट पर स्नान कर 100 फुट चौड़ी व 150 फुट लंबी पवित्र गुफा में प्राकृतिक पीठ पर हिम निर्मित शिवलिंग के दर्शन करते हैं। गुफा के बाहर दूर-दूर तक सर्वत्र कच्ची बर्फ देखने को मिलती है। गुफा में हर तरफ पानी टपकता रहता है लेकिन चंद्रमा की कलाओं की भांति शिवलिंग एक विशेष स्थान पर ही बनता है। इस गुफा के ऊपर पर्वत पर श्रीराम कुंड है और इसी कुंड का पानी गुफा मे शिवलिंग पर टपकता है।
इस गुफा में जगह- जगह कबूतर भी रहते है जो ‘जय’ शब्द का उच्चारण करते है। इन कबूतरों के बारे में कहा जाता है कि एक बार जब महादेव नृत्यमग्न थे तो उन्हें देखकर कबूतर ईर्ष्यावश गुटरगू-गुटरगू कर उन्हें बाधा पहुंचाने लगे तो शिव ने कुपित हो उन्हें श्राप दिया कि अब तुम हमेशा यही रहकर पवित्रा गुफा के दर्शनार्थियों के विहन दूर करोगे तब से ये कबूतर यहाँ विघ्नहरणी कहलाता हैं। यात्री भी इनके दर्शन व आवाज़ को सुने बिना गुफा से बाहर नहीं आता। विचित्र गुफा के बाहर एक स्थान पर सफ़ेद भस्म जैसी मिट्टी मिलती है जिसे वे अपनी देह पर मलते है व लौटते समय आस्थावश साथ भी लाते हैं। गुफा के दर्शनों के बाद श्रद्धालु लौटते समय माँ पार्वती व गणेश का पूजन- दर्शन कर शाम को पुनः पंचतरणी लौट जाते हैं। इस तरह भगवान शिव के आराध्य भक्तजन अमरनाथ गुफा के पावन दर्शन व अलौकिक आनंद का अनुभव का अपना जीवन धन्य समझते हैं।