
सुनील कुमार महला
हर वर्ष 17 अप्रैल को ‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। पाठकों को बताता चलूं कि हीमोफीलिया खून की एक काफी दुर्लभ बीमारी है तथा लगभग 10,000 लोगों में से 1 व्यक्ति इससे प्रभावित होता है। वास्तव में, हीमोफीलिया एक गंभीर रक्तस्राव विकार है जो क्लॉटिंग कारकों (यानी, फैक्टर 8 और फैक्टर 9 प्रोटीन) की कमी के कारण होता है। दरअसल, हीमोफीलिया रोग और अन्य वंशानुगत रक्तस्राव विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 17 अप्रैल को इस दिवस को मनाया जाता है। वर्ष 1989 में, विश्व हीमोफीलिया दिवस की शुरुआत विश्व हीमोफीलिया महासंघ (डब्ल्यूएफएच) द्वारा डब्ल्यूएफएच के संस्थापक फ्रैंक नेबेल के जन्मदिन के सम्मान में की गई थी। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि हीमोफीलिया एक दुर्लभ, आनुवंशिक रक्त विकार है, जो तब होता है जब किसी व्यक्ति का रक्त इतना नहीं जमता कि रक्तस्राव धीमा या बंद हो जाए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार हीमोफीलिया तब होता है, जब किसी व्यक्ति के शरीर में सामान्य मात्रा में थक्के जमने वाले कारक(प्रोटीन और प्लेटलेट्स) नहीं होते।
पाठक जानते होंगे कि थक्के जमने वाले कारक ही रक्त के थक्के जमने में मदद करते हैं।खून से जुड़ी यह बीमारी(हीमोफीलिया) थ्राम्बोप्लास्टिन पदार्थ की कमी से होती है। चिकित्सकों के अनुसार हीमोफीलिया एक लाइलाज बीमारी है, जिससे जड़ से नहीं खत्म किया जा सकता। वास्तव में, हीमोफीलिया के पीछे शरीर की एंटी-हीमोफीलिक फैक्टर (एएचएफ) को पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाने की अक्षमता जिम्मेदार है।अगर इस बीमारी के बारे में जल्द पता नहीं चलता है तो इससे जोड़ों, हड्डियों, मांसपेशियों में बार-बार खून बहने से सिनोविटिस, अर्थराइटिस और जोड़ों में स्थायी विकृति हो सकती है। बहरहाल, यहां यदि हम आंकड़ों की बात करें तो हीमोफीलिया एंड हेल्थ कलेक्टिव ऑफ नॉर्थ (एचएचसीएन) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हीमोफीलिया ‘ए’ से पीड़ित अनुमानित 1,36,000 लोग रहते हैं – जो विश्व स्तर पर दूसरे नंबर पर है। जानकारी के अनुसार इनमें से वर्तमान में केवल 21,000 ही पंजीकृत हैं। हालांकि, यह बात अलग है कि भारत में हीमोफीलिया पीड़ितों की वास्तविक संख्या इससे ज़्यादा हो सकती है। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार अनुमान है कि भारत में हीमोफ़िलिया के लगभग 80% मामले अपंजीकृत हो जाते हैं।
बहरहाल,सरल शब्दों में कहें तो हीमोफीलिया एक ऐसी बीमारी है, जो खून के थक्के बनने की क्षमता को सीमित कर देती है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह बीमारी लगभग वंशानुगत होती है और महिलाओं की तुलना में ज़्यादातर पुरुषों को प्रभावित करती है। दरअसल, एक बच्चे के लिंग का निर्धारण करने के तरीके में शामिल आनुवंशिकी के कारण, महिलाओं की तुलना में पुरुष हीमोफीलिया के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इससे पीड़ित लोगों में रक्तस्राव अपने आप या किसी चोट के कारण हो सकता है तथा इससे पीड़ित लोगों में रक्तस्राव नियंत्रित करना मुश्किल होता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि हीमोफ़िलिया से पीड़ित लोगों में क्लॉटिंग फैक्टर का स्तर सामान्य से कम होता है। इससे पीड़ित लोगों में आंतरिक रक्तस्राव एक गंभीर चिंता का विषय है तथा इससे पीड़ित लोगों में संक्रमण का खतरा बना रहता है। वास्तव में, हीमोफीलिया जीन में उत्परिवर्तन या परिवर्तन के कारण होता है, जो रक्त का थक्का बनाने के लिये आवश्यक क्लॉटिंग फैक्टर प्रोटीन बनाने के लिये निर्देश प्रदान करता है। यह परिवर्तन या उत्परिवर्तन क्लॉटिंग प्रोटीन को ठीक से कार्य करने या पूरी तरह समाप्त होने से रोक सकता है। ये जीन X(एक्स) गुणसूत्र पर स्थित होते हैं। जानकारी के अनुसार यह (हीमोफीलिया) दो प्रकार का होता है, जिनमें क्रमशः हीमोफीलिया ‘ए’ और हीमोफीलिया ‘बी’ को शामिल किया जा सकता है। जानकारी के अनुसार हीमोफीलिया ‘ए’ हीमोफीलिया का सबसे सामान्य प्रकार है। इसमें रक्त में थक्के बनने के लिये आवश्यक ‘फैक्टर 8’ की कमी हो जाती है। वहीं दूसरी ओर हीमोफीलिया ‘बी’ बेहद कम सामान्य है। हीमोफीलिया ‘बी’ में थक्के बनने के लिये आवश्यक ‘फैक्टर-9’ की कमी हो जाती है। उल्लेखनीय है कि हीमोफीलिया ‘ए’, लगभग 5,000 में से एक (1) व्यक्ति में होता है, जबकि हीमोफीलिया ‘बी’ इससे भी दुर्लभ है, जो कि लगभग 20,000 में से 1 व्यक्ति को होता है।
बहरहाल,पाठकों को बताता चलूं कि ‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’ वर्ष 2022 की थीम ‘सभी के लिये पहुँच: साझेदारी: नीति: प्रगति, अपनी सरकार को शामिल करना, विरासत में मिली रक्तस्राव विकारों को राष्ट्रीय नीति में एकीकृत करना’ रखी गई थी। वहीं साल 2023 में विश्व हीमोफ़िलिया दिवस की थीम थी, ‘ सभी के लिए पहुंच: देखभाल के वैश्विक मानक के रूप में रक्तस्राव की रोकथाम’ थी तथा वर्ष 2024 में थीम ‘सभी के लिए समान पहुँच: सभी रक्तस्राव विकारों को पहचानना’ रखी गई थी। इस साल यानी कि वर्ष 2025 में विश्व हीमोफ़िलिया दिवस की थीम, ‘ सभी के लिए पहुंच: महिलाओं और लड़कियों को भी रक्तस्राव होता है ‘ रखी गई है। वास्तव में, इस थीम का मकसद, रक्तस्राव विकारों से पीड़ित महिलाओं और लड़कियों को बेहतर निदान और इलाज मुहैया कराना है। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि विश्व हीमोफीलिया महासंघ (डब्ल्यूएफएच) के अध्यक्ष सीज़र गैरिडो ने यह बात कही है कि ‘रक्तस्राव विकार से पीड़ित महिलाओं और लड़कियों को पहचानना हमारे समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। अतीत में, उन्हें अक्सर रक्तस्राव विकार से पीड़ित व्यक्तियों के बजाय केवल वाहक के रूप में देखा जाता था। अब समय आ गया है कि हम उनके अनुभवों और संघर्षों को पूरी तरह से स्वीकार करें। महिलाओं और लड़कियों के निदान और उपचार को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है, और ऐसा करने से हमारे पूरे रक्तस्राव विकार समुदाय को मजबूती मिलती है। महिलाओं और लड़कियों सहित सभी के लिए पहुँच के लिए अपना समर्थन दिखाने के लिए 17 अप्रैल को हमसे जुड़ें।’
बहरहाल , वास्तव में, यहां यह एक कटु सत्य है कि आज, रक्तस्राव विकार वाली महिलाओं और लड़कियों का अभी भी कम निदान किया जाता है और उन्हें उचित सेवाएँ नहीं मिल पाती हैं। ऐसे में आज जरूरत इस बात की है कि इसे एक जिम्मेदारी समझते हुए इस पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए। कहना ग़लत नहीं होगा कि हीमोफीलिया की समय पर पहचान, निदान, उपचार और देखभाल के माध्यम से, महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। यहां उल्लेखनीय है कि आज भी हमारे देश के अनेक दूर-दराज के क्षेत्रों(रिमोट एरियाज) में उचित निदान सुविधाओं की कमी के कारण गंभीर रक्त विकार से पीड़ित लगभग 80 प्रतिशत भारतीयों का निदान नहीं हो पाता है। हालांकि, हीमोफीलिया का कोई पुख्ता इलाज नहीं है लेकिन कुछ समय पहले ही एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से यह खबरें आईं थीं कि भारतीय वैज्ञानिकों ने विश्व स्तर पर हीमोफीलिया बीमारी पर एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार हीमोफीलिया के मरीजों के लिए भारत की पहली मानव जीन-थेरेपी सफल रही है। एक प्रतिष्ठित दैनिक में छपी एक खबर के अनुसार ‘गंभीर हीमोफीलिया ‘ए’ से ग्रस्त मरीजों में जब इस थेरेपी का इस्तेमाल किया गया, तो कुछ ही सप्ताह के दौरान उनमें रक्तस्राव की दर शून्य तक पहुंचने के साथ-साथ बार-बार रक्त के थक्के जमाने वाले कारकों को बदलने की आवश्यकता भी नहीं पड़ी।’
अंत में यही कहूंगा कि हालांकि, हीमोफीलिया पर आज भी नये-नये मेडिकल शोध किए जा रहे हैं और इसका पुख्ता इलाज ढूढने की दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है, लेकिन आज भी समय पर हीमोफीलिया की पहचान करके, दवाओं का उपयोग करके, अच्छा पौष्टिक भोजन, नियमित व्यायाम और नियमित रूप से हीमोफीलिया उपचार केंद्र की विजिट करके, हीमोफीलिया से पीड़ित व्यक्ति एक लंबा और खुशहाल जीवन जी सकता है।