नयी दिल्ली, 28 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी के 16 औद्योगिक क्षेत्रों में सीवेज जल शोधन संयंत्रों नहीं होने पर आश्चर्य जताया और कहा कि बिना शोधन के अपशिष्ट जल को यमुना नदी में खुलेआम प्रवाहित किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा की पीठ ने कहा कि स्थिति ‘‘काफी गंभीर’’ और ‘‘अत्यंत खराब’’ है, जो दिल्ली के सभी 33 औद्योगिक क्षेत्रों में साझा अपशिष्ट शोधन संयंत्र (सीईटीपी) लगाने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है।
पीठ ने कहा, ‘‘वास्तव में, दिल्ली के 16 औद्योगिक क्षेत्रों में कोई सीईटीपी नहीं है। यह चौंकाने वाला खुलासा है। इन 16 क्षेत्रों में अपशिष्ट बिना किसी शोधन के खुलेआम बहाया जा रहा है।’’
पीठ ने सभी औद्योगिक क्षेत्रों में सीईटीपी स्थापित करने के निर्देश देने संबंधी उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया।
अदालत ने कहा कि सीईटीपी के कामकाज पर दिल्ली राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम (डीएसआईआईडीसी) द्वारा दाखिल हलफनामे से ‘‘बेहद दयनीय स्थिति’’ का पता चलता है।
अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए आदर्श स्थिति यह होगी कि सभी औद्योगिक क्षेत्रों में हर सीईटीपी में ऐसी निगरानी हो।’’
अदालत ने यमुना में बहाये जाने वाले अशोधित जल के प्रवाह पर अंकुश लगाने के बारे में डीएसआईआईडीसी से जानकारी मांगी थी और यह बताने को कहा था कि क्या सभी उद्योग और उनका अपशिष्ट उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में जलभराव के मामले की सुनवाई कर रही अदालत ने घरेलू और आवासीय क्षेत्रों के लिए 37 सीवेज शोधन संयंत्रों (एसटीपी) की स्थिति पर गौर किया और कहा कि ऐसे 11 संयंत्रों में ‘‘फ्लो मीटर’’ लगाने में देरी से ‘‘असंतोषजनक स्थिति’’ उजागर होती है।
शुक्रवार को अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड को शेष एसटीपी में फ्लो मीटर लगाने के लिए समय दिया।