
आज मनुष्य की जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन आए हैं। खान-पान, रहन-सहन पूरी तरह से बदल चुका है।बढ़ती जनसंख्या, विकास, औधोगिकीकरण, जलवायु परिवर्तन के बीच आज मनुष्य भागम-भाग और दौड़-धूप भरी जिंदगी जी रहा है। मनुष्य के पास न स्वयं के लिए समय बचा है और न ही दूसरों के लिए। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के इस जमाने में आदमी आधुनिक तकनीक और प्रौद्योगिकी के बीच जी रहा है। न चैन से सोने का समय आदमी के पास बचा है और न ही ठीक से खाने-पीने का ही। बेशक आज मेडिकल क्षेत्र में प्रगति से मनुष्य की औसत आयु में आज तेजी से इजाफा हुआ है लेकिन बावजूद इसके आज आदमी की कुल आयु में कमी आई है। पहले के जमाने में आदमी सौ बरस या इससे भी अधिक उम्र तक जीता था, जबकि आज कुल आयु साठ-पैंसठ तक ही रह गई है।
लंबा और स्वस्थ जीवन आज पहले की भांति नहीं रहा है। बढ़ते प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, खान-पान का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा है। हमारे यहां कहा गया है-‘जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन।’ मतलब यह है कि व्यक्ति जैसा खाना खाएगा उसका मन भी वैसा ही होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो हम जो भी खाते हैं, जैसा भी खाते हैं, वही और वैसा ही हमारा शरीर भी बनता है। हमारे सनातन धर्म में भोजन को ईश्वर का स्वरूप माना गया है। इसीलिए हमारे शास्त्रों में भी यह कहा गया है ‘अन्नं ब्रह्म’ अर्थात् अन्न ब्रह्म है।वर्तमान समय में पहले ही कीटनाशकों/उर्वरकों के बहुतायत प्रयोग से खाद्य पदार्थ विशुद्ध नहीं बचे हैं, वहीं यदि उनके पकाने एवं ग्रहण करने के तौर-तरीके और समय भी बदल गये हैं। आज न तो मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाया जाता है और न ही मोटे अनाज पर हमारा ध्यान रह गया है। हम फास्ट फूड,जंक फूड की ओर बढ़ रहे हैं। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की ओर हम अग्रसर हैं।
विडम्बना यह भी है कि आज की युवा पीढ़ी तो भोजन बनाने व उसे ग्रहण करने के नियमों तक से अनजान है। हमारे हिन्दू धर्म में तो खास मौकों पर उपवास रखना सदियों से चला आ रहा है जिसका धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्व है। जब हम कुछ समय के लिए खाना छोड़ देते हैं तो हमारे शरीर के भीतर अनेक चमत्कारिक बदलाव आते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि उपवास मनुष्य जीवन को लंबा करने का सबसे प्रभावी व सही तरीका हो सकता है। आधुनिक विज्ञान, गीता, उपनिषद और वेद सभी इस बात को सिद्ध करते हैं कि समय-समय पर उपवास करना न सिर्फ शरीर, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो व्रत/उपवास रखने से मनुष्य की आत्मशुद्धि, आत्मानुशासन और आध्यात्मिक विकास होता है। यदि हम व्रत/उपवास के लाभों की बात करें तो इससे हमारे शरीर की सफाई होती है, पाचनतंत्र बेहतर होता है, और हमारा वजन भी नियंत्रित रहता है। यहां तक कि यह हमारे तनाव, अवसाद और चिंता को कम करने में भी मदद करता है।
अनेक वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि उपवास शरीर में ऑटोफैगी को बढ़ावा देता है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि ऑटोफैगी वह प्रक्रिया है जिसमें शरीर खुद को साफ करता है, कमजोर और क्षतिग्रस्त सेल्स को नष्ट कर नए टिश्यू के निर्माण में सहायता करता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि आज की जीवनशैली में मनुष्य को यह चाहिए कि वह उपवास/व्रत से अपनी कोशिकाओं के स्तर पर शुद्धिकरण करे। यहां यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि आज का मनुष्य जीवन का एक तिहाई भाग सोने में ही बिता देता है। अन्य 3 से 4 घंटे शौचालय, स्नान, खाने पीने आदि में निकाल देता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि हम हमारे जीवन का लगभग 50% भाग सिर्फ रख-रखाव में ही निकाल देते हैं।
यहां एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि आज लोगों को जितना खाना चाहिये, उससे वे बहुत ज्यादा खा रहे हैं, बस इसलिये कि उन्हें यह बताया गया है, ‘तुम्हें ज्यादा खाना चाहिये नहीं, तो तुम कमज़ोर हो जाओगे।’ वास्तव में, एक 25-30 साल के युवा के लिए दिन में दो बार अच्छा भोजन काफी है – एक सुबह में और एक शाम को। शाम के खाने के बाद, सोने के समय तक, कम से कम तीन घंटे का अंतराल होना चाहिये। अगर इसमें 20 से 30 मिनिट की हल्की शारीरिक गतिविधि हो-जैसे बस चलना-तो कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारा शरीर अधिकतर स्वस्थ रहेगा। वास्तव में वजन कम करने और फिट रहने के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग एक बेहद लोकप्रिय तरीका है। यह हमेशा से योगिक संस्कृति का हिस्सा रहा है और सच तो यह है कि यह हमारे अधिकतम स्वास्थ्य लाभ के लिए सबसे सही व सटीक तरीका भी है। जब हम कुछ समय के लिए भोजन से विराम लेते हैं, तो हमारा शरीर खुद को रिपेयर करने लगता है और इससे बुढ़ापा देर से आता है। उपवास से माइटोकॉन्ड्रियल बायोजेनेसिस बढ़ता है जिससे ज्यादा एनर्जी पैदा होती है और कोशिकाओं यानी सेल्स की उम्र बढ़ती है ।अनेक शोध यह भी बताते हैं कि उपवास इंसुलिन संवेदनशीलता को सुधारता है, जिससे टाइप-2 डायबिटीज का खतरा कम होता है। यह सूजन यानी इन्फ्लेमेशन को कम करता है, जिससे कैंसर और हृदय जैसे गंभीर रोगों का खतरा भी घटता है।व्रत/ उपवास करने से स्टेम सेल पुनर्जीवित होते हैं जिससे मनुष्य का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वास्तव में सच तो यह है कि हमार शरीर और हमारा मस्तिष्क तभी सबसे बेहतर तरीके से काम करते हैं, जब हमारा पेट खाली(व्रत/उपवास के कारण) होता है। हम हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं कि हम जितना भी खाएं, हमारा पेट हमेशा दो से ढाई घंटे के भीतर खाली हो जाना चाहिए। शरीर में जो भी सुधार और शुद्धिकरण होना चाहिए, उसके लिए हमारे पेट का खाली होना जरूरी है। यह बहुत ही जरूरी व आवश्यक है नहीं तो कोशिकाओं के स्तर पर शुद्धिकरण नहीं हो पाएगा। हम चीजों का ढेर लगा लेंगे और फिर हमें तमाम तरह की समस्याएं होंगी।
पहली बात तो यह है कि हमारे शरीर में जड़ता बढ़ेगी। वास्तव में हमें इस बात को समझना चाहिए कि जब शरीर को खाने की आवश्यकता नहीं हो, तब हमें भोजन से बचना चाहिए। आजकल के समय में, हम बिना सोचे-समझे हर समय(दिन-रात ,दोपहर)खाते रहते हैं जबकि हमारे शरीर को कुछ दिनों के लिए भोजन से आराम की आवश्यकता होती है। उपवास/व्रत इस समझ को बढ़ाता है और शरीर के संकेतों को सुनने की क्षमता को जागृत करता है। इस प्रकार, उपवास भोजन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को सुधारता है और हमें अपने शरीर के साथ एक नया रिश्ता बनाने का अवसर मिलता है। वास्तव में हमारे शरीर की ऊर्जा का मुख्य स्रोत सिर्फ भोजन नहीं है, बल्कि सूर्य की रोशनी, हवा और पानी भी हमारी ऊर्जा का हिस्सा हैं। व्रत/ उपवास से शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता पूरी करने के लिए इन प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग करने का अवसर मिलता है। जब हम कम खाते हैं, तो शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा का संचार होता है, जिससे हम अधिक सक्रिय और ऊर्जावान महसूस करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि उपवास को हमें एक जागरूक और ध्यानपूर्ण साधना के रूप में अपनाना चाहिए, ताकि इसका पूरा लाभ लिया जा सके। जब हम नियमित अंतराल पर उपवास करते हैं, तो यह शरीर के प्राकृतिक चक्र को संतुलित करता है और हमें स्वस्थ रखने में मदद करता है।
उपवास/व्रत हमें दीर्घायु करते हैं लेकिन हमें भोजन पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है, क्यों कि आज हम आनन-फानन में ही भोजन करते हैं। भोजन पर हमारा ध्यान नहीं होता। श्रीमद्भगवतगीता में कृष्ण एक जगह कहते हैं, ‘भोजन करते हुए हमारा सारा ध्यान सिर्फ भोजन पर होना चाहिए क्योंकि भोजन सिर्फ शरीर के लिए नहीं, बल्कि आत्मा के लिए भी होता है।’ वास्तव में स्वास्थ्य और खुशी पाने के लिए, व्यक्ति को संतुलित जीवन जीने की ज़रूरत है। भगवद् गीता के अध्याय 6 श्लोक 17 में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं ‘युकाहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु,युक्तस्वप्नवबोधस्य योग भवति दुःखहा।’इसका तात्पर्य यह है है, ‘जिसका आहार और क्रियाकलाप संतुलित है, जिसके कार्य उचित हैं, जिसके सोने और जागने के घंटे नियमित हैं, और जो ध्यान के मार्ग का अनुसरण करता है, वह दुख या अप्रसन्नता का नाश करने वाला है।’ वास्तव में भगवान श्री कृष्ण का यह संदेश आज भी प्रासंगिक है जिसे आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों और आंकड़ों के विश्लेषण द्वारा प्रमाणित किया गया है। अंत में यही कहूंगा कि संयम और विविधता ही आज के आहार विशेषज्ञों की अवधारणा का मूलमंत्र है। खान-पान में संयम के साथ-साथ सोच, मनोरंजन और कार्यों में संयम ही स्वस्थ जीवन का रहस्य है।