
विमानन उद्योग में दो दशकों से अधिक के अनुभव जो मैंने अंकेक्षक, सलाहकार और टॉप मैनेजमेंट के विभिन्न भूमिकाओं में पाया है और जैसा मैंने इस गतिशील क्षेत्र के परिवर्तन को बहुत करीब से देखा है, ऐसे में मैं कह सकता हूं कि विमानन क्षेत्र में ऑटोमेशन और देशी नवाचार की बहुत जरुरत है . ऐसा नहीं है कि अत्याधुनिक विमान डिजाइनों से लेकर यात्रियों के लिए सहज अनुभव तक नवाचार ने ऊंची उड़ान नहीं भरी है. फिर भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र अभी भी पुराने तरीकों से जकड़ा हुआ है, वह है ग्राउंड हैंडलिंग. जैसे-जैसे भारत का विमानन उद्योग 2030 तक प्रति वर्ष 300 मिलियन यात्रियों के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, पारम्परिक ग्राउंड हैंडलिंग प्रैक्टिस की अक्षमताएं इस प्रगति को बाधित करने का खतरा पैदा कर सकती हैं जिस पर अभी से सोचा जाना जरुरी है. इसका समाधान ऐसा नहीं है कि नहीं है. स्वचालन, स्मार्ट कार्यबल प्रबंधन और स्वदेशी विनिर्माण की ओर एक साहसिक बदलाव
इसका समाधान बन सकता है.
हमें पारंपरिक ग्राउंड हैंडलिंग से निकलना होगा. ग्राउंड हैंडलिंग विमानन संचालन की रीढ़ है. फिर भी यह पुरानी प्रणालियों और मानव श्रम पर अत्यधिक निर्भरता के कारण जटिलताओं से जूझ रही है. जब भी कोई विमान उतरता है तो लगभग 20 कर्मचारी सामान संभालने, ईंधन भरने, सफाई और अन्य कार्यों के लिए जुट जाते हैं. यह श्रम-प्रधान दृष्टिकोण मानवीय भूल की संभावनाओं, उन पर अति निर्भरता, ओवरटाइम, परिवहन, प्रशिक्षण और कार्यबल प्रबंधन के खर्चों के कारण लागत और जोखिम दोनों को बढ़ाता है. परिचालन कर्मचारियों, बफर कर्मचारियों और निष्क्रिय श्रमिकों के बीच संतुलन बनाना एक जटिल चुनौती है, जो अनियमित उड़ान समय और मौसमी मांग के उतार-चढ़ाव से और जटिल हो जाती है.
हालांकि IoT और बुनियादी स्वचालन जैसी प्रौद्योगिकियों ने कुछ हद तक इस क्षेत्र में प्रवेश किया है लेकिन उनकी स्वीकार्यता नियामक बाधाओं, बदलाव के प्रति प्रतिरोध और एक समग्र दृष्टिकोण की कमी के कारण थोड़ी धीमी है. यदि AI-संचालित प्रणालियां और ऑटोमेटेड उपकरण प्रति विमान कर्मचारियों की संख्या को 10 तक कम कर दें तो यह एक क्रन्तिकारी बदलाव होगा और मानवजनित भूलों को भी कम करेगा . इसके कई लाभ होंगे जैसे कि लागत बचत, कम जनशक्ति और ओवरटाइम खर्च से बचत से नवाचार के लिए बजट में राहत. कार्यबल अनुकूलन से मानव संसाधनों का स्मार्ट आवंटन उत्पादकता की वृद्धि होगी और बेहतर दक्षता प्राप्त होगी जो इस उद्योग को बढ़ते यात्री भार के लिए तैयार करेगी. साथ में सुव्यवस्थित संचालन, ऊर्जा अपशिष्ट और उत्सर्जन को कम कर सस्टेनिबिलिटी के उद्देश्यों को प्राप्त करेगी.
ऐसा भी नहीं है कि यह कोई दूर का सपना है. यह एक ऐसा बदलाव है जो हमारी पहुंच में है, बशर्ते हम निर्णायक कदम उठाएं. हम एविएशन में प्रयोग होने वाले उपकरणों में ऑटोमेशन और वो भी ‘मेक इन इंडिया’ के द्वारा इसे एक गेम-चेंजर अभियान में बदल सकते हैं. ग्राउंड हैंडलिंग उपकरण में जो स्कोप है वह भारत के लिए अपनी विनिर्माण क्षमता को प्रदर्शित करने का एक सुनहरा अवसर है. आज, सेवा प्रदाता पुशबैक टग, सामान लोडर और ऐरोवाश प्रणालियों को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं से आयात करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करते हैं. ये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां नहीं हैं. ये भारत में भी बनाये जा सकते हैं और भारत की क्षमताओं के भीतर हैं. IITs, HAL जैसे PSUs और निजी क्षेत्र के नवोन्मेषकों के शक्तिशाली नेटवर्क के साथ, भारत इन उपकरणों को स्थानीय स्तर पर लगभग आधी लागत में उत्पादन कर सकता है.
आप इसकी कल्पना करें कि भारत में पुशबैक मशीनें, ब्रिज माउंटेड उपकरण, GPU, ट्रेक्टर, ग्रीन वाश आदि मशीनें बन रहीं हैं. ये देशी उद्यम उत्पादन के पुरस्कार लागत बचत से कहीं आगे अन्य लाभ भी देते हैं. जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता आयात पर निर्भरता कम होने से भारत का व्यापार संतुलन मजबूत होता है.रोजगार सृजन एक संपन्न विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र उच्च-कौशल रोजगार उत्पन्न करता है. वैश्विक नेतृत्व निर्यात-तैयार उपकरण भारत को विमानन नवाचार का केंद्र बनाते हैं. आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन स्थानीय उत्पादन उद्योग को किसी भी वैश्विक व्यवधानों से बचाता है.
यह उपाय केवल ग्राउंड हैंडलिंग के बारे में नहीं है. यह सम्पूर्ण विमानन पारिस्थितिकी तंत्र और इसे औद्योगिक आधार बनाने के बारे में है जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ के साथ प्रतिस्पर्धा करे.
इस दृष्टिकोण को साकार करने के लिए सभी हितधारकों विमान निर्माताओं, हवाई अड्डा प्राधिकरणों, ग्राउंड हैंडलिंग फर्मों और नीति निर्माताओं के एकजुट प्रयास की आवश्यकता है. विशेष रूप से भारतीय सरकार के पास इस क्षमता को अनलॉक करने की चाबी है. तीन सूत्री रणनीति के तहत पहला स्वदेशी नवाचार को प्रोत्साहन जिसमें विनिर्माण करने वालों को कर छूट, अनुदान और R&D फंडिंग तथा भारतीय बौद्धिक संपदा को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए पेटेंट दाखिल करना शामिल है.
दूसरी रणनीति में वैश्विक साझेदारियां बनाना. ICAO, IATA और विदेशी नियामकों के साथ बात कर स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन को तेज किया जाय ताकि यह सुनिश्चित हो कि ये वैश्विक मानकों को पूरा कर रहें हैं तथा वैश्विक बाजार में इनकी मांग बढ़े.
तीसरी रणनीति में विमानन के लिए ‘मेक इन इंडिया’ मिशन की शुरुआत हेतु एक समर्पित टास्क फोर्स बनाएं जो विमानन क्षेत्र में उत्पादन को
प्रोत्साहित एवं सुव्यवस्थित करे, निवेश आकर्षित करे और भारत को विनिर्माण महाशक्ति के रूप में स्थापित करे.
भारत का विमानन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है. यात्री यातायात में वृद्धि और हवाई अड्डों की संख्या बढ़ने के साथ, ग्राउंड हैंडलिंग को आधुनिक बनाने का समय अभी ही है. स्वचालन और स्थानीय विनिर्माण केवल उन्नयन नहीं हैं ये एक प्रतिस्पर्धी, टिकाऊ भविष्य के लिए अनिवार्य हैं.
मुझे भारत के गतिशील युवा उड्डयन मंत्री श्री किंजरापु राममोहन नायडू से बड़ी उम्मीदें हैं. जब राष्ट्र की विमानन महत्वाकांक्षाएं उड़ान भर रही हैं, उनका नेतृत्व हमें एक अभूतपूर्व परिवर्तन की ओर ले जा सकता है. मैं उनसे और उद्योग के युवा, दूरदर्शी नेताओं से आग्रह करता हूं कि वे स्वचालन और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को अपनाएं. हम भविष्य की मांगों को केवल पूरा न करें, उन्हें पुनर्परिभाषित करें.
भारत के पास प्रतिभा, प्रौद्योगिकी और दृढ़ता है. साथ मिलकर हम ग्राउंड हैंडलिंग को लागत केंद्र से विमानन उत्कृष्टता के आधार में बदल सकते हैं, भारत को न केवल उपभोक्ता बल्कि विश्व-स्तरीय विमानन समाधानों का सृजनकर्ता बना सकते हैं. रनवे आज साफ है. अभी उड़ान भरने का समय है.