स्वस्थ व उत्साहपूर्ण बने रहने के लिए बच्चों के साथ समय बिताएं

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कौन है जो स्वस्थ रहना नहीं चाहता? हम सभी स्वस्थ रहना चाहते हैं। स्वस्थ रहने के लिए क्या कुछ नहीं करते लेकिन फिर भी कई बार सफलता नहीं मिलती। स्वास्थ्य व आरोग्य की तरफ़ जितना दौड़ते हैं स्वास्थ्य व आरोग्य और हममें उतना ही अंतर बढ़ता जाता है। मात्रा अच्छे भोजन, व्यायाम व दवाओं आदि से पूर्णतः स्वस्थ रहना संभव नहीं। यदि जीवन में सचमुच स्वस्थ व रोगमुक्त रहना चाहते हैं तो अच्छे भोजन, व्यायाम व दवाओं के साथ-साथ हमेशा प्रसन्न रहने का प्रयास करना भी ज़रूरी है।
प्रसन्नता व स्वास्थ्य वास्तव में एक दूसरे के पर्याय व पूरक हैं। हमेशा स्वस्थ बने रहने के लिए प्रसन्नता और प्रसन्नता के लिए बच्चों के साथ समय व्यतीत करना प्रसन्न रहने का अचूक नुस्ख़ा है। हम अपना बचपन वापस नहीं लौटा सकते लेकिन बच्चों के साथ समय गुज़ारने पर उसका आनंद अवश्य ले सकते हैं।
बच्चे बड़े सरल हृदय होते हैं। उन्हीं की तरह सरल हृदय बनकर उनसे बात कीजिए। जब हम अपनी कुटिलता या अत्यधिक चतुराई का त्याग करके सीधे-सच्चे बन जाते हैं तो हमें सचमुच प्रसन्नता की अनुभूति होती है।
बच्चों के साथ समय बिताना प्रसन्नतादायक होता है। बच्चों से कुछ सुनिए और उन्हें भी सुनाइए। बच्चों के साथ उनके ही खेल खेलिए। उनके साथ कोई प्रतियोगिता कीजिए। आप हारें या जीतें, प्रसन्नता अवश्य मिलेगी। कुछ दिन पहले की बात है। मेरे पैरों की ऐडि़यों में कई दिनों से दर्द था। बाहर से लौटा था अतः चलने के कारण दर्द कुछ बढ़ भी गया था। जैसे ही घर आकर बैठा हमारा चौदह महीने का पौत्रा मेरे पास आ गया और हमारे साथ खेलने लगा। उसने पास रखे रैक की सारी पत्रिकाएँ ज़मीन पर बिखेर दीं। फिर मेरी ओर इस प्रकार देखने लगा मानो पूछ रहा हो कि उसने कुछ ग़लत तो नहीं किया। ‘नहीं भाई तुम कैसे ग़लत हो सकते हो? तुमने तो बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।’ मैंने भी कुछ इस अंदाज़ से उसे देखा और उसके इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए उसकी पीठ थपथपाई। उसने फ़ौरन एक पत्रिका उठाई और मुझे पकड़ा दी। मैंने मुस्कुराते हुए उसके हाथ से पत्रिका ले ली और फिर उसकी पीठ थपथपाई।
जब उसे विश्वास हो गया कि उसने कोई वर्जित या अकरणीय कार्य नहीं किया है तो उसने झट से एक और पत्रिका उठाई और फिर मुझे पकड़ा दी। मैंने फिर उसकी पीठ थपथपाई। उसने प्रसन्नता से किलकारी मारी और नाचने व ताली बजाने लगा जैसे उसने सचमुच कोई अद्वितीय कार्य किया हो। उसने फ़ौरन एक और पत्रिका उठाई और मुझे पकड़ा दी। मैंने पुनः उसकी पीठ थपथपाई। यह सिलसिला देर तक चलता रहा।
उसके नन्हें-से मुखारविंद पर कुछ असंभव-सा व कुछ रचनात्मक-सा करने की संतुष्टि व प्रसन्नता के जो भाव थे, वे सभी को आनंदित करने वाले थे। उसने सचमुच अद्वितीय कार्य किया था। उसके चेहरे पर प्रसन्नता देखकर मैं भावविभोर हो रहा था, प्रसन्नता के सागर में डुबकियाँ लगा रहा था। दर्द न जाने कहाँ चला गया था। 

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