भारत की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का ‘ह्रास’ बंद होना चाहिए: सोनिया

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नयी दिल्ली, 31 मार्च (भाषा) कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की शिक्षा नीति की सोमवार को आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि इस सरकार का मुख्य एजेंडा सत्ता का केंद्रीकरण, शिक्षा का व्यावसायीकरण तथा पाठ्यपुस्तकों का सांप्रदायिकरण है।

कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष ने एक लेख में कहा कि ये तीन ‘सी’ आज भारतीय शिक्षा को परेशान कर रहे हैं और भारत की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का यह ‘ह्रास’ बंद होना ही चाहिए।

गांधी ने एक समाचार पत्र में प्रकाशित लेख ‘‘द ‘3सी’ दैट हॉन्ट इंडियन एजुकेशन टुडे’’ (तीन ‘सी’ जो भारतीय शिक्षा के लिए आज चिंता का विषय हैं) में कहा कि हाई-प्रोफाइल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की शुरूआत ने एक ऐसी सरकार की वास्तविकता को छिपा दिया है जो भारत के बच्चों और युवाओं की शिक्षा के प्रति बेहद उदासीन है।

उन्होंने कहा, ‘‘पिछले दशक में केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि उसे शिक्षा के क्षेत्र में केवल तीन मुख्य एजेंडे के सफल क्रियान्वयन की चिंता है – केंद्र सरकार के पास सत्ता का केंद्रीकरण, शिक्षा में निवेश को निजी क्षेत्र को सौंपना एवं इसका व्यावसायीकरण तथा पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रम एवं संस्थानों का सांप्रदायिकरण करना।’’

गांधी ने आरोप लगाया कि पिछले 11 वर्ष में इस सरकार के कामकाज की पहचान ‘‘अनियंत्रित केंद्रीकरण’’ रही है, लेकिन इसके सबसे हानिकारक परिणाम शिक्षा के क्षेत्र में हुए हैं।

उन्होंने कहा कि केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (सीएबीई), जिसमें केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के शिक्षा मंत्री शामिल हैं, की बैठक सितंबर 2019 से नहीं बुलाई गई है।

उन्होंने कहा कि एनईपी 2020 के माध्यम से शिक्षा में बड़े बदलाव करने और इसे लागू करते समय भी सरकार ने इन नीतियों के कार्यान्वयन पर राज्य सरकारों से एक बार भी परामर्श करना उचित नहीं समझा।

गांधी ने लिखा, ‘‘यह सरकार के इस एकल संकल्प का प्रमाण है कि वह भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में शामिल विषय पर भी अपनी आवाज के अलावा किसी और की आवाज नहीं सुनती।’’

उन्होंने कहा, ‘‘संवाद की कमी के साथ-साथ ‘धौंस जमाने की प्रवृत्ति’ भी है। इस सरकार द्वारा किए गए सबसे शर्मनाक कार्यों में से एक काम यह है कि राज्य सरकारों को समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत मिलने वाले अनुदान को रोककर मॉडल स्कूलों की पीएम-श्री (या ‘पीएम स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया’) योजना को लागू करने के लिए मजबूर किया गया।’’

उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के 2025 के दिशा-निर्देशों के मसौदे को भी ‘‘कठोर’’ बताते हुए दावा किया कि इनमें राज्य सरकारों को उनके द्वारा स्थापित, वित्तपोषित और संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से पूरी तरह बाहर रखा गया है।

उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने आमतौर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में नामित किए जाने वाले राज्यपालों के जरिए राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के चयन में स्वयं लगभग एकाधिकार प्राप्त कर दिया है।

उन्होंने कहा, ‘‘समवर्ती सूची में शामिल एक विषय को केंद्र सरकार के एकमात्र अधिकार में बदलने का यह पिछले मार्ग से किया गया प्रयास है और आज के समय में संघवाद के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक खतरे को दर्शाता है।’’

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार शिक्षा प्रणाली का खुलेआम व्यावसायीकरण कर रही है।

उन्होंने दावा किया कि देश के गरीबों को सार्वजनिक शिक्षा से बाहर कर दिया गया है और उन्हें बेहद महंगी एवं कम विनियमित निजी स्कूल प्रणाली के हाथों में सौंप दिया गया है।

उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा में सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ‘ब्लॉक-अनुदान’ की पूर्ववर्ती प्रणाली के स्थान पर उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (एचईएफए) की शुरुआत की है।

राज्यसभा सदस्य गांधी ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार का तीसरा जोर सांप्रदायिकता पर है जो शिक्षा प्रणाली के माध्यम से नफरत पैदा करने और उसे बढ़ावा देने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भारतीय जनता पार्टी की लंबे समय से जारी विचारधारा के अनुरूप है।’’

उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूली पाठ्यक्रम की रीढ़ राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पाठ्यपुस्तकों में भारतीय इतिहास के कुछ हिस्सों को हटाने के इरादे से बदलाव किया गया है।

गांधी ने कहा, ‘‘महात्मा गांधी की हत्या और मुगल भारत से संबंधित अनुभागों को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। इसके अलावा, भारतीय संविधान की प्रस्तावना को पाठ्यपुस्तकों से तब तक हटाए रखा गया जब तक कि जनता के विरोध ने सरकार को इसे एक बार फिर शामिल करने के लिए बाध्य नहीं किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे विश्वविद्यालयों में, हमने शासन के अनुकूल विचारधारा वाली पृष्ठभूमि के प्रोफेसरों की बड़े पैमाने पर भर्ती देखी है, भले ही उनके शिक्षण की गुणवत्ता हास्यास्पद रूप से खराब क्यों न हो।’’

गांधी ने दावा किया कि यहां तक ​​कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय प्रबंधन संस्थान जैसे प्रमुख संस्थानों में भी नेतृत्व के पद अपनी विचारधारा वाले लोगों के लिए आरक्षित किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले दशक में शिक्षा प्रणालियों से सार्वजनिक सेवा की भावना को व्यवस्थित रूप से हटाया गया है और शिक्षा नीति में शिक्षा तक पहुंच एवं गुणवत्ता के बारे में कोई चिंता नहीं की गई है।

गांधी ने लिखा, ‘‘केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकरण के इस एकतरफा प्रयास का परिणाम हमारे छात्रों पर सीधा पड़ा है। भारत की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का यह ह्रास समाप्त होना चाहिए।’’

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