
शुक्रवार की शाम है। पूरे सप्ताह की थकान को पीछे छोड़ते हुए, आप सुकून भरे पल की खोज में हैं। सोफे पर पैर फैलाकर, हाथ में अपने पसंदीदा स्नैक्स लिए, आप एक अच्छी फिल्म देखने की तैयारी करते हैं।
यह पल सिर्फ आपका है—आराम, मनोरंजन और खुशियों से भरा।
मनोरंजन की इस चाह में ओटीटी प्लेटफॉर्म खोलते ही आप खुद को अनगिनत शीर्षकों की भीड़ में घिरा पाते हैं। पंद्रह मिनट, फिर बीस—समय बीतता जाता है और उत्साह धीरे-धीरे निराशा में बदलने लगता है ।
क्या यह स्थिति आपको जानी-पहचानी लगती है? कल्पना कीजिए, आप एक विशाल पुस्तकालय में खड़े हैं जहां लाखों किताबें चमचमाते आवरण के साथ आपका ध्यानाकर्षण करने को आतुर है । हर किताब एक नई दुनिया का वादा करती है, लेकिन इस भीड़ के बीच आप किसे चुनें? ठीक इसी तरह, जब आप ओटीटी प्लेटफॉर्म पर होते हैं, तो यह अनुभव किसी विशाल डिजिटल जंगल में भटकने जैसा होता है। विकल्पों की इस अद्भुत भरमार के बीच निर्णय लेने की प्रक्रिया एक रोमांचक सफर के बजाय एक अनसुलझी पहेली में बदल जाती है। और अंत में, जब हम कोई विकल्प चुन लेते हैं, तब भी मन में यह सवाल रह जाता है—”क्या मैंने सही चुनाव किया?” यही “विकल्प विरोधाभास” का जादुई लेकिन चुनौतीपूर्ण मायाजाल है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म ने इस चुनौती को पहचानकर इसे अवसर में बदलने की कला में महारत हासिल की है। उनके विशाल सामग्री संग्रह ने, जो कभी निराशा का कारण बन सकता था, मनोविज्ञान और डिज़ाइन रणनीतियों के जरिए उपयोगकर्ता अनुभव को सहज और आनंददायक बना दिया।
‘आपके लिए सुझाव’, ‘वर्तमान में लोकप्रिय’, ‘क्योंकि आपने देखा…’ जैसी श्रेणियां विकल्पों को सीमित कर देती हैं, जिससे निर्णय लेना आसान हो जाता है। व्यक्तिगत अनुशंसाओं का यह तंत्र सूक्ष्म रूप से दर्शकों को उनकी पसंद की सामग्री की ओर ले जाता है, मानसिक बोझ को कम करता है और चयन प्रक्रिया को सरल बनाता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म का यह आकर्षण महज़ संयोग नहीं है बल्कि यह उनकी रणनीतियों और तेज़ी से बढ़ते बाजार का परिणाम है। 2024 में भारत में ओटीटी दर्शकों की संख्या 54.7 करोड़ तक पहुँच गई, जो 2023 के 48.1 करोड़ की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक है। 2023 में इस बाजार का मूल्य ₹29,880 करोड़ था, और यह 2024 से 2032 तक 17.3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है। डिज़्नी+ हॉटस्टार, अमेज़न प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स जैसे दिग्गज प्लेटफॉर्म अपनी स्मार्ट सिफारिशों और ज़िगार्निक प्रभाव जैसी रणनीतियों के जरिए दर्शकों को बाँधे रखने में सफल रहे हैं।
लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म की रणनीति यहीं खत्म नहीं होती। उन्होंने एक और मनोवैज्ञानिक सिद्धांत, ज़िगार्निक प्रभाव, का कुशल उपयोग किया है।
कल्पना कीजिए, आप अपनी पसंदीदा सीरीज़ का एक एपिसोड पूरा करते हैं। क्रेडिट खत्म होते ही दस सेकंड की उलटी गिनती के साथ अगला एपिसोड शुरू हो जाता है। इससे पहले कि आप फैसला करें, कहानी आपको फिर से खींच लेती है।
ज़िगार्निक प्रभाव कहता है कि मस्तिष्क अधूरी चीजों को पूरा करने की तीव्र इच्छा रखता है। ओटीटी प्लेटफॉर्म स्वचालित प्लेबैक और रोचक क्लिफहैंगर्स के जरिए इस प्रवृत्ति का फायदा उठाते हैं। यह दर्शकों को न केवल जोड़े रखता है, बल्कि देखने को एक आदत में बदल देता है।
हर बार जब आप कोई फिल्म या शो देखते हैं तो प्लेटफॉर्म आपके पसंद-नापसंद का डेटा इकट्ठा करता है। यह डेटा उनके एल्गोरिदम को और बेहतर बनाता है, जिससे सिफारिशें अधिक व्यक्तिगत और प्रासंगिक होती जाती हैं। धीरे-धीरे, प्लेटफॉर्म एक ऐसे मित्र में बदल जाता है, जो आपके मूड और रुचियों को समझता है।
हालांकि, इन रणनीतियों पर सवाल भी उठते हैं। आलोचक कहते हैं कि स्वचालित प्लेबैक और अंतहीन अनुशंसाएं उपभोक्ताओं को एक निरंतर चक्र में फंसा सकती हैं। फिर भी, इन तकनीकों की सफलता नकारा नहीं जा सकती।
ओटीटी प्लेटफॉर्म ने विकल्प-भार जैसी समस्या को एक आकर्षक अनुभव में बदल दिया है। उन्होंने तकनीक और मनोविज्ञान को जोड़कर न केवल मनोरंजन को सहज बनाया है बल्कि इसे लगभग आदत में बदल दिया है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म की सफलता उनके उपयोगकर्ता-केंद्रित दृष्टिकोण में निहित है। यह केवल उनकी सामग्री की गुणवत्ता का परिणाम नहीं है, बल्कि मानव मनोविज्ञान की गहरी समझ और उसके कुशल उपयोग का प्रमाण भी है। उन्होंने मनोरंजन को एक व्यक्तिगत अनुभव में बदल दिया है, जो न केवल सहज है, बल्कि व्यसनकारी भी।
तो अगली बार जब आप विकल्पों की भीड़ में खो जाएं, याद रखें कि यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि मनोविज्ञान और तकनीक का सम्मोहन है।
गजेंद्र सिंह
गजेंद्र सिंह एक सामाजिक निवेश विशेषज्ञ हैं, जो पिछले 15 वर्षों से सकारात्मक व्यवस्था परिवर्तन के लिए संगठनों, सरकार और समाज को एकजुट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।