वृक्षों के कटान के विरोध में ‘पेड़ बचाओ-पर्यावरण बचाओ’ आंदोलन

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देहरादून, दो मार्च (भाषा) विकास परियोजनाओं के लिए वृक्षों के काटे जाने के विरोध में लगभग एक साल बाद रविवार को देहरादून से ‘पेड़ बचाओ-पर्यावरण बचाओ’ आंदोलन की फिर शुरुआत हुई।

कई पर्यावरणविद् और बुद्धिजीवी यहां सेंटीरियो मॉल के बाहर इकट्ठा हुए और सरकार से मांग की कि अब दून घाटी में और पेड़ नहीं काटे जाएं। इससे पहले, दिलाराम चौक से सेंटीरियो मॉल तक एक मार्च भी निकाला गया जिसकी अगुवाई जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल, कमला पंत और पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने की।

लोगों को संबोधित करते हुए पंत ने कहा कि पेड़ों के बड़े पैमाने पर कटने से देहरादून बहुत अजीब परिस्थिति से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि जहां कभी पंखे भी नहीं चलते थे, अब लोगों को एयर कंडीशंडनर चलाना पड़ रहा है।

चोपड़ा ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार, राज्य बनने के बाद से अभी तक 25 हजार पेड़ काटे जा चुके हैं और 30-40 हजार पेड़ और काटे जाने प्रस्तावित हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि कुल मिलाकर दून घाटी में एक लाख पेड़ कट जाएंगे जो एक बहुत गंभीर विषय है।

नौटियाल ने कहा कि दून घाटी में किसी भी परियोजना के लिए वन भूमि के हस्तांतरण पर पूरी तरह से रोक लगायी जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि ‘कैंपा’ (क्षतिपूरक वनारोपण प्राधिकरण) निधि के उपयोग में सार्वजनिक पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि उसका इस्तेमाल केवल वनारोपण उद्देश्य के लिए ही किया जाए।

नौटियाल ने लोगों से पूछा कि क्या ऋषिकेश-देहरादून मार्ग के प्रस्तावित चौड़ीकरण के लिए तीन हजार पेड़ केवल इसीलिए काट दिए जाने चाहिए कि उनके बीच का सफर 15 मिनट कम हो जाए। उनके इस सवाल के जवाब में लोगों ने जोर से ‘‘नहीं’’ कहते हुए सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध किया।

नौटियाल ने कहा, ‘‘केवल इसलिए कि हम 15 मिनट पहले पहुंचे, ऋषिकेश-देहरादून मार्ग पर सात मोड़ क्षेत्र को एक फलाईओवर बनाकर तबाह कर दिया जाए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम मांग करते हैं कि सरकार विकास के मॉडल पर पुनर्विचार करे और उसे हमारे सामने खड़े जलवायु संकट से निपटने के लिए संशोधित करे। हम विकास चाहते हैं, पेड़ों का विनाश नहीं।’’

लगभग एक साल पहले भी इस आंदोलन के जरिए गढ़ी कैंट मार्ग के चौड़ीकरण के लिए पेड़ काटे जाने का विरोध किया गया था जिसके परिणामस्वरूप सरकार को अपने कदम पीछे हटाने पड़े थे और यह घोषणा करनी पड़ी थी कि अब पेड़ नहीं काटे जाएंगे।

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