धार्मिक भेदभाव सभी धर्मों के अनुयायियों को प्रभावित करता है: भारत

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संयुक्त राष्ट्र, 15 मार्च (भाषा)भारत ने कहा है कि वह मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं की निंदा करने में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के साथ खड़ा है। साथ ही इस तथ्य को स्वीकार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया कि धार्मिक भेदभाव एक व्यापक चुनौती है जो सभी धर्मों के अनुयायियों को प्रभावित कर रही है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी हरीश ने शुक्रवार को कहा, ‘‘भारत विविधता और बहुलता का देश है। हम दुनिया के लगभग हर बड़े धर्म के अनुयायियों का घर हैं और भारत चार विश्व धर्मों अर्थात् हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म का जन्मस्थान रहा है। 20 करोड़ से ज्यादा नागरिक इस्लाम का पालन करते हैं, इसलिए भारत दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों में से एक है।’’

हरीश ने इस्लामोफोबिया (इस्लाम को लेकर अनावश्यक भय दिखाना) का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में पूर्ण अधिवेशन की अनौपचारिक बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि धार्मिक भेदभाव, घृणा और हिंसा से मुक्त विश्व का निर्माण करना अनादि काल से भारत की जीवन पद्धति रही है।

भारतीय राजदूत ने कहा, ‘‘हम मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं की निंदा करने में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के साथ एकजुट हैं। हालांकि, यह पहचानना भी जरूरी है कि धार्मिक भेदभाव एक व्यापक चुनौती है जो सभी धर्मों के अनुयायियों को प्रभावित करती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा दृढ़ विश्वास है कि सार्थक प्रगति का मार्ग इस बात को स्वीकार करने में निहित है कि विभिन्न रूपों में धार्मिक भय हमारे विविध, वैश्विक समाज के ताने-बाने के लिए खतरा है।’’

हरीश ने शुक्रवार को अपने अभिभाषण की शुरुआत रमजान के पवित्र महीने की बधाई देने के साथ-साथ होली की शुभकामनाएं देकर की, क्योंकि रंगों का यह त्योहार पूरे भारत और दुनिया भर में मनाया जाता है।

भारत ने पूजा स्थलों और धार्मिक समुदायों को निशाना बनाकर की जाने वाली हिंसा में चिंताजनक वृद्धि पर चिंता व्यक्त की।

हरीश ने कहा कि इसका मुकाबला केवल सभी सदस्य देशों द्वारा सभी धर्मों के लिए समान सम्मान के सिद्धांत के प्रति सतत प्रतिबद्धता और ठोस कार्रवाई से ही किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘सभी देशों को अपने सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए और ऐसी नीतियों का पालन नहीं करना चाहिए जो धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देती हों। हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा प्रणाली रूढ़िवादिता या चरमपंथ को बढ़ावा न दे।’’

हरीश ने कहा कि चूंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस दिवस को मना रहा है, इसलिए यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ‘‘इस्लामोफोबिया के खिलाफ लड़ाई, सभी रूपों में धार्मिक भेदभाव के खिलाफ व्यापक संघर्ष से अविभाज्य है।’’ उन्होंने राष्ट्रों से एक ऐसे भविष्य की दिशा में काम करने का आग्रह किया, जहां प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, गरिमा, सुरक्षा और सम्मान के साथ रह सके।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के 60 सदस्य देशों द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव को अपनाया था। इसके तहत 15 मार्च को इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया गया था।

इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने अपने संदेश में कहा कि दुनिया भर के मुसलमान रमजान के पवित्र महीने को मनाने के लिए एक साथ आते हैं, ‘‘कई लोग भय के कारण ऐसा करते हैं – भेदभाव, बहिष्कार और यहां तक ​​कि हिंसा के डर से।’’

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