नयी दिल्ली, 21 मार्च (भाषा) राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लिखित त्रि-भाषा फॉर्मूले के कार्यान्वयन को लेकर राज्य सरकार और केंद्र के बीच बढ़ते विवाद के बीच तमिलनाडु के राज्यसभा सांसदों ने शुक्रवार को केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह दक्षिणी राज्य पर हिंदी भाषा थोप रही है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और इसके तहत प्रस्तावित त्रि-भाषा फॉर्मूले के कार्यान्वयन को लेकर तमिलनाडु सरकार और केंद्र के बीच टकराव चल रहा है।
उच्च सदन में गृह मंत्रालय के कामकाज पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए, एमडीएमके प्रमुख वाइको ने आरोप लगाया कि आपदा राहत कोष जारी करने वाला गृह मंत्रालय, राज्य को ‘परेशान’ कर रहा है।
वाइको ने कहा, ‘‘आपदा राहत कोष जारी करने वाले गृह मंत्री ने हमारे राज्य को सिर्फ इसलिए परेशान किया क्योंकि हम आपकी हिंदुत्व नीति, आरएसएस की नीति, हिंदी और संस्कृत को थोपे जाने के खिलाफ हैं।’’
उन्होंने कहा कि तमिल भाषा, भारत के अलावा दुनिया के 114 से अधिक देशों में रहने वाले लगभग 12 करोड़ लोगों की मातृभाषा है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं गृह मंत्री से पूछना चाहूंगा कि जब वे पहली बार यहां आए थे, तो उन्होंने कहा था कि हिंदी निश्चित रूप से लागू की जाएगी… और फिर आंदोलन शुरू हो गया।’’
वाइको ने स्वयं को ‘‘हिंदी विरोधी आंदोलन का उत्पाद’’ बताया। अन्नाद्रमुक के डॉ एम थंबीदुरै ने कहा कि भाषा के मुद्दे पर वाइको ने जो कहा, वह उसका समर्थन करते हैं।
थंबीदुरई ने कहा, ‘‘तमिल को इस देश की आधिकारिक भाषा बनाया जाना चाहिए। यह अन्नाद्रमुक पार्टी की लंबे समय से लंबित मांग है और (दिवंगत) जयललिता ने भी इस मुद्दे को उठाया था।’’
तमिल देश की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है। इसके अलावा असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी भी आधिकारिक भाषाएं हैं।
द्रमुक सदस्य एन षणमुगम ने भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह तमिलनाडु पर हिन्दी थोप रही है। उन्होंने कहा कि वह सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन वह यह नहीं चाहते कि कोई भी भाषा किसी राज्य पर थोपी जाए।