नयी दिल्ली, 30 मार्च (भाषा) नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए बढ़ती मांग के बीच देश में आगामी वर्षों में तांबे की मांग सात प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है। उद्योग के अधिकारियों ने यह बात कही है।
उद्योग मंडल पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष हेमंत जैन ने कहा कि औद्योगिक गलियारों का निर्माण, सभी भारतीयों के लिए घर, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजनाएं और ऊर्जा बदलाव जैसी परियोजनाओं की वजह से तांबे की मांग बढ़ रही है। इसमें उल्लेखनीय इजाफा हो रहा है।
जैन ने कहा, ‘‘आने वाले वर्षों में भारत में तांबे की मांग में सात प्रतिशत वृद्धि होने की उम्मीद है। तांबा क्षेत्र में निजी निवेश आने की भी उम्मीद है। सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना और आत्मनिर्भर भारत से तांबा उद्योग को समर्थन मिल रहा है।
उद्योग का अनुमान है कि भारत का परिष्कृत तांबे का सालाना उत्पादन लगभग 5,55,000 टन है जबकि घरेलू खपत लगभग 7,50,000 टन से अधिक है। भारत स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए हर साल लगभग 5,00,000 टन तांबे का आयात करता है।
उद्योग विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2030 तक देश में तांबे की मांग दोगुनी हो सकती है। इससे मांग-आपूर्ति का अंतर बहुत बढ़ जाएगा और भारत को इसके लिए दूसरे देशों पर निर्भर होना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन की जगह नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल, पवन टर्बाइन, ईवी बैटरी आदि के निर्माण के लिए भारी मात्रा में तांबे की जरूरत होगी।
घरेलू कंपनियों जेएसडब्ल्यू समूह, आदित्य बिड़ला समूह और अदाणी समूह ने तांबा उत्पादन बढ़ाने के लिए भारी निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
पूर्व इस्पात सचिव अरुणा शर्मा ने कहा, ‘‘देश को कॉर्बन उत्सर्जन मुक्त करने की रणनीति में तांबे की प्रमुख भूमिका है। ऐसे में कंपनियां इस खनिज में निवेश न सिर्फ मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करने के लिए कर रही हैं, बल्कि वे अपनी नीतियों का सरकार की नीति के साथ तालमेल भी बैठा रही हैं।
शर्मा ने कहा कि हाल के दिनों में इसकी बढ़ती लागत को देखते हुए तांबे के उत्पादन और स्मेल्टिंग में निवेश एक लाभदायक कारोबार बन गया है।