नयी दिल्ली, 29 मार्च (भाषा) पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने का प्रयास करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को याद किया कि कैसे उनके पिता खाना पकाने और कृषि के लिए पेड़ों एवं धरती का उपयोग करने से पहले उनको नमन करते थे तथा उनसे क्षमा मांगते थे।
उन्होंने यहां विज्ञान भवन में दो दिवसीय पर्यावरण राष्ट्रीय सम्मेलन – 2025 का उद्घाटन करते हुए लोगों से इस बात पर विचार करने का आह्वान किया कि क्या उन प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करना उचित है, जिन्हें मनुष्य स्वयं नहीं बना सकता।
ओडिशा के एक गांव में बीते अपने जीवन के शुरुआती वर्षों को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि संसाधनों की अनुपलब्धता के कारण उनके परिवार को खाना पकाने के लिए सूखी लकड़ी पर निर्भर रहना पड़ता था।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मेरे पिता और माता लकड़ियां एकत्र करते थे। फिर वे उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर जलाने लायक बनाते थे। मैं हर दिन देखती थी कि मेरे पिता लकड़ियों को काटने से पहले उनके आगे झुकते थे। मैं अपने पिता से पूछती थी, ‘आप लकड़ियां काटने से पहले प्रार्थना क्यों करते हैं?’ वह मुझसे कहते थे कि वह क्षमा मांग रहे हैं।’’
राष्ट्रपति ने बताया कि पिता उनसे कहा करते थे कि लकड़ी के ये टुकड़े कभी उस पेड़ का हिस्सा थे जो फल, फूल, हवा और पानी देते थे। उन्होंने कहा, ‘‘अब ये लकड़ियां पुरानी हो गई हैं और सूख गई हैं। फिर भी, वे हमारी मदद कर रही हैं।’’
राष्ट्रपति ने बताया कि उनके पिता खेत की जुताई करने से पहले भी धरती माता को नमन करते थे।
उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मैं अक्सर उनसे पूछती थी, ‘खेत जोतने से पहले आप प्रार्थना क्यों करते हैं?’ वह कहते थे, ‘धरती माता पर प्रहार करने से पहले क्षमा मांग लो।’ वह कहते थे, ‘धरती हमारी माता है। यह जो कुछ भी पैदा करती है, हम जो भी फसल उगाते हैं, वे सब हम धरती की वजह से ही कर पाते हैं।’’
मुर्मू की इन बातों पर दर्शकों ने तालियां बजायीं।
राष्ट्रपति मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में हुआ था।
राष्ट्रपति ने कहा कि सड़क से गुजरते समय उन्होंने देखा कि छोटे-छोटे पहाड़ गायब हो गए हैं और जब उन्होंने पूछा तो लोगों ने उन्हें बताया कि निर्माण कार्यों के लिए इन्हें नष्ट कर दिया गया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि कई लोग उनसे पूछते हैं कि लोग उन चीजों को क्यों नष्ट कर देते हैं जिन्हें वे बना नहीं सकते।
मुर्मू ने कहा, ‘‘क्या आप पत्थर बना सकते हैं? उस दिन मैं उनका जवाब नहीं दे पायी। मुझे लगता है कि इस सम्मेलन में ऐसे जवाब ढूंढे जाने चाहिए ताकि विकास भी हो और विनाश भी रोका जा सके।’’