प्रयागराज महाकुंभ में साकार हुई मोदी-योगी की संकल्पना

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सुरेश पचौरी
*माघे मासे गंगे स्नानं यः कुरुते नर: ।*
*युगकोटिसहस्राणि तिष्ठंति पितृदेवताः।।*
            स्कंद पुराण में उल्लेख है कि माघ मास में गंगा में स्नान करने वाले व्यक्ति के पितर युगों-युगों तक स्वर्ग में वास करते हैं। कितना ही बिरला अवसर है कि प्रयागराज में संगम किनारे श्रद्धा का महाकुंभ आयोजित हुआ और सनातनियों ने आस्‍था की डुबकी लगाई। यूं तो यह आयोजन सदियों से चला आ रहा है लेकिन इस वर्ष इस आस्‍था को सम्‍मान देने में भाजपा की सरकारों का अथक योगदान भी रहा है। महाकुंभ जैसे महाआयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं का सुचारू रूप से प्रबंधन एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्‍व में उत्‍तर प्रदेश की योगी सरकार ने जिस कुशलता से इस वृहत्‍तर दायित्‍व को संभाला है वह वर्षों तक सराहना के साथ याद किया जाएगा। धर्म के प्रति निष्‍ठा और समर्पण के इस अद्भुत आयोजन ने ऐसा संगम रचा जो कल्‍पनातीत है। सुरक्षा, सुविधाएं और सुगमता प्रदान करने के जतन के साथ ही साथ इस आयोजन को पर्यावरण अनुकूल बनाने के विशेष प्रयास हुए यह स्‍तुत्‍य है। इन प्रयासों ने महाकुंभ को केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक एवं पर्यावरणीय सरोकरों के प्रति चेतना का संदेश भी दिया।
          हमारी भारतीय सनातन संस्कृति और परंपरा में कुंभ पर्व सहस्राब्दियों से श्रद्धा, आस्था और ज्ञान की साधना का पर्व रहा है। भगवान आदि शंकराचार्य ने भारतीय जनमानस में धर्म की भावना जगाने और संस्कृति की चेतना मजबूत करने के लिए देश के चार कोनों पर चार मठ बनाये। पूर्व में जगन्नाथपुरी, पश्चिम में द्वारिका, उत्तर में जोशीमठ तथा दक्षिण में श्रृंगेरी मठ। आदि शंकराचार्य जी ने देश की चार प्रमुख नदियों गंगा, यमुना, क्षिप्रा व गोदावरी के तट पर चार शहरों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में चार कुंभ-मेलों के आयोजन की रूपरेखा रची। कुंभपर्व का आधार खगोलीय घटना है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ग्रहों की गति और उनके मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन कर कुंभ मेलों के आयोजन की तिथियां और स्थान तय होते है। 12 साल के अंतराल से सूर्य और गुरू की राशि विशेष में स्थिति कुंभ पर्व का समय और स्थल निर्धारित करते है।
    गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में उल्लेख किया है: *“ माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहि आव सब कोई’’* अर्थात् मकरराशि में सूर्य एवं वृषभ राशि में गुरू का प्रवेश होता है तब तीर्थ राज प्रयाग में कुंभ पर्व आयोजित होता है।
        कुंभ को लेकर पौराणिक आधार भी है। देवताओं और दानवों ने समुद्रमंथन किया। इस मंथन में अमृत निकला। अमृत के बंटवारे की छीना छपटी में अमृत कलश से कुछ बूंदे छलकी। ये अमृत बूंदे प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं। इन शहरों के पास से बहने वाली नदियां गंगा, यमुना, गोदावरी, एवं क्षिप्रा अमृतमयी हो गई। इन्ही स्थलों पर कुंभपर्व आयोजित किया जाता है।
         कुंभ पर्व नदियों के महत्व का महापर्व है। यह विविधता में एकता प्रदर्शित करने में केन्द्रीय भूमिका निभाता है। कुंभ पर्व ‘वसुधैव कुटंबकम‘ की भावना को साकार करता है। यह आयोजन सर्वसमावेशी संस्कृति एवं भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता का प्रतीक है। कुंभ महापर्व हमें आत्मशुद्धि, परोपकार एवं सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है। महाकुंभ के माध्यम से भारतीय संस्कृति और भारतीय जीवन दर्शन को वैश्विक पहचान मिली है। कुंभ पर्व भारतीय संस्कृति की गहराई, सहिष्णुता और एकता का अद्भुत संगम है। यह पर्व केवल स्नान का पर्व नही है बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों को जानने आत्मचिंतन करने और मानवता के प्रति समर्पण व्यक्त करने का अवसर है। भारतीय सनातन परंपरा में यह आयोजन अनूठी आस्था, संस्कृति और दर्शन का सदियों से परिचायक रहा है और आगे भी रहेगा।
          इस वर्ष 2025 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ अपने आयोजन के आरंभ से ही अद्भुत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता रहा है। मकरसंक्रांति से महाशिवरात्रि तक लगभग 45 दिन चलने वाले कुंभ महापर्व की छटा ही निराली रही है। प्रतिदिन औसतन 1.5 करोड़ लोग कुंभ में गंगा स्नान के लिए प्रयागराज पहुंचे हैं। देश ने सनातन की ऐसी जबरदस्त ताकत पहले कभी नहीं देखी। विश्व चकित है। पूरी दुनिया अचरज से सनातन संस्कृति की प्रस्फुटित होती इस शक्ति को समझने की कोशिश कर रही है। महाकुंभ के भव्‍य दृश्‍यों ने हमें हतप्रभ किया है और अपनी संस्‍कृति और धार्मिक मान्‍यताओं के प्रति गहन आस्‍था और गौरव से भर दिया है।
         महाकुंभ का संपूर्ण मानवता को स्पष्ट संदेश है कि आस्था और आध्यात्म में कोई भेद नहीं होता। यहां कोई भी जाति या वर्ग का भेद नहीं होता। यहां राजा हो या रंक, साधु हो या गृहस्थ सब मां गंगा की गोद में पुण्य अर्जित करने आते है। यह समरसता ही कुंभ की सबसे बड़ी विशेषता है। प्रयागराज का कण-कण अलौकिकता का स्मरण कराता है। त्रिवेणी स्नान के दौरान जो शान्ति और दिव्यता का अनुभव होता है उसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। महाकुंभ में स्नान केवल धार्मिक कार्य मात्र नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि की प्रक्रिया है। महाकुंभ में आकर यह अनुभव होता है कि सनातन धर्म केवल पूजा पद्धति नहीं बल्कि जीवन जीने की एक महान परंपरा है। साधु संतो के प्रवचन मंत्रों की ध्वनि अखाड़ों की भव्यता और गंगा आरती का सौन्दर्य मन में ईश्वरीय अनुभूति  कराता है।
      मेरे लिए वे असीम शांति और गौरव के पल थे जब मैंने पुण्य भूमि प्रयागराज स्थित त्रिवेणी संगम में स्नान कर मां गंगा की पूजा-अर्चना कर अपनी आस्‍था प्रकट की। किसी भी श्रद्धालु की तरह मेरे लिए भी यह असीम आनंद के क्षण थे। गंगा तटों पर गूंजती मंत्रध्वनियां, हवनकुडों से उठती धूप की सुवास आयोजन को दिव्यता प्रदान करती है। इस संकल्पना के लिए माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्‍यनाथ जी का नेतृत्‍व स्तुत्य और स्मरणीय है। मैंने अनुभव किया कि गंगा मैया में लगाई गई हर डुबकी एक अलौकिक आनंद की अनुभूति करवाती हैं। आत्मा निर्मल होकर परमतत्व से साक्षात्कार करती है। इसी साक्षात्‍कार के उपरांत यह कह सकता हूं कि 2025 का प्रयागराज महाकुंभ एक आयोजन ही नहीं अपितु सनातन की जीवंत धरोहर बनकर प्रकट हुआ है।
     इस दिव्‍यता को माननीय मोदी जी के कथन में भी अनुभूत किया जा सकता है। प्रयागराज में गंगा स्‍नान के उपरांत  यशस्वी एवं तपस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा था, “प्रयागराज में महाकुंभ में आकर धन्य हो गया। संगम पर स्नान एक दिव्य जुड़ाव का क्षण है और इसमें भाग लेने वाले करोड़ों अन्य लोगों की तरह मैं भी भक्ति की भावना से भर गया। मां गंगा सभी को शांति, ज्ञान, अच्छे स्वास्थ्य और सद्भाव का आशीर्वाद दें।”
       प्रधानमंत्री मोदी जी की प्रार्थनाओं में हमारी प्रार्थना के स्‍वर भी शामिल हैं। यशस्वी एवं तपस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत के सभी सनातनधर्मियों को नया गौरव प्राप्त हुआ है। उनके शासनकाल में हमारी आस्था के प्रतीकों और धार्मिक स्थलों का पुनरूत्थान हुआ है। मोदी जी के कार्यकाल में अयोध्या में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा, काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर, महाकाल लोक परियोजना, केदारनाथ मंदिर एवं जगन्नाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण जैसे श्रेष्‍ठतम कार्यों से भारत का सांस्कृतिक वैभव प्रतिष्ठित हुआ है  तथा लोक आस्था के महत्व में अद्वितीय वृद्धि हुई है।
        भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का यह महाकुंभ उत्सव सभी के जीवन में नयी ऊर्जा और उत्साह का संचार करे, यही ईश्वर से प्रार्थना है। मेरा मानना है कि महाकुंभ 2025 के माध्यम से जागृत हुई सनातन की यह चैतन्य धारा राष्ट्रहित में प्रवाहित होकर एक नये भारत के निर्माण में सहायक सिद्ध होगी। (लेखक भाजपा के वरिष्‍ठ नेता तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं।)

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