‘मेड इन बिहार’ बूट अब रूसी सेना के साजो-समान का हिस्सा बन गये हैं : वित्त मंत्री सीतारमण
Focus News 18 March 2025 0
नयी दिल्ली, 18 मार्च (भाषा) ‘मेक इन इंडिया’ के बारे में विपक्ष की आलोचनाओं को सिरे से खारिज करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि इसके ‘अच्छे परिणाम’ सामने आ रहे हैं तथा ‘मेड इन बिहार’ बूट अब रूसी सेना के साजो-समान का हिस्सा बन गये हैं।
उच्च सदन में अनुदान की अनुपूरक मांगों और मणिपुर के बजट पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस योजना के माध्यम से 1.5 लाख करोड़ रूपये का निवेश आकर्षित हुआ और करीब 9.5 लाख रोजगार के अवसर सृजित हुए।
उन्होंने कहा, ‘‘मेक इन इंडिया ने वास्तव में हमें अच्छे परिणाम दिये हैं। हमने एक के बाद एक कदम इस देश के विनिर्माण को मजबूती देने के लिए उठाये हैं।’’
‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत 25 सितंबर 2014 को की गयी थी ताकि निवेश की सुविधा प्रदान की जा सके, नूतन प्रयासों को बढ़ावा दिया जा सके, आधारभूत ढांचे का निर्माण हो सके तथा भारत को विनिर्माण, डिजाइन और नूतन प्रयासों का केंद्र बनाया जा सके।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘मेक इन इंडिया में भरोसा रखिए। यह आपको परिणाम दे रही है।’’
उन्होंने कहा कि ‘मेड इन बिहार’ बूट (जूते) अब रूसी सेना के साजो-समान का हिस्सा बन गये हैं जिसके कारण वैश्विक रक्षा बाजार में भारतीय उत्पादों ने महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है तथा भारत के उच्च विनिर्माण मानकों का प्रदर्शन किया है।
उन्होंने कांग्रेस पर अपनी सरकारों के समय राष्ट्रीय विनिर्माण नीति बनाने में बहुत समय लगाने और कई देशों के साथ ‘जल्दबाजी’ में मुक्त व्यापार समझौते करने को लेकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि ऐसे कई समझौतों पर फिर से चर्चा कर इनमें सुधार किया जा रहा है।
सीतारमण ने कहा, ‘‘आप दावा करते हैं कि मेक इन इंडिया काम नहीं कर रहा है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रीय विनिर्माण नीति त्रुटिपूर्ण थी। क्या आप यह सुझाव दे रहे हैं? यह आपकी नीति है। किंतु यह एक नीति बनी रहेगी। इसमें कोई कार्य समूह नहीं है। और हमने जब इसे काम करने लायक नीति बनाया, हम मेक इन इंडिया लेकर आये, उनको समस्याएं हो रही हैं…।’’
उन्होंने कहा कि कांग्रेस भ्रमित है क्योंकि ‘मेक इन इंडिया’ में राष्ट्रीय विनिर्माण नीति को शामिल कर लिया गया है जिसे संप्रग ने बनाया था। उन्होंने दावा किया कि ‘मेक इन इंडिया’ से यह पता चल रहा है कि निर्यात कैसे संभव हो सकता है। उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर रक्षा क्षेत्र को देखा जा सकता है।
वित्त मंत्री ने संप्रग के शासनकाल में जल्दबाजी में मुक्त व्यापार समझौते किए जाने की आलोचना की और कहा कि इन गलतियों को दुरूस्त करने के लिए अब वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
एक व्यक्ति जो अपनी ही अपनी बात बोलता रहता है और किसी दूसरे की बात नहीं सुनता तो उसे लोग मूर्ख कहते हैं। अपनी बात दूसरों के समक्ष अवश्य रखनी चाहिए। उसका भी एक तरीका होता है। दूसरे की बात सुनने पर बहुत कुछ सीखने-समझने को मिलता है। आपकी बात पर यदि कोई सुझाव देता है तो उसे ध्यान से सुनना चाहिए। यदि वह उपयोगी लगे तो उसे मान लेना चाहिए। इसमें कोई बुराई नहीं है।
मनुष्य को गम्भीर होना चाहिए। जिस मनुष्य में गम्भीरता नहीं, उसका मूल्य दो कौड़ी का भी नहीं होता। उसे एक कुशल श्रोता बनना चाहिए। तभी वह अच्छे-बुरे, सत्य-झूठ आदि के विषय में विचार कर सकता है। मनीषी समझते हुए कहते हैं-
सुनो सबकी, करो मन की।
अर्थात् जो भी व्यक्ति अपना समझकर कुछ बताता है या सुझाव देता है, उन सबको ध्यान से सुनो। उनमें जो जी अपने अनुकूल लगे, उस पर विचार किया जा सकता है और फिर जब क्रियान्वयन करने का समय हो तब अपने भले-बुरे का विश्लेषण कर लेना चाहिए।
इस श्रवण का महत्व बताते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है –
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।
अर्थात् श्रवण करने से धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर कुबुद्धि का त्याग किया जाता है, सुनने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और श्रवण करने से मुक्ति होती है।
आचार्य चाणक्य का यह मानना है कि श्रवणशील मनुष्य के धर्मज्ञान में वृद्धि होती है। इसके कारण मनुष्य की बुद्धि की जड़ता दूर होती है। मनुष्य अपनी कुबुद्धि का त्याग कर देता है और सदाचरण की ओर प्रवृत्त होता है। श्रवण करने से उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है जो उसके जीवन को बदलकर रख देती है। जब मनुष्य को धर्मज्ञान होगा, उसकी बुद्धि का शुद्धिकरण हो जाएगा, उसे सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान में अन्तर करना आ जाएगा तो धीरे-धीरे वह मुक्ति की राह पर अग्रसर हो जाएगा। इस प्रकार वह शीघ्र ही मुक्तावस्था को प्राप्त कर लेता है।
मनुष्य जीवन का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना होता है। जब तक उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति नहीं मिल जाती, तब तक उसे चौरासी लाख योनियों के फेर में पड़े रहना पड़ता है। बार-बार इस संसार में अलग-अलग रूपों में वह जन्म लेता है। अन्ततः मुक्त होकर असीम शान्ति को लम्बे समय तक प्राप्त करता है।
जिस प्रकार अच्छे वक्ता की सभी लोग प्रशंसा करते हैं, उसी प्रकार अच्छा श्रोता भी प्रशंसा का पात्रा होता है। एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना बुद्धिमत्ता नहीं कहलाती। मनुष्य को दूसरे की बात को सुनकर अपने हृदय में रहस्य की तरह रखना चाहिए। कभी भी किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। ऐसा श्रवणशील विवेकी व्यक्ति सबका प्रिय बन जाता है और विश्वासपात्रा भी कहा जाता है।