ज़रूरी है क्या स्कूलों में स्मार्टफोन ?

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एक दुधारी तलवार है मासूम हाथों में स्मार्टफोन

डॉ घनश्याम बादल

अभी-अभी न्यायालय में दायर याचिका पर निर्णय देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कोर्ट ने साफ किया कि विद्यालय परिसर में स्मार्टफोन ले जाने से रोकना विधि सम्मत नहीं है और अभी तक विद्यालय में छात्र-छात्राओं द्वारा स्मार्टफोन ले जाने के कोई हानिकारक परिणाम भी सामने नहीं आए हैं इसलिए उन्हें विद्यालय प्रांगण में मोबाइल फोन ले जाने से रोकना उचित नहीं है।

   कितना जायज़ है स्कूलों में स्मार्टफोन का प्रयोग:

  अपने इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने विद्यालय में स्मार्टफोन ले जाने को जायज़ बता कर हलचल पैदा कर दी है । बेशक आज का युग तकनीक का युग है और इस आधार पर कहा जा सकता है कि बच्चों को भी स्मार्टफोन के उपयोग से रोकने का मतलब उनको तकनीक के प्रयोग से रोकना है लेकिन साथ ही साथ देश के अलग-अलग कोनों से विद्यालय परिसर या उसके बाहर किशोरवय बच्चों द्वारा स्मार्टफोन के प्रयोग से अनेक विवादास्पद प्रकरण भी सामने आए हैं । अब एक तरफ उच्च न्यायालय का निर्णय है तो दूसरी तरफ आम लोगों की राय ।  ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर स्मार्टफोन के प्रयोग के पक्ष और विपक्ष क्या  हैं।

स्मार्टफोन के सकारात्मक पक्ष:

सीखना बनाए सरल:

    स्मार्टफोन के उपयोग से अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया सरल ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजन बन सकती है और उसे सहायक उपकरण के रूप में किया जा सकता है। इंटरनेट के माध्यम से वे आसानी से शैक्षिक सामग्री, वीडियो, और ऑनलाइन पाठ्यक्रम तक पहुँच सकते हैं। यह उन्हें गहराई से समझने और सीखने में मदद करता है।


  बनाए तेज और स्मार्ट : स्मार्टफोन की मदद से विद्यार्थी  किसी भी विषय पर तेज और लेटेस्ट जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनका ज्ञान और समझ दोनों बढ़ते हैं और साथ ही साथ स्मार्टनेस भी बढ़ती है तो इस हिसाब से स्मार्टफोन का उपयोग बच्चों को तेज और स्मार्ट बनने में मदद करता है।

समय की बचत: पढ़ने और सीखने के लिए अब वह समय नहीं रहा जब विद्यार्थी पुस्तकालय एवं पुस्तकों के माध्यम से सीखने को बाध्य थे आज विद्यार्थियों को लाइब्रेरी में घंटों बिताने की बजाय स्मार्टफोन के माध्यम से तेज़ी से और प्रभावी तरीके से अध्ययन सामग्री मिल जाती है, जिससे समय तो बचता ही है बच्चों को एकदम नई जानकारी भी प्राप्त हो जाती है।

तकनीकी ज्ञान: आज के ज़माने में बिना टेक्नोक्रेट बने अच्छा कैरियर बनाना संभव नहीं है। स्मार्टफोन का उपयोग विद्यार्थियों को डिजिटल और वर्चुअल दुनिया से परिचित कराता है जिससे उनकी तकनीकी दक्षता बढ़ती है। यह भविष्य में उन्हें करियर के अवसरों के लिए तैयार करता है।

संचार: आज ऑनलाइन एजुकेशन का ज़माना है । गूगल मीट या दूसरेडिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से स्मार्टफोन विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच संवाद को आसान बनाता है। विद्यार्थियों को किसी विषय पर शंका हो, तो वे शिक्षक से तुरंत संपर्क कर अपनी समस्याएं हल कर सकते हैं।

यूं तो ऐसे ही कितने ही सकारात्मक पहलू हैं जो स्मार्टफोन को प्रयोग करने की वकालत करते हैं लेकिन इसी का दूसरा पक्ष भी देखना ज़रूरी है।

नकारात्मक पहलू

भटकाव की आशंका : स्मार्टफोन में सोशल मीडिया, गेम्स, और अन्य बहुत से आकर्षक ऐप्स होते हैं, जो विद्यार्थियों का ध्यान पढ़ाई से भटकाते हैं। इससे उनके अध्ययन में कमी आ सकती है। प्रायः देखने में आता है कि मोबाइल के माध्यम से पढ़ने वाले बच्चे एकाग्रचित होकर नहीं पढ़ पाते । वज़ह है एक साथ कई कई विंडो खोलकर कई कई चीजों को देखने की लत । यदि स्मार्टफोन का प्रयोग कम उम्र के अपरिपक्व बच्चों को करने की खुली छूट मिल जाए तो फिर उनकी एकाग्रचितत्ता भांग ही होगी।


स्वास्थ्य पर असर: देखने में आया है कि स्मार्टफोन बहुत जल्दी ही एक लत का रूप ले लेता है और बच्चे लंबे समय तक उसी में लगे रहते हैं परिणाम स्वरूप लंबे समय तक स्मार्टफोन का उपयोग करने से आँखों की समस्याएँ, सिर दर्द, और मानसिक तनाव का बढ़ना स्वाभाविक है साथ ही साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता  है।


नैतिक और सामाजिक समस्याएँ: स्मार्टफोन का गलत उपयोग, जैसे नकल, पढ़कर एवं समझ कर प्रश्न हल करने के बजाय उपलब्ध सामग्री को कॉपी पेस्ट करके गृह कार्य या प्रोजेक्ट बनाना, चैट जीपीटी या ऐसे ही दूसरे एप्स अथवा साइट्स से अध्ययन की सामग्री बिना सोचे समझे ले लेना विद्यार्थियों को गलत आदतें सिखा सकता है। इसके अलावा, साइबर बुलिंग, पॉर्न साइट्स या अश्लील सामग्री देखना या पढ़ना जैसी समस्याएँ भी हो सकती हैं।


आर्थिक बोझ: आज स्मार्टफोन एक स्टेटस सिंबल बन गया है अब चाहे मां-बाप की सामर्थ्य है या नहीं मगर उन्हें बच्चों को महंगा फोन खरीद कर देना ही पड़ता है ऐसे में स्मार्टफोन खरीदने और उसे मेंटेन करने के लिए वित्तीय बोझ बढ़ता है, खासकर जब स्कूल के विद्यार्थियों के पास पर्याप्त संसाधन न हों।


संवेदनशील सामग्री तक पहुँच: इंटरनेट पर अनेक नशीली और अपत्तिजनक सामग्री रहती हैं । ऐसे में विद्यालयों में यदि स्मार्टफोन पहुंच जाएगा तो बच्चों को इस प्रकार की सामग्री से बचाना मुश्किल हो सकता है। अब दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर ही माननीय न्यायालय ने स्मार्टफोन के उपयोग को तो रोकने से मना कर दिया है लेकिन साथ ही साथ इन खतरों से बचने के लिए कई अनुबंध एवं शर्तें भी इस निर्णय के साथ जोड़ दी हैं।

क्या कहता है न्यायालय का निर्णय

स्मार्ट फोन के प्रयोग पर हाई कोर्ट ने अहम दिशानिर्देश देते हुए कहा है कि छात्रों को स्कूल में स्मार्टफोन ले जाने से नहीं रोका जाना चाहिए लेकिन उपयोग की निगरानी हो। स्कूल में प्रवेश करते समय फोन जमा करने और घर लौटते समय वापस लेने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्मार्टफोन से कक्षा में शिक्षण, अनुशासन या शैक्षिक वातावरण में बाधा नहीं आनी चाहिए। इसके लिए कक्षा में स्मार्टफोन के उपयोग को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। स्कूल के कॉमन एरिया के साथ-साथ स्कूल वाहनों में भी स्मार्टफोन के कैमरे का इस्तेमाल प्रतिबंधित होना चाहिए।  छात्रों को डिजिटल शिष्टाचार और स्मार्टफोन के नैतिक उपयोग के बारे में शिक्षित करना चाहिए और निगरानी करने की नीति माता-पिता, शिक्षकों और विशेषज्ञों के परामर्श से बनाई जानी चाहिए। स्कूल अपनी परिस्थितियों के अनुकूल नीतियों को लागू करें । उपयोग के नियमों का उल्लंघन रोकने के लिए पारदर्शी, निष्पक्ष नियम लागू किए जाएं। तेजी से बदलती तकनीकी और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए नीति की नियमित समीक्षा और संशोधन किया जाना चाहिए । सुरक्षा और समन्वय के उद्देश्य से कनेक्टिविटी के लिए स्मार्टफोन उपयोग की अनुमति होनी चाहिए लेकिन मनोरंजन के लिए उपयोग की अनुमति नहीं होनी चाहिए ।

इस निर्णय के आलोक में कहा जा सकता है कि विद्यार्थी भले ही स्मार्टफोन स्कूल प्रांगण में ले जाएं लेकिन उसके उपयोग को बहुत सीमित कर दिया जाए । हां, उसके पास फोन होने से घर एवं विद्यालय के बीच की दूरी में उसकी सुरक्षा तय की जा सकती है तथा उसे पर निगाह भी रखी जा सकती है।

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