नयी दिल्ली, छह मार्च (भाषा) दुनिया के तीसरे बड़े कच्चे तेल उपभोक्ता और आयातक देश भारत ने यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से रूस से कच्चा तेल खरीदने पर 112.5 अरब यूरो खर्च किए हैं। एक यूरोपीय शोध संस्थान ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर’ (सीआरईए) ने 24 फरवरी, 2022 से पेट्रोलियम उत्पादों के लिए रूस को किए गए भुगतान पर यह रिपोर्ट जारी की है।
रिपोर्ट कहती है, ‘‘हमारे अनुमानों के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस ने जीवाश्म ईंधन के निर्यात से कुल 835 अरब यूरो का राजस्व अर्जित किया है।’’
रूस से जीवाश्म ईंधन आयात के मामले में चीन 235 अरब यूरो (तेल के लिए 170 अरब यूरो, कोयले के लिए 34.3 अरब यूरो और गैस के लिए 30.5 अरब यूरो) के साथ सबसे आगे रहा।
सीआरईए के मुताबिक, भारत ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से दो मार्च, 2025 तक के तीन वर्षों में रूस से कुल 205.84 अरब यूरो के जीवाश्म ईंधन खरीदे। इसमें कच्चे तेल की खरीद 112.5 अरब यूरो की रही जबकि कोयले के लिए 13.25 अरब यूरो का भुगतान किया गया।
अपनी कच्चे तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए 85 प्रतिशत से अधिक आयात पर निर्भर भारत ने वित्त वर्ष 2022-23 में कच्चे तेल के आयात पर 232.7 अरब डॉलर और वित्त वर्ष 2023-24 में 234.3 अरब डॉलर खर्च किए।
चालू वित्त वर्ष के पहले 10 माह में भी भारत ने तेल आयात पर 195.2 अरब डॉलर खर्च किए हैं।
भारत ने फरवरी, 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के तत्काल बाद रूस से बड़ी मात्रा में तेल आयात करना शुरू कर दिया। इसका मुख्य कारण यह है कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और कुछ यूरोपीय देशों द्वारा खरीद से परहेज करने के कारण रूसी तेल काफी रियायती दाम पर मिल रहा था।
इसकी वजह से भारत के रूसी तेल के आयात में नाटकीय वृद्धि देखी गई। यह भारत के कच्चे तेल के कुल आयात के एक प्रतिशत से बढ़कर कुछ ही समय में 40 प्रतिशत हो गया।
सीआरईए की रिपोर्ट कहती है कि भारत की कुछ रिफाइनरियों ने रूसी कच्चे तेल को पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन में बदल दिया और उसे यूरोप और अन्य जी-7 देशों को निर्यात किया गया।
हालांकि, अमेरिका की तरफ से हाल ही में रूसी तेल के मालवहन पर पाबंदियां लगाए जाने के बाद भारत के रूसी तेल आयात में गिरावट आई है। लेकिन रूस अब भी भारत का शीर्ष तेल स्रोत बना हुआ है।