“अगर आज नहीं जागे, तो कल पीने के लिए सिर्फ आँसू बचेंगे।”
हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने का क्या फायदा, जब नदियाँ सूख रही हैं, झीलें सिकुड़ रही हैं और भूजल स्तर नीचे गिरता जा रहा है? क्या यह सिर्फ भाषणों, रैलियों और सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित रहेगा, या हम सच में पानी बचाने के लिए कुछ करेंगे?
जल संकट: अब यह भविष्य की नहीं, वर्तमान की समस्या है
कभी आपने सोचा है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो सकता है? यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि एक कड़वी सच्चाई है। दुनिया के कई हिस्सों में लोग पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, भारत के कई गाँवों में महिलाएँ 10-15 किलोमीटर तक पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर हैं।
वहीँ, शहरों में हर दिन लाखों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। नल खुले छोड़ दिए जाते हैं, RO से निकलने वाले 70% पानी को लोग बेकार बहने देते हैं और फैक्ट्रियाँ बिना शुद्धिकरण के जहरीला कचरा नदियों में डाल रही हैं। क्या यही जल संरक्षण है?
जल प्रदूषण: हम अपनी कब्र खुद खोद रहे हैं
गंगा, जिसे हम माँ कहते हैं, प्लास्टिक, कैमिकल्स और सीवेज की गटर बन चुकी है। भारत की 70% नदियाँ पीने लायक नहीं बची हैं। अगर आज से ही हमने जल प्रदूषण पर लगाम नहीं लगाई, तो आने वाले सालों में पानी खरीदना भी नामुमकिन हो जाएगा।
प्रदूषित जल से फैलने वाली बीमारियाँ हर साल लाखों लोगों की जान ले रही हैं, लेकिन फिर भी हम बेफिक्र हैं। आखिर कब तक?
क्या करना होगा? सिर्फ बातें नहीं, एक्शन चाहिए!
किसी भी हालत में पानी बर्बाद न करें। RO का बेकार पानी पौधों में डालें, कपड़े और बर्तन धोने में इस्तेमाल करें।
वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) अनिवार्य करें। हर बिल्डिंग और गाँव में इसे लागू करना होगा।
जल प्रदूषण के अपराधियों को सजा मिले। फैक्ट्रियाँ और कारखाने जो नदियों में जहर घोल रहे हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
‘ब्लू गोल्ड’ की कीमत समझें। तेल से भी ज्यादा कीमती पानी होने वाला है, इसे मुफ्त में बर्बाद करना बंद करें।
स्कूलों और कॉलेजों में ‘जल बचाओ आंदोलन’ चलाएँ। जल संकट की सच्चाई हर बच्चे को पता होनी चाहिए।
अब नहीं तो कभी नहीं!
आज हमने चेतना नहीं दिखाई, तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। क्या हम अपने बच्चों को सूखी धरती छोड़कर जाना चाहते हैं या एक जलविहीन मरुस्थल? हमें यह फैसला अभी करना होगा, तुरंत करना होगा।