
दुबले-पतले व्यक्ति को हल्का कहना इस कारण ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा व्यक्ति दुर्बलता महसूस करने के कारण आदत से क्रोधी, चिड़चिड़ा, अमिलनसार व शुष्क होता है तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाने के कारण या तो बीमार रहता है या बीमारी के वश में फंस सकता है जब कि हल्के बदन का मालिक स्वस्थ होता है। विशेष दुबलापन तो दृढ़ रूप से विकट बीमारी है जिसमें भूख न लगने के कारण रोगी काफी कम खा पाता है।
दुबले-पतले व्यक्ति के शरीर में क्योंकि मेद कोशिकाएं काफी कम होती हैं, शरीर पर मेद न जमा हो पाने के कारण शरीर भरा-भरा न दिखकर दुबला-पतला सा दिखता है और इस कारण यद्यपि शरीर पर जरा सा मेद चढ़ा पाना भी मुमकिन नहीं है फिर भी आहार व्यायाम आयोग द्वारा मांसपेशियों को विकसित कर व्यक्ति विशेष का शारीरिक भार बढ़ा पाना मुमकिन है जिससे शरीर जरा मांसल दिखे।
ऐसे व्यक्ति को दुबला-पतला नहीं कहा जा सकता जो चुस्त-दुरूस्त व सक्रिय है और किसी प्रकार की अवसाद महसूस नहीं करता भले ही उसके चेहरे की त्वचा के नीचे मांस न दिखे। अवसाद महसूस होना, थकान बनी रहना, नासाज मिजाज, क्रोधी प्रकृति, चिड़चिड़ापन व सूखा आदि दुबलेपन के प्राकृतिक चिन्ह हैं जिनके होने पर इसकी पुष्टि के लिए चिकित्सीय परीक्षण कराना चाहिए।
यह मुमकिन है कि किसी बीमारी के होने के कारण शारीरिक भार न बढ़ रहा हो जैसे अनीमिया, पीलिया, मधुमेह, पेट में कीड़े या थायरायड से संबंधित बीमारी, इसलिए उपचार जरूरी है जिसमें रोग उपचारित होने पर स्वतः ही शारीरिक भार बढ़ने लगेगा।
शारीरिक भार बढ़ाने के मौलिक सिद्धांत
ऊर्जा की खपत से ज्यादा ऊर्जा की प्राप्ति- इस ध्येय की प्राप्ति के लिए ऐसे खाद्य पदार्थों का संचय करना चाहिए जो पोषक तत्वों से भरपूर हों जिसमें इनको अल्प मात्रा में इस्तेमाल कर ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सके।
मांसपेशियों के विकास से शारीरिक वजन को बढ़ाना
मेद कोशिकाओं की हानि के कारण दुबले-पतले व्यक्तियों में मेद का जमाव शरीर पर करा कर शारीरिक भार बढ़ा पाना मुमकिन नहीं है और न मेद बढ़ाना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभदायक ही है। इसलिए ऐसी बनावट बनानी चाहिए जिससे मांस पेशियां विकसित हो तथा शारीरिक भार बढ़े। इसके लिए प्रोटीन पदार्थों का इस्तेमाल लाभदायक है पर क्योंकि दुबले-पतले व्यक्ति की पचन-पाचन क्षमता स्वस्थ व्यक्ति के समान नहीं होती, इसलिए न तो ज्यादा मात्रा में प्रोटीन ही दिए जा सकते हैं और न मात्रा प्रोटीन खाद्य पदार्थ ही सेवित कराए जा सकते हैं।
इसके अलावा ज्यादा प्रोटीन इस्तेमाल करने से कोई स्वास्थ्य लाभ भी नहीं प्राप्त हो सकता क्योंकि इसके द्वारा प्राप्त फालतू ऊर्जा या तो निष्फल हो जाती है या मेद में परिवर्तित हो जाती है जो दुबले-पतले व्यक्तियों में एकत्रा न हो पाने के कारण शरीर से बाहर हो जाती है। वैसे भी अगर मेद ठीक प्रकार से चयोपचयित न हो तो कीटो बाडीज बनते हैं जो रक्त में अम्लीयता पैदा करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
कहने का अभिप्राय यह है कि मांसपेशियों के विकास के लिए प्रोटीन जरूर चाहिए पर अल्प मात्रा में और वह भी ऐसे पदार्थों से प्राप्त कराया जाएं जिसमें प्रोटीन ज्यादा न हो और इसके साथ-साथ कार्बोहाइड्रेट्स, रेशे, विटामिन व खनिज हों जिसमें प्रोटीन के अलग अन्य पोषक तत्वों का लाभ शरीर को मिल सके। इस दृष्टिकोण से पूरा अनाज, दलिया, छिलके दाल, पकी हुई पतली दालें, मक्का जई, ज्वार, बाजरा, मेद बिना दूध, मट्ठा, योगर्ट, मछलियां, या चूजे आदि स्वास्थ्य-वर्धक खाद्य पदार्थ हैं जिनमें कम मात्रा में प्रोटीन के अतिरिक्त अन्य पोषक पदार्थ हैं।
जटिल प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स ऊर्जा की प्राप्ति अच्छे स्रोत हैं क्योंकि एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स से 4 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है और यह ऐसी ऊर्जा है जिसका मेद के रूप में जमाव का प्रवाह सबसे कम है और जिसमें रेशे, खनिज व विटामिन भी प्राप्त हैं जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमन्द हैं तथा ऊर्जा की पूर्ति के अलग पचन-पाचन को भी ठीक रखते हैं। इसलिए इनको इस्तेमाल करने से दुबले-पतले व्यक्ति को कोई कमजोरी नहीं होती और न थकान महसूस होती है पर इनसे प्राप्त पदार्थ जैसे आटा चोकर रहित नहीं होना चाहिए और न चावल को इतना पॉलिश करना चाहिए कि वह सफेद दिखने लगे। परिष्कृतता से पोषक आधार खाद्य पदार्थों से निकल जाते हैं जैसे चावल से विटामिन व आटे से रेशा।
फलों का रस निकालकर नहीं पीना चाहिए बल्कि पूरे फल का इस्तेमाल करना चाहिए। सेब का छिलका उतारकर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए तथा भुने हुए अनाज जैसे गेहूं, मक्का का इस्तेमाल करना चाहिए। अंकुरित अनाज व दालों का इस्तेमाल भी लाभदायक है।
15 से 20 प्रतिशत तक ऊर्जा, मेद या वसीय पदार्थ के इस्तेमाल से यद्यपि शरीर में मेद के दृष्टिकोण से दुबले-पतले व्यक्ति के लिए मेद का इस्तेमाल व्यर्थ है पर स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से 15 से 20 प्रतिशत तक ऊर्जा मेद से या ओट रूप में इस्तेमाल से प्राप्त करना चाहिए। विटामिन ए., डी., ई., और के मेद में घुलनशील हैं जिनका स्वास्थ्य पालन में एक दृढ़ आमुख है और यह बिना संतृप्त प्रकार के वसीय पदार्थ जैसे घी, या पाम आयल खाये प्राप्त नहीं हो सकते।
इसी प्रकार बिना तेल का इस्तेमाल किये विटामिन ई. प्राप्त नहीं हो सकता। वैसे भी भोजन पकाने के लिए तेल का इस्तेमाल पाक माध्यम के रूप में जरूरी हो जाता है। इसलिए सभी प्रकार की मेद जैसे घी व वनस्पति के तेल का इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जरूरी हो जाता है।
वैसे पाक माध्यम के रुप में कडुआ तेल सबसे सस्ता व स्वास्थ्यवर्धक है क्योंकि इसमें अकेले असंतृप्त वसीय अम्ल ज्यादा पाये जाते है जो रक्त में कोलेस्ट्राल का स्तर नियंत्रित कर उसे बढ़ने नहीं देते। सूर्यमुखी व कार्न आयल भी फायदेमंद हैं क्योंकि इनमें बहु असंतृप्त वसीय अम्ल पाया जाता है।
यह भी रक्त में कोलेस्ट्राल का स्तर नियंत्रित करता है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि ज्यादा मात्रा में किसी भी तेल का प्रयोग सभी व्यक्तियों के लिए हानिकारक है भले ही वे दुबले हो या मोटे क्योंकि सभी तेलों में 100 प्रतिशत मेद होता है।