
प्रो. महेश चंद गुप्ता
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में भगवान मुरुगन को समर्पित मंदिर को महाकुंभिषेकम के साथ खोल दिया गया है। इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑनलाइन शामिल हुए। इस मौके पर मोदी ने कहा कि ‘वह मुरुगन टेंपल के महाकुंभिषेकम जैसे पुण्य आयोजन का हिस्सा बनकर सौभाग्यशाली महसूस कर रहे हैं।’ जकार्ता के इस मुरुगन मंदिर को श्री सनातन धर्म आलयम के नाम से भी जाना जाता है। भगवान मुरुगन को समर्पित यह इंडोनेशिया का पहला मंदिर है। ये मंदिर 2020 में बनना शुरू हुआ था। 2 फरवरी को भव्य समारोह में इंडोनेशिया सरकार द्वारा दिए गए 4000 वर्ग मीटर भूखंड पर बने इस मंदिर को खोला गया है। इससे पहले सऊदी अरब के आबूधाबी और दुबई में भी भव्य मंदिर बने हैं। ये मंदिर इस बात के प्रतीक हैं कि सनातन संस्कृति को मुस्लिम देशों में भी सम्मान दिया जा रहा है। दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम मुल्क इंडोनेशिया में सनातन संस्कृति के प्रतीक मंदिर के निर्माण पर पाकिस्तान के मुल्ला जहर उगल रहे हैं लेकिन इससे विश्व में सनातन संस्कृति की दिव्यता प्रदर्शित हुई है।
दुनिया में जिस प्रकार सनातन का मान-सम्मान बढ़ रहा है, वह हमारी इस प्राचीन संस्कृति की आधुनिक युग में सार्थकता को सिद्ध कर रहा है। सनातन ही सत्य है और सत्य ही सनातन। यह वह अनादि प्रकाश है, जो अनंत तक आलोकित रहेगा। न इसकी कोई शुरुआत थी, न कोई अंत होगा। सनातन सृष्टि की आत्मा है, परम तत्व की अनुभूति है। सनातन का अर्थ है शाश्वत, जो सदा रहता है। जो पहले था, जो अब है और जो हमेशा रहेगा। सनातन केवल एक धर्म नहीं, यह चेतना की वह धारा है जो जीवन को सार्थकता, प्रेम, सेवा, सहिष्णुता और शांति का सन्देश देती है। यह वह दिव्य धरोहर है, जिसने समस्त मानवता को मोक्ष, ज्ञान, मानव कल्याण और आध्यात्मिक उत्थान की दिशा दिखाई है।
यह संस्कृति केवल परंपराओं की वाहक नहीं बल्कि ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और आध्यात्मिकता का अथाह भंडार भी है। सनातन की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसकी कोई शुरुआत नहीं और कोई अंत नहीं। यह परम सत्य है, और सत्य ही परमात्मा है। सनातन व्यवस्था केवल धार्मिकता तक सीमित नहीं है बल्कि यह संपूर्ण जीवन दर्शन का आधार है। यही कारण है कि सनातन सर्वव्याप्त, सर्वमय और सर्वज्ञ है।
सनातन संस्कृति में जीवन, आनंद और उत्सव का अद्भुत समावेश है। इसके रीति-रिवाज, उत्सव, पर्व और त्योहार राष्ट्रीय एवं मानवीय एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देते हैं। यह संस्कृति केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं है। यह तो धडक़नों में बसती है, जीवन के कण-कण में प्रवाहित होती है। भारत को देव भूमि का दर्जा हासिल है तो यह सनातन संस्कृति की बदौलत ही है।
सनातन संस्कृति ही समूचे संसार को अहिंसा, प्रत्येक जीव के प्रति दया एवं सहानुभूति का मार्ग दिखाती है। केवल सनातन संस्कृति ही ऐसी है, जिसमें प्रकृति के संरक्षण पर जोर दिया गया है। सनातन में धर्म का अर्थ केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है बल्कि यह जीवन की समग्रता का मार्गदर्शन करता है। हमारे त्योहार, पर्व, रीति-रिवाज और अनुष्ठान इसी सनातन प्रवाह के प्रतीक हैं। दीपों की जगमगाहट में दिवाली का उल्लास, रंगों की छटा में होली का अनुराग, मकर संक्रांति मेंं नवसृजन का संदेश, सूर्य की आराधना में छठ की भव्यता और आस्था का महासंगम महाकुंभ, ये सभी सनातन संस्कृति के जीवंत प्रमाण हैं। विवाह संस्कारों में सात जन्मों का बंधन, परिधान में शालीनता और खान-पान में शुद्धता-सात्विकता है। इन सबसे ही तो जीवन में मधुरता, प्रेम और समरसता का सृजन होता है।
सनातन विशेषताओं से भरा है। हमारी संस्कृति सतरंगी है, जिसमें अनेक परंपराएं और मूल्य जुड़े हुए हैं। इसमें कला, संगीत, साहित्य और दर्शन का अपूर्व संगम है। भारत केवल भू-भाग नहीं, यह तप, त्याग और समर्पण की भूमि है। यह एक भाव है, एक चेतना है, एक आध्यात्मिक शक्ति है। सनातन संस्कृति संसार को अहिंसा, दया और सहानुभूति का मार्ग दिखाती है। प्रकृति संरक्षण की भावना सनातन संस्कृति का मूल आधार है। इसमें नदियां केवल जल धाराएं नहीं, बल्कि मां हैं। पर्वत केवल ऊंचे शिखर नहीं, बल्कि आराध्य हैं और वृक्ष केवल लकड़ी व पत्तों के ढांचे नहीं बल्कि जीवन के आधार हैं। यह वही धरती है, जहां श्रीकृष्ण ने अवतरित होकर गीता का उपदेश दिया। यह वही भूमि है जहां श्रीराम ने मर्यादा का संदेश दिया। इसी धरा पर आदि शंकराचार्य ने अद्वैत का बोध कराया। इसी धरती पर सम्राट अशोक ने अहिंसा को अपनाया और यहीं पर छत्रपति शिवाजी व महाराणा प्रताप ने राष्ट्र गौरव की अलख जगाई।
सनातन संस्कृति को आत्मसात किए भारत की धरती अर्पण, तर्पण और समर्पण की धरा है। जैसे एक गुलदस्ते में विविध पुष्प एक साथ गुंथे होते हैं, वैसे ही सनातन संस्कृति में वेद, उपनिषद, पुराण, धार्मिक परंपराएं और नैतिक मूल्य आपस में गुंथे हुए हैं। यहां धर्म एक विस्तृत जीवन शैली है। यह जीवन को केवल जन्म से मृत्यु तक की यात्रा नहीं मानता, बल्कि कर्म और फल की अविरल धारा से जोड़ता है। जैसे कर्म होंगे, वैसा ही फल मिलेगा, यह विचार केवल सनातन में ही देखने को मिलता है।
सनातन संस्कृति से ओत-प्रोत वेद, पुराण, उपनिषद केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाले प्रकाश स्तंभ हैं। इस संस्कृति ने भारत को एक सूत्र में बांधा और विश्व को भारतीय दर्शन से जोड़ा है। सनातन केवल इतिहास नहीं, यह भविष्य की दिशा भी है। यह केवल ग्रंथों की भाषा नहीं, यह आत्मा की वाणी है। हमारे ग्रंथ केवल ज्ञान के स्रोत नहीं, वे जीवन के पथ प्रदर्शक हैं। यह वही संस्कृति है, जिसने विश्व को योग, ध्यान, आयुर्वेद और जीवन विज्ञान की अद्भुत धरोहर दी है। इस संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि समय का कोई आघात इसे डिगा नहीं सकता है।
पिछले तीन-चार दशकों में बीच में एक समय था, जब सनातन संस्कृति से दूरियां बढऩे की बात कही जाने लगी थी लेकिन बीता एक दशक इस मामले में बदलाव का साक्षी बना है। जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से भारत की सनातन संस्कृति का यशोगान हो रहा है। इससे समूचे विश्व में भारतीय सनातन संस्कृति जानने, समझने और आत्मसात करने की ललक पैदा हुई है। इस दौरान सनातन संस्कृति को पुन: जीवंत करने का कार्य हुआ है। मोदी सरकार में भारत की संस्कृति और परंपराओं के प्रचार-प्रसार के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे विश्व भर में सनातन संस्कृति को जानने और अपनाने की ललक बढ़ी है। हमारे युवा सनातन संस्कृति को आत्सात कर रहे हैं, जिससे उनका चरित्र निर्माण हो रहा है। हमारे युवाओं को अहसास हुआ है कि सनातन संस्कृति केवल एक परंपरा नहीं, यह जीवन जीने की कला है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने कर्तव्यों का पालन करें, समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखें और मानवता की सेवा करें। यह दर्शन, विज्ञान, साहित्य और कला से परिपूर्ण एक अनमोल धरोहर है। यदि कोई जीवन को गहराई से समझना और जीना चाहता है, तो उसे सनातन संस्कृति के सागर में गोता लगाना होगा। यह वह संस्कृति है जिसने न केवल भारत को, बल्कि पूरे संसार को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण दिया है। सनातन संस्कृति केवल अतीत की धरोहर नहीं, यह वर्तमान का आधार और भविष्य का मार्गदर्शन भी है। हमारा अतीत इस पर टिका था, हमारा वर्तमान इसका दर्पण है और हमारा भविष्य भी इसी की नींव पर खड़ा होगा। यही सनातन है, यही सत्य है और यही सनातन संस्कृति का अनंत प्रवाह है।
(लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं।)