
क्या आपको लगता है कि आपके मस्तिष्क में क्या चल रहा है, इसे कोई टेक कंपनी नहीं जान सकती? अगर ऐसा सोचते हैं तो आप भारी गलतफहमी में हैं। आप जो सोचते हैं, जो महसूस करते हैं, और यहां तक कि जो सपने देखते हैं—सब कुछ टेक कंपनियों के रडार पर है। आपको लगता होगा कि आपका मस्तिष्क अभेद्य किला है लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा डरावनी है।
क्या आपने कभी गौर किया है कि जब आप टाइप कर रहे होते हैं तो आपके वर्ड सजेशन में अगला शब्द लगभग वही होता है जो आप सोच रहे थे? यह कोई जादू नहीं है. यह आपकी सोच को पढ़ने की टेक्नोलॉजी है। आपका स्मार्टफोन, आपका लैपटॉप, आपके सोशल मीडिया अकाउंट—ये सभी आपकी आदतों, आपके विचारों और यहां तक कि आपके सबसे निजी एहसासों को इकट्ठा कर रहे हैं। ये कंपनियां केवल आपके टाइप किए गए शब्दों को नहीं,बल्कि आपके टाइप करने के ढंग को भी समझती हैं। वे यह तक जानती हैं कि आप किस भावनात्मक स्थिति में हैं।
जब आप गूगल पर कुछ टाइप करते हैं तो ऑटो-सजेशन आपको पहले ही बता देता है कि आप क्या खोज रहे हैं। जब आप यूट्यूब पर जाते हैं तो वहां वे वीडियो सामने आ जाते हैं जो आपने कभी सोचे थे कि देखने चाहिए। नेटफ्लिक्स आपकी पसंद की मूवी पहले ही सुझा देता है। क्या यह महज़ संयोग है? नहीं,यह आपका डिजिटल प्रोफाइलिंग डेटा है जो यह समझ चुका है कि आपके मन में क्या चल रहा है।
फेसबुक का मशहूर सवाल What’s on your mind? यूं ही नहीं रखा गया था। यह मासूम सा दिखने वाला सवाल वास्तव में वह जाल था जो आपकी गहरी भावनाओं,आपकी निजी समस्याओं और आपकी इच्छाओं को टेक कंपनियों की प्रयोगशाला में डालने का जरिया बना। आपको लगा कि आप अपने दोस्तों से बातें कर रहे हैं लेकिन असल में आप अपने जीवन का ब्लूप्रिंट टेक कंपनियों को सौंप रहे थे।
अमेज़न, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा —ये सब आपकी डिजिटल छाया को इकट्ठा कर रहे हैं।
ये जान रहे हैं कि आप कब खुश होते हैं,कब उदास होते हैं,कब गुस्से में होते हैं।फेसबुक के रिएक्शन फीचर्स को देखिए—वे केवल आपको अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं देते,वे आपके मूड का एनालिसिस करते हैं। यही कारण है कि जब आप किसी खास मुद्दे पर गुस्सा होते हैं तो वही मुद्दा बार-बार आपके सामने लाया जाता है ताकि आप और अधिक प्रतिक्रिया दें। यह सिर्फ डेटा कलेक्शन नहीं है. यह माइंड कंट्रोल का सबसे परिष्कृत रूप है।
अब सोचिए, जब आप किसी दोस्त से किसी प्रोडक्ट के बारे में बात करते हैं और अचानक से उसी प्रोडक्ट का विज्ञापन आपके फोन पर दिखने लगता है—क्या यह भी संयोग है? नहीं,यह माइक्रोफोन की ताकत है, यह आपके व्यवहार का एनालिसिस है। सिरी,गूगल असिस्टेंट,एलेक्सा—ये केवल आपकी मदद के लिए नहीं बनाए गए,ये आपकी जासूसी करने के लिए बनाए गए हैं।
अभी तो यह शुरुआत है।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और न्यूराल नेटवर्क्स की दुनिया में टेक कंपनियां धीरे-धीरे आपके निर्णय लेने की क्षमता तक प्रभावित करने लगी हैं। अब वे केवल यह नहीं जानतीं कि आप क्या सोच रहे हैं, बल्कि वे यह भी तय कर सकती हैं कि आप आगे क्या सोचेंगे। आप जिस खबर को पढ़ते हैं,वह आपकी स्क्रीन पर पहले से तय करके रखी जाती है। आपको किस विचारधारा की ओर झुकाना है,किस मुद्दे से भटकाना है, यह सब एल्गोरिदम तय करते हैं।
अगली बार जब आप सोचें कि आपका मस्तिष्क स्वतंत्र है, तो दोबारा सोचिए। टेक कंपनियां आपके अवचेतन तक पहुंच चुकी हैं। सवाल यह नहीं है कि वे आपके दिमाग में क्या चल रहा है,यह जानते हैं या नहीं—सवाल यह है कि आप खुद अपने दिमाग पर कितना नियंत्रण रखते हैं?
सावधान रहिए सुरक्षित रहिये।