भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवादी होना नहीं है: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन

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चेन्नई, छह मार्च (भाषा) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने बृहस्पतिवार को कहा कि भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवादी होना नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि “असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी, हिंदी कट्टरपंथी हैं” जो मानते हैं कि उनका अधिकार स्वाभाविक है लेकिन विरोध देशद्रोह है।

स्टालिन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, “जब आप विशेषाधिकार के आदी हो जाते हैं तो समानता उत्पीड़न जैसी लगती है। मुझे याद है जब कुछ कट्टरपंथियों ने हमें तमिलनाडु में तमिलों के उचित स्थान की मांग करने के ‘अपराध’ के लिए अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी करार दिया।”

उन्होंने कहा, “गोडसे की विचारधारा का महिमामंडन करने वाले लोग उस द्रमुक और उसकी सरकार की देशभक्ति पर सवाल उठाने का दुस्साहस करते हैं, जिसने चीनी आक्रमण, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और करगिल युद्ध के दौरान सबसे अधिक धनराशि का योगदान दिया, जबकि उनके वैचारिक पूर्वज वही हैं जिन्होंने ‘बापू’ गांधी की हत्या की थी।”

साथ ही उन्होंने कहा, “भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवाद नहीं है। क्या आप जानना चाहते हैं कि अंधराष्ट्रवाद क्या होता है? अंधराष्ट्रवाद 140 करोड़ नागरिकों पर लागू होने वाले तीन आपराधिक कानूनों को एक ऐसी भाषा देना है जिसे तमिल लोग न बोल सकते हैं और न ही पढ़कर समझ सकते हैं। अंधराष्ट्रवाद उस राज्य के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करना है जो देश में सबसे अधिक योगदान देता है और ‘एनईपी’ नामक जहर को निगलने से इनकार करने पर उसे उचित हिस्सा देने से मना किया जाता है।”

उन्होंने कहा, “किसी भी चीज को थोपने से दुश्मनी पैदा होती है, दुश्मनी एकता को खतरे में डालती है। इसलिए, असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी, हिंदी के कट्टरपंथी हैं जो मानते हैं कि उनका हक स्वाभाविक है लेकिन हमारा विरोध देशद्रोह है।”

इसके अलावा, हिंदी थोपे जाने की आलोचना करने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं को पत्र लिखते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोग धर्म से तो एकजुट हैं, लेकिन भाषा से अलग हैं।

उन्होंने कहा, “पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश के लोगों पर भाषा थोपना नए देश के निर्माण का मूल कारण था।” भाषा का प्रभुत्व तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के कारणों में से एक था।

उन्होंने आगे कहा कि मातृभाषा मधुमक्खी के छत्ते की तरह होती है और इसे छूना खतरनाक होगा। जब किसी भाषा को जबरन थोपा जाता है तो इससे दुश्मनी ही बढ़ती है और देश की एकता पर असर पड़ता है।

स्टालिन ने कहा, “अपनी मातृभाषा की तरह हम दूसरों की मातृभाषा का भी सम्मान करते हैं और जिन लोगों की मातृभाषा हिंदी है, वे भी हमारे भाई-बहन हैं।”

उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि केंद्र सरकार ने ‘हिंदी दिवस’ मनाया, जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध अन्य भाषाओं के लिए अलग से कोई उत्सव क्यों नहीं मनाया गया। उन्होंने इस ‘पक्षपात’ की निंदा की। उन्होंने आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं को आधिकारिक भाषा घोषित करने में होने वाली हिचकिचाहट पर भी सवाल उठाया।

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