एलर्जी: रोग और निदान

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एलर्जी शरीर की संवेदनशील प्रक्रिया है जो किसी विशिष्ट पदार्थ के अवशोषण से बाह्य लक्षणों के रूप में प्रदर्शित होती है। उदाहरणस्वरूप उल्टी होना, नजला, चक्कर, शरीर का नीला पड़ जाना आदि जैसी असामान्य क्रियाएं होने लगती है।
कोई भी भोज्य पदार्थ किसी भी व्यक्ति पर प्रतिक्रिया कर सकता है। यह उस व्यक्ति विशेष की शारीरिक संरचना पर निर्भर करता है कि उसके उत्तक किस पदार्थ से संवेदनशील हो उठते हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि अण्डा, दूध, फल, अनाज, मछली आदि से अधिक एलर्जी होती है परन्तु यह बात शत प्रतिशत सही नहीं मानी जा सकती। इसके अलावा भी एलर्जी के और भी कई स्रोत माने जाते हैं।
अक्सर यह देखने में आता है कि पेय पदार्थों से भी लोग एलर्जीग्रस्त हो जाते हैं। सर्वेक्षण के दौरान इस तथ्य की पुष्टि हो चुकी है। एक एलर्जी पीडि़त लड़की के अनुसार जब भी वह कोई ठंडा पेय पदार्थ लेती है तो उसका शरीर संवेदनशील हो उठता है। फलस्वरूप उसके शरीर में कई प्रकार के असामान्य लक्षण प्रकट होने लगते हैं जैसे खुजली होना, शरीर पर दाने निकल आना इत्यादि। पेय पदार्थों के अतिरिक्त और भी ऐसे कारक हैं जो एलर्जिक प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। सुगंधित पदार्थ, फूलों के पराग, धूलकण, पेट्रोल या केरोसिन तेल की गंध, फफंूदी, दर्दनिवारक गोलियां इत्यादि इसी श्रेणी में आते हैं।
इन सारे कारकों को एलर्जन (प्रतिजन) की संज्ञा दी गई है जो शरीर में प्रविष्ट होने पर प्रतिपिंड (एलर्जिक) पदार्थों के उत्पादन को अभिप्रेरित करते हैं। उत्पादित प्रतिपिंड और पहले से शरीर में स्थित प्रतिपिण्डों में परस्पर एक प्रतिक्रिया होती है। इस प्रतिक्रिया के फलस्वरूप शरीर में कुछ हानिकारक रसायन उत्पादित होते हैं जो एलर्जी के लक्षण उत्पन्न करते हैं।
प्रतिपिंड जो मुख्य रूप से एलर्जी कारक होते हैं, उसी प्रतिजन के अनुसार होते हैं जो उन्हें उत्पन्न करता है। ये रक्त के ’गामा ग्लोबुलिन‘ वाले अंश में विद्यमान हैं। ये प्रतिजन और प्रतिपिंड जब परस्पर प्रतिक्रिया करते हैं तो ’हिस्टामिन‘ और ’सेरोटोनिन‘ नामक रसायनिक पदार्थ मुक्त करते हैं जो शरीर ताप अनियंत्राण, श्वास अनियंत्राण, त्वचा शोथ जैसी परेशानियां उत्पन्न करते हैं।
एलर्जी का प्रभाव शरीर पर कभी-कभी तो अप्रत्याशित तेजी से होता है तो कभी काफी धीमी गति से। यह शरीर की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है। कम संवेदनशील व्यक्ति पर कई दिनों तक एक ही भोज्य पदार्थ के सेवन के उपरांत एलर्जी के लक्षण दिखाई पड़ते हैं तो अत्यधिक संवेदनशील व्यक्ति पर इसका प्रभाव एक या दो घंटे में ही स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है।
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार ’एलर्जी‘ वंशानुगत भी हो सकती है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि किसी विशेष खाद्य पदार्थ से संवेदनशीलता वंशगत रूप में चले। उदाहरणस्वरूप यदि मां को ’विटामिन बी काम्पलेक्स‘ से एलर्जी है तो कोई आवश्यक नहीं कि उसकी संतानों को भी उसी से हो। उन्हें अंडे से एलर्जी हो सकती है।
आमतौर पर एलर्जी किसी एक चीज के कारण नहीं होती। इसके एक से अधिक कारण हो सकते हैं। यदि एलर्जी के दो कारण एक साथ प्रकट हो जाते हैं तो इसके गंभीर परिणाम या लक्षण सामने आते हैं इसलिए इसके निदान का जानना अति आवश्यक है।
इसके लिए सबसे पहले एलर्जी पीडि़त व्यक्ति के व्यक्तिगत इतिहास को जानना काफी जरूरी होता है। साथ ही उसके आहार (ठोस या पेय) की सूची बनाकर उसके सेवन के पश्चात् होने वाली प्रतिक्रियाओं (शरीर में) का             अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
खाद्य पदार्थों के सेवन की सूची और एलर्जी के लक्षण से यह ज्ञात हो जाता है कि एलर्जी का मुख्य कारण क्या है? इस विश्लेषण में दो या तीन वर्ष भी लग सकते हैं या दो तीन सप्ताह में ही परिणाम सामने आ सकते हैं। यह व्यक्ति के शरीर की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है।
इसके अतिरिक्त रोगी की त्वचा और उसके आहार की जांच करना भी आवश्यक होता है। त्वचा परीक्षण में, त्वचा को खरोंच कर उस स्थान पर प्रतिजन की एक बूंद डाली जाती है और 15 से 30 मिनट पश्चात् प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है।
दूसरे प्रकार के परीक्षण में त्वचा की परतों में प्रतिजन का इंजेक्शन दिया जाता है। धब्बा परीक्षण में फिल्टर पेपर पर आशंकित भोज्य पदार्थ या उसके ’एक्सटैªक्ट‘ को रखकर त्वचा पर ’सेलोफेन‘ से ढककर 24 घंटे तक रख दिया जाता है। यदि खरोंच या उस  भोज्य पदार्थ के संपर्क वाले स्थान पर लाल प्रदाह या लाल टीका (चकत्ता) दिखाई पड़ता है तो उस विशेष भोज्य पदार्थ में एलर्जन होने की आशंका होती है। इसी प्रकार आहार परीक्षण में भिन्न-भिन्न भोज्य पदार्थों को एक सप्ताह तक नियमित रूप से देकर शारीरिक लक्षण का अध्ययन किया जाता है।
अगर एलर्जी का कोई लक्षण प्रकट होता है तब अन्य ’कनफर्मिंग टेस्ट‘ किये जाते हैं। दूसरी विधि में एलर्जी कारक भोज्य पदार्थ रोगी को एक सप्ताह तक नहीं दिया जाता। फिर उससे उत्पन्न होने वाले लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। यह प्रक्रिया लगातार कई सप्ताह तक दुहराई जाती है और प्राप्त अध्ययनों का पुनः तुलनात्मक अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला जाता है और तदनुरूप उसका उपचार किया जाता है।
वास्तव में एलर्जी कोई रोग है ही नहीं। यह मात्रा शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन या शारीरिक उद्दीपन है। इसका निदान हम चाहें तो थोड़ी सी सूझबूझ के सहारे कर सकते हैं और डॉक्टरी इलाज के फिजूल खर्चे से बच सकते हैं। इसके लिए मात्रा अपने आहार पर या वैसे पदार्थ जिसके कारण शरीर में अनियमितता के लक्षण प्रकट हों, उस पर नियंत्राण रखना होगा। उनसे अपने शरीर के सम्पर्क को बचाना होगा। इसके अलावा संश्लेषित आहार के सेवन द्वारा भी इस समस्या का निदान काफी हद तक पाया जा सकता है।
 

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