
यह पंजाब का दस्तूर है कि वहां सत्ता चलाने के रास्ते 2 ही हैं… या खुलकर तुष्टिकरण… या प्रदेश भर में ‘डांग फेरी जाए’ (लट्ठ चलाए)। समय रहते ही कट्टरवादी पंथकों पर डंडा नहीं चलाने वाली सरकारों के हाल बुरे ही हुए हैं जैसे ज्ञानी जैल सिंह , दरबारा गवर्नमेंट,बरनाला सरकार,भट्ठल गवर्नमेंट,सुखबीर बादल सरकार,चन्नी सरकार।
थोड़ा सा पीछे जाते हुए तब के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो AAP द्वारा 2017 चुनाव में खुलकर तुष्टिकरण किया गया जिससे पंजाब में उसने पांव मजबूत कर लिए। 2022 में AAP सरकार बनवाने में सबसे बड़ा रोल किसान_आंदोलन का था। पंजाब चुनाव से डेढ़ वर्ष पहले दिल्ली में धरना देकर आंदोलन खड़ा करने की रूपरेखा तैयार हो गई थी। पंजाब की सभी किसान यूनियनों के संपर्क में रहती थी दिल्ली में AAP सरकार।
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में राकेश टिकैत को अलग से धरनास्थल मुहैया करवाया। फिर केजरीवाल की पार्टी और राकेश टिकैत में मजबूत संबंध पैदा हुए।
यहां केजरीवाल और किसान यूनियनों के बीच पंजाब चुनाव को लेकर एक राय स्थापित हो गई थी कि चुनाव आंदोलनकारी संयुक्त_किसान_मोर्चा से गठबंधन कर लड़ा जाएगा लेकिन पिछले दरवाजे से AAP अपना आधार स्वयं किसानों में जमाने जुटी हुई थी। इसके पीछे की चालाकी संयुक्त किसान मोर्चा नहीं समझ पाया। चुनाव के ऐन मौके पर AAP और संयुक्त किसान मोर्चे में सीटों के बंटवारे की बातचीत पटरी से उतर गई।
उसी तरह खालिस्तानी नेता सिमरनजीत मान से भी AAP की गठबंधन पर बात लगभग फाइनल हो चुकी थी. वह भी पटरी से उतर गई क्योंकि तब तक स्वयं AAP डायरेक्ट तरीके से पंजाब के किसान वर्ग यानी जट्ट सिक्खों में पॉपुलर हो चुकी थी। इसलिए उन्होंने सीट शेयरिंग का प्रस्ताव रद्दी के टोकरे में डाल सभी सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए।
2022 के चुनाव में ध्रुवीकरण जट्ट सिख vs दलित था क्योंकि कांग्रेस का CM प्रत्याशी दलित था। फिर भी दलितों के 2 तिहाई वोट कांग्रेस और 1 तिहाई वोट AAP को गए क्योंकि यह वोट फ्री की रेवड़ियों पर आकर्षित थे । सिख और किसान वोटों का ध्रुवीकरण AAP के पक्ष में इतना जबरदस्त था कि मालवा (दक्षिण पंजाब) की 69 सीटों में से AAP 66 पर जीती। इसी मालवा बेल्ट में तत्कालीन सीएम चन्नी अपनी दोनों सीट पर हार गए। हालांकि लुधियाना जिले से कांग्रेस कुछ सीट जीत सकती थी लेकिन तत्कालीन CM चन्नी द्वारा प्रवासी बिहारियों/पूर्वांचलियों के खिलाफ दिए गए बयानों के चलते लुधियाना में भी माहौल कांग्रेस के विरुद्ध हो गया था।
2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में जट्ट सिख AAP के पक्ष में इतने मजबूती से गोलबंद हो गए थे… कि उस चुनाव में दोनों बादल पिता-पुत्र,मनप्रीत बादल,कैप्टन अमरेन्द्र,सुरजीत सिंह रखड़ा,ढींढसा,जत्थेदार तोता सिंह,दर्शन सिंह बराड़ खोट्टे,बलबीर सिद्धू, बीबी भट्ठल,गोल्डी खंगूड़ा सिद्धू मूस्सेवाला, ex Cm हरचरण बराड़ की बहू , पूर्व CM सुरजीत बरनाला का बेटा, सिमरनजीत मान,किसान यूनियन के मुखिया राजेवाल और रुल्दू सिंह मानसा,दिल्ली आंदोलन में नया किसान नेता बने गैंगस्टर लक्खा सिधाणा,जनमेजा सिंह सेखों,कुलबीर जीरा,नवतेज चीमा,गुरप्रताप वडाला,आदेश प्रताप कैरों,विक्रम मजीठिया,नवजोत सिद्धू, हरप्रताप अजनाला, रविकर्ण काहलों… जैसे तमाम बड़े जट्ट चेहरे हार गए जो कांग्रेस या अकाली दल से प्रत्याशी बने थे।
दिल्ली चुनाव में केजरीवाल की बुरी हार के बाद उसके द्वारा पंजाब में डेरा लगाने… और सत्ता को स्वयं सीधे तौर पर चलाने के प्रयासों से घबराए भगवंत द्वारा… कुछ ऐसा किया जा रहा है कि पंजाब में आए केजरीवाल के सामने ऐसा संघर्ष छेड़ दिया जाए जिससे केजरीवाल के भी हाथ जल जाएं… और सिख पंथक राजनीति के उग्र होने से स्वयं CM बनने की ना सोचे।
भगवंत मान और पंजाब में AAP समझ चुकी है 2027 में पंजाब में वापसी नहीं होने वाली. सिख तुष्टिकरण और किसान तुष्टिकरण का कार्ड भी खेला जा चुका है. अब इसे और भुनाया नहीं जा सकता, सो अब वह पंजाब में किसान यूनियनों पर डांग फेरने (डंडा चलाने) वाली पॉलिटिक्स का सहारा लेने की सोच रहे हैं।
हाल ही के दिनों में भगवंत मान ने अपना गेटअप चेंज कर लिया है और स्वयं को पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की भांति दिखाने की कोशिशें हो रही हैं। सबसे पहले उसने किसान यूनियनों के साथ हुई बैठक को बीच में छोड़ते हुए सभी किसान नेताओं पर डंडा चलाने की धमकी दी है! अब आगे क्या होता है यह समय ही बताएगा।
थोड़ा सा पीछे जाते हुए तब के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो AAP द्वारा 2017 चुनाव में खुलकर तुष्टिकरण किया गया जिससे पंजाब में उसने पांव मजबूत कर लिए। 2022 में AAP सरकार बनवाने में सबसे बड़ा रोल किसान_आंदोलन का था। पंजाब चुनाव से डेढ़ वर्ष पहले दिल्ली में धरना देकर आंदोलन खड़ा करने की रूपरेखा तैयार हो गई थी। पंजाब की सभी किसान यूनियनों के संपर्क में रहती थी दिल्ली में AAP सरकार।
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में राकेश टिकैत को अलग से धरनास्थल मुहैया करवाया। फिर केजरीवाल की पार्टी और राकेश टिकैत में मजबूत संबंध पैदा हुए।
यहां केजरीवाल और किसान यूनियनों के बीच पंजाब चुनाव को लेकर एक राय स्थापित हो गई थी कि चुनाव आंदोलनकारी संयुक्त_किसान_मोर्चा से गठबंधन कर लड़ा जाएगा लेकिन पिछले दरवाजे से AAP अपना आधार स्वयं किसानों में जमाने जुटी हुई थी। इसके पीछे की चालाकी संयुक्त किसान मोर्चा नहीं समझ पाया। चुनाव के ऐन मौके पर AAP और संयुक्त किसान मोर्चे में सीटों के बंटवारे की बातचीत पटरी से उतर गई।
उसी तरह खालिस्तानी नेता सिमरनजीत मान से भी AAP की गठबंधन पर बात लगभग फाइनल हो चुकी थी. वह भी पटरी से उतर गई क्योंकि तब तक स्वयं AAP डायरेक्ट तरीके से पंजाब के किसान वर्ग यानी जट्ट सिक्खों में पॉपुलर हो चुकी थी। इसलिए उन्होंने सीट शेयरिंग का प्रस्ताव रद्दी के टोकरे में डाल सभी सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए।
2022 के चुनाव में ध्रुवीकरण जट्ट सिख vs दलित था क्योंकि कांग्रेस का CM प्रत्याशी दलित था। फिर भी दलितों के 2 तिहाई वोट कांग्रेस और 1 तिहाई वोट AAP को गए क्योंकि यह वोट फ्री की रेवड़ियों पर आकर्षित थे । सिख और किसान वोटों का ध्रुवीकरण AAP के पक्ष में इतना जबरदस्त था कि मालवा (दक्षिण पंजाब) की 69 सीटों में से AAP 66 पर जीती। इसी मालवा बेल्ट में तत्कालीन सीएम चन्नी अपनी दोनों सीट पर हार गए। हालांकि लुधियाना जिले से कांग्रेस कुछ सीट जीत सकती थी लेकिन तत्कालीन CM चन्नी द्वारा प्रवासी बिहारियों/पूर्वांचलियों के खिलाफ दिए गए बयानों के चलते लुधियाना में भी माहौल कांग्रेस के विरुद्ध हो गया था।
2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में जट्ट सिख AAP के पक्ष में इतने मजबूती से गोलबंद हो गए थे… कि उस चुनाव में दोनों बादल पिता-पुत्र,मनप्रीत बादल,कैप्टन अमरेन्द्र,सुरजीत सिंह रखड़ा,ढींढसा,जत्थेदार तोता सिंह,दर्शन सिंह बराड़ खोट्टे,बलबीर सिद्धू, बीबी भट्ठल,गोल्डी खंगूड़ा सिद्धू मूस्सेवाला, ex Cm हरचरण बराड़ की बहू , पूर्व CM सुरजीत बरनाला का बेटा, सिमरनजीत मान,किसान यूनियन के मुखिया राजेवाल और रुल्दू सिंह मानसा,दिल्ली आंदोलन में नया किसान नेता बने गैंगस्टर लक्खा सिधाणा,जनमेजा सिंह सेखों,कुलबीर जीरा,नवतेज चीमा,गुरप्रताप वडाला,आदेश प्रताप कैरों,विक्रम मजीठिया,नवजोत सिद्धू, हरप्रताप अजनाला, रविकर्ण काहलों… जैसे तमाम बड़े जट्ट चेहरे हार गए जो कांग्रेस या अकाली दल से प्रत्याशी बने थे।
दिल्ली चुनाव में केजरीवाल की बुरी हार के बाद उसके द्वारा पंजाब में डेरा लगाने… और सत्ता को स्वयं सीधे तौर पर चलाने के प्रयासों से घबराए भगवंत द्वारा… कुछ ऐसा किया जा रहा है कि पंजाब में आए केजरीवाल के सामने ऐसा संघर्ष छेड़ दिया जाए जिससे केजरीवाल के भी हाथ जल जाएं… और सिख पंथक राजनीति के उग्र होने से स्वयं CM बनने की ना सोचे।
भगवंत मान और पंजाब में AAP समझ चुकी है 2027 में पंजाब में वापसी नहीं होने वाली. सिख तुष्टिकरण और किसान तुष्टिकरण का कार्ड भी खेला जा चुका है. अब इसे और भुनाया नहीं जा सकता, सो अब वह पंजाब में किसान यूनियनों पर डांग फेरने (डंडा चलाने) वाली पॉलिटिक्स का सहारा लेने की सोच रहे हैं।
हाल ही के दिनों में भगवंत मान ने अपना गेटअप चेंज कर लिया है और स्वयं को पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की भांति दिखाने की कोशिशें हो रही हैं। सबसे पहले उसने किसान यूनियनों के साथ हुई बैठक को बीच में छोड़ते हुए सभी किसान नेताओं पर डंडा चलाने की धमकी दी है! अब आगे क्या होता है यह समय ही बताएगा।