सुषमा कितनी चुस्त थी। हर कार्य ऐसे फुर्ती से निपटाती कि बस पता ही नहीं चलता पर धीरे-धीरे वह औरतों की महफिल में बैठ-बैठ कर आलसी व लापरवाह हो गई। अब वह जल्दी-जल्दी कुछ काम करती, कुछ छोड़ती और शुरू हो जाता उसका इधर-उधर घूमना व गप्पबाजी करना। एक दिन सुषमा को बहुत बुराई मिली व उसकी बनी-बनाई इज्जत सब मिट्टी में मिल गई। उसे गप्पें मारने की क्या आदत पड़ी, बेचारी सब भूल गई। बदले में मिली बुराई व जिल्लत। उस दिन बहुत रोई क्यों कि उसने अपना आत्मविश्वास खो दिया था। बनी बनाई इमेज बिगाड़ ली थी। उसी दिन रोते-रोते सुषमा ने मन में दृढ़ निश्चय किया व अपना खोया हुआ आत्मविश्वास जगाया। अगले दिन अपनी अच्छी दिनचर्या में सुबह जल्दी उठी, घर परिवार वालों से भी जल्दी। भगवान को प्रणाम कर हल्का, व्यायाम, दैनिक दिनचर्या से निवृत्त हो फ्रेश हो कर घर का सारा कार्य जल्दी-जल्दी निपटाया, जाने वालों को भेज कर अपने ही घर में सफाई सुधार, पढ़ना, लिखना यानी कुछ न कुछ करते ही रहना। उसका खोया हुआ आत्मविश्वास जाग चुका था। घर में ही मग्न रहकर कुछ न कुछ करते रहकर अपने आप को व्यस्त रखने की उसकी आदत पड़ चुकी थी। अपने घर परिवार में लीन रहती। फिर क्या था। सुषमा को पहले जैसा सम्मान व इज्जत मिलने लगा। कई बार हम सोचते हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते। अब हमारी उम्र नहीं। छोटी-छोटी बीमारी को बड़ा रूप देकर तनाव पालना गलत है। अगर हमें अपनी इज्जत प्यारी है तो दृढ़ निश्चय करें। अपना विश्वास जगाएं व कुछ कर दिखाएं।