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भारतीय फिल्में सारी दुनिया में उत्साह और उमंग के साथ देखी जाती हैं। एक दौर ऐसा भी था जब फिल्मों से ज्यादा उनका संगीत पसंद किया जाता था। भारतीय फिल्मों की पहचान ही उनका कर्णप्रिय और सुमधुर संगीत हुआ करता था लेकिन समय के साथ अब यह पहचान धूमिल होती जा रही है। फिल्मी संगीत अब अपनी मधुरता खोता जा रहा है। कहा जाता है कि जीवन का प्रत्येक क्षण संगीत से जुड़ा होता है। हमारी सांसे भी संगीत की ताल और लय के अनुसार चलती हैं। मधुर संगीत मनुष्य को तनावमुक्त करता है। शास्त्रीय संगीत के हर राग का अपना विशेष महत्व है। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि मनुष्य के रोगोपचार में भी शास्त्रीय संगीत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे समय में जब विज्ञान एवं चिकित्सा जगत शास्त्रीय संगीत की महत्ता को स्वीकार कर रहे हैं, तब फिल्मों से गायब होता शास्त्रीय संगीत सबको चौंका देता है।
आधुनिक समय में क्षणिक आनंद के लिए फिल्मों में हुल्लड़बाजी और शोर-शराबे से भरे गीत डाल दिए जाते हैं जो कुछ ही समय बाद गुमनामी की गर्त में समा जाते हैं। इसके विपरीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत लोग वर्षों बाद भी याद रखते हैं। वैसे गीत-संगीत भारतीय फिल्मों की आत्मा है और यहां वही गीत अमर हो पाते हैं जो शास्त्रीय संगीत पर आधारित होते हैं। भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ में कुल ग्यारह गीत थे, जो इस बात के प्रमाण हैं फिल्मों में आरंभ से ही गीत-संगीत को आवश्यक तत्व माना जाता रहा है। इस फिल्म के सभी गीत शास्त्रीय रागों पर आधारित थे। आरंभिक दौर की फिल्मों में अधिकांश गीत शास्त्रीय रागों पर ही आधारित हुआ करते थे। उसी समय बनी एक फिल्म इन्द्रसभा में तो 71 गाने थे।
राग आधारित गीत चाहे वे सुख के हों या दु:ख के, मिलन के गीत हों या विरह के या फिर नृत्य गीत ही क्यों न हों सभी को सुनने का एक अलौकिक आनंद होता था। इस तरह के सैकड़ों गीत वर्षों बीत जाने के बाद आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
सुप्रसिद्ध फिल्म ‘बैजूबावरा’ का गीत- मोहे भूल गये सांवरिया, तू गंगा की मौज में जमना का धारा, ‘संत ज्ञानेश्वर’ फिल्म का गीत ‘जोत से जोत जलाते चलो’या फिर मनोज कुमार की सुपरहिट फिल्म ”उपकार” का गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती’ क्या कोई कभी भी भुला सकता है? ये सभी गीत राग भैरवी पर आधारित हैं।
झूमती चली हवा (फिल्म-तानसेन, राग सोहनी) मधुबन में राधिका नाचेगी (फिल्म- कोहिनूर, राह हमीर) नैनों में बदरा छाए (मेरा साया, राग हमीर) के अलावा राग हमीर के ही गीत ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी, मेघा छाए आधी रात गीत आज भी अविस्मरणीय हैं। राग मियां मल्हार के गीत बोले रे पपीहरा (गुड्डी), राग वागेश्वरी के राधा न बोले (आजाद) बसंत बहार के जा जा रे बालमा, राग कल्याण का मन रे तू काहे न धीरे धरे (चित्रलेखा), यमन कल्याण के मितवा (परिचय), तुम गगन के चंद्रमा में धरा की धूल हूं (सावित्री), लगता नहीं है मेरा दिल (लाल पत्थर), अहिर भैरव का पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, राग तिलंग का पिया तोसे नैना लागे (गाइड), राग जयजयवंती का मनमोहना बड़े झूठे, राग देशकार का ज्योति कलश छलके, राग केदार का दरशन दो घनश्याम, पल दो पल का साथ हमारा (द बर्निंग ट्रेन), राग तोड़ी का रैना बीती जाए (अमर प्रेम), राग शिवरंजनी का जरा सामने तो आओ छलिये जैसे गीत आज वर्षों बीत जाने के बाद भी लोकप्रिय बने हुए हैं।
आज के इस दौर में जहां केवल तेज संगीत को ही सफलता का सूत्र माना जाता है, वहां आजकल के संगीतकार भूल जाते हैं कि तेज संगीत में भी यदि कलात्मकता हो तो उसे सर्वकालीन और सर्वप्रिय बनने से कोई नहीं रोक सकता। फूहड़ और शोर-शराबे से भरपूर गीतों को क्षणिक लोकप्रियता भले ही मिल जाए लेकिन सदाबहार गीत वही हुआ करते हैं जो सरल, मधुर और कर्णप्रिय होते हैं। क्या आज के दौर के संगीतकार शंकर-जयकिशन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, फिरोज शाह, पंकज मलिक, गुलाम हैदर, खेमचंद, नौशाद, सचिन देव बर्मन, सी. रामचंद्र, रोशन, सलिल चौधरी, ओ.पी. नैय्यर, चित्रगुप्त या फिर आर.डी. बर्मन जैसे संगीत निर्देशकों की तरह सुरीले गीत दे पाएंगे? रीमिक्स को सफलता का पैमाने मानने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि आजकल के गाने पानी में उठे उस बुलबुले के समान हैं जो क्षण भर का मेहमान होता है जबकि पुराने संगीतकारों के शास्त्रीय संगीत युक्त गीत गगन में चमकते उस सूरज के समान हैं, जिसकी आभा कभी मद्धिम नहीं होती।
इस दौर में भी प्रतिभाशाली संगीतकारों की कमी नहीं है।अब अच्छे संगीतकारों की प्रतिभा भी अपना करिश्मा नहीं दिखा पा रही है। संगीत किसी भी राष्ट्र की सभ्यता संस्कृति व संस्कारों का दर्पण होता है। हमारे देश में संगीत को इतना सम्मान दिया जाता है कि देवी सरस्वती (जिन्हें संगीत की देवी भी कहते हैं) घर-घर में पूजी जाती हैं। आज भी सारी दुनिया में लता मंगेशकर और जगजीत सिंह के गीत बड़े ध्यान से सुने जाते हैं। भारतीय संगीत से सारे विश्व को गुंजायमान करने के लिए फिल्मकारों को आगे आना होगा और एक बार फिर से शास्त्रीय संगीत पर आधारित सुरीले गीतों की रचना करनी होगी तभी वे ‘ज्योति कलश छलके’ जैसी कालजयी रचनाओं का निर्माण कर सकेंगे।