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प्रत्येक दिन ऐसी घटना कहीं ना कहीं जरूर सुनाई दे रही है जिससे रिश्तो की मर्यादाएं कलंकित हो रही है और सवाल खड़ा हो रहा है । कहीं बेटा बाप की हत्या कर दे रहा है , पति पत्नी की , पत्नी पति की , बेटा मां बाप का , भाई बहन का , बहन भाई का आदि आदि । ऐसी घटनाएं मन को झकझोर कर रख देती हैं कि आखिर यह क्या हो रहा है ? लालच स्वार्थ आदि के लिए अपने अपनों की जान ले ले रहे हैं । कहीं-कहीं मानसिक विकारों के कारण भी लोग अपनों की जान ले रहे हैं । माना जाता है कि लोग घर परिवार में ज्यादा सुरक्षित होते हैं और घर परिवार जैसे सुरक्षित कोई और जगह हो भी नहीं सकती है लेकिन अब यह भी सुरक्षित नहीं रह गया है । आखिर यह क्या हो रहा है ? हमारी संस्कृति , हमारी परंपराएं हमें ऐसी शिक्षा तो नहीं देती कि हम किसी की गला घोंटे तुच्छ स्वार्थों के लिए । आखिर कहां जा रहे हैं हम ।
कहीं हम ऐसे पतन की तरफ तो नहीं बढ़ रहें हैं जिसका कोई इलाज हीं न हो ? क्या भौतिकतावाद ने हमारी आंखें बंद कर रखीं हैं। कहीं ना कहीं भौतिकतावाद समाज भी इसके लिए जिम्मेदार हैं । हम नैतिकता , सदाचार , सहयोग , भावात्मकता आदि चीजों पर जोर नहीं दे रहे हैं । इस चीजों से दूर होते जा रहे हैं जिससे ऐसे परिणाम हमें भुगतने पड़ रहें हैं। हमारी सांस्कृतिक शिक्षा, हमारी परंपराएं ऐसी शिक्षा देती थी, सिख देती थी जिससे परिवार , समाज , मजबूत बन सके । लोग एक दूसरे को समझ सके , भावात्मकता जुड़ाव मजबूत हो सके । धीरे-धीरे हम अपनी संस्कृति परंपरा से दूर होते जा रहे हैं और हर जगह स्वार्थीपन , लालच जैसी चीजें अपना साम्राज्य स्थापित करतीं जा रहीं हैं जिसका नतीजा यह देखने को मिल रहा है।
आजकल मोबाइल गेमिंग भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। अगर स्थिति ऐसी ही रही और इसके प्रति सोचा नहीं गया , ऐसी घटनाएं रोकने का प्रयास नहीं किया गया तो स्थिति और बद से बदतर हो सकती है । हर रोज पढ़ने सुनने देखने को मिल रहा है कि अपने ने किसी अपने की ही जान ले लिया । ऐसी-तैसी खबरें आखिर हम कब तक पढ़ते सुनते देखते रहेंगे। सोचने वाली बात है कि ऐसे लोग पनप कहां रहे हैं । हमें ऐसे शिक्षा की जरूरत है , अभियान की जरूरत है जो हमारे अंदर से स्वार्थ लालच के साथ नशाखोरी आदि बुराई को भी खत्म करें । हमारी सांस्कृतिक शिक्षा, परम्पराओं आदि चीजों से हमें जोड़ें जिससे हम सब इस प्रकार की घटनाओं से दूर हो सकें और एक मजबूत रिश्तो की नींव का निर्माण कर सकें जिसमें बड़े छोटे सभी रिश्तों की मर्यादा हों,समझ हों । हर उन चीजों पर सख्त रोक लगें जो रिश्तों की डोर को कमजोर कर रहें हैं।
हमें भी अपनी भाग दौड़ भरी जिंदगी से समय निकालकर एक दूसरे के साथ समय बिताना पड़ेगा तभी हम और हमें हमारा परिवार और रिश्ते हमें समझ पाएंगे हम उन्हें समझ पाएंगे। एक जमाने में दादा – दादी , नाना – नानी , मां-बाप , बच्चों को समय देते थे शिक्षाप्रद , संस्कारयुक्त कहानी सुनाते बताते सीखते थे लेकिन यह सब बीती बात हो गई है। सब लोग कामकाजी हो गए हैं । सबको शहर की हवा लग गई है । समय किसी के पास नहीं है। दादा-दादी , नाना – नानी गांव में होते है पोता पोती शहर में मां-बाप के साथ होते हैं । मां-बाप भी नौकरी पेशा वाले हैं। बच्चा स्कूल स्कूल से घर बाकी समय अकेलेपन में । सबके पास समय का अभाव है । एक दूसरे को समझने का समय किसी के पास नहीं है । आज आवश्यकता इस बात की है कि भाग दौड़ भरी जिंदगी से समय निकालकर बच्चों को समय जरूर दिया जाए , उन्हें समझा जाए अगर औलाद कहीं रिश्ते मर्यादा नहीं समझनें वाला है तो आपका सब कुछ बेकार हो गया जबकि सब कुछ औलाद के लिए ही किया गया। आज से ही सही कोशिश कीजिए की रिश्तों की मर्यादा बचीं रहें।