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परिवार जिसे सुरक्षा का मजबूत स्तंभ माना जाता है, उसकी सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह न लगने पाए, इसके लिए परिवार के साथ-साथ समाज को भी प्रयास करने होंगे ।
हमारे समाज में बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। महिलाओं के लिए ऐसी घटनाएं तब और भी असहनीय हो जाती हैं जब उन्हें कुचलने वाले भी वे हाथ हों जिनके संरक्षण में वे स्वयं को बेहद सुरक्षित महसूस करती हैं तो ऐसे में किससे सुरक्षा की गुहार लगाई जाए। विदेशों में ऐसी घटनाएं बड़ी संख्या में घटती हैं। भारत में भी ऐसी घटनाओं का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है।
जिम्मेदारी किसकी
चूंकि यह बहुत ही संवेदनशील विषय है और सीधे तौर पर परिवार से जुड़ा है तो इसे रोकने के प्रयासों में पहल तो पारिवारिक सदस्यों को ही करनी होगी।
लेकिन अफसोस, अधिकांश भारतीय परिवारों में इस बात का ख्याल ही नहीं रखा जाता। जब ऐसी घटनाएं घट जाती हैं, तब भी कुछ लोग इसे दबाने का ही प्रयास करते हैं ताकि घर की बात बाहर न जाने पाए। कड़वी जरूर है पर यही भारतीय समाज की सच्चाई है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक इलाके में एक महिला के साथ बलात्कार हुआ तो उससे शादी करने के लिए जो शख्स आगे आया, उसने बाद में उसी का सौदा कर डाला। उक्त महिला ने दोषियों को सजा दिलाने का निर्णय लिया तो उसके बेरोजगार पति ने सत्राह लाख में आरोपियों से महिला को चुप रखने का वादा कर लिया। अब वह महिला बलात्कारियों के साथ-साथ पति को भी सजा दिलाने को प्रतिबद्ध है।
प्रायः ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं कि दूर-दराज गांव से रिश्ते के चाचा लड़की को नौकरी दिलवाने के बहाने महानगर लाए व फिर उसे बेच दिया या उससे कुकर्म किया। इन खबरों के बावजूद अपनों से लड़की की सुरक्षा पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।
मां को रखना होगा ख्याल
जानते हैं कि बच्चियों की सुरक्षा कैसे की जाए:-
बेटी की सबसे अच्छी मार्गदर्शक उसकी मॉम ही होती है। वह अपनी बच्ची की दोस्त, गाइड सब कुछ बन सकती है। अपनों द्वारा ही बच्चियों की इज्जत नीलाम होने की दर भारतीय समाज में न बढ़े, इसके लिए प्रयास घर से ही करने होंगे। बच्चियों को शिक्षा देने का काम जितना बेहतर ढंग से मां कर सकती है, उतना कोई और नहीं।
मां को चाहिए कि बेटी के शारीरिक अंगों के विकास के बारे में उसे बताए।
पिता, भाई व करीबी रिश्तेदारों से वह किस प्रकार शारीरिक दूरी बनाकर रखे, इसकी शिक्षा उसे दें।
उसे समझाएं कि घर के पुरूषों के सामने वह कोई ऐसी बात न करे, जो सीधे फीमेल से जुड़ी हों जैसे मासिक धर्म या अंदरूनी वस्त्रों के बारे में। यदि वह ऐसा करती है तो धीरे-धीरे वह उनसे खुल जाती है और हो सकता है, पुरूषों के मन में भी कभी गलत भावना उत्पन्न हो जाए।
अगर बेटी के स्वभाव में खुलापन हो और वह कॉलेज की हर बात घर के पुरूषों से शेयर करती है तो प्रेमपूर्वक उसे बताएं कि किस प्रकार की बातें वह अपने पिता, भाई या अंकल से शेयर कर सकती है लेकिन उसे रोकें नहीं क्योंकि इसे वह प्रतिबंध मान लेगी व भविष्य में कभी आपकी बात नहीं सुनेगी।
घर में जगह की कमी हो तो सोने के सिस्टम को सुधारें। बेटी के सामने पति-पत्नी इकठ्ठे न सोएं व न ही उसे पिता के साथ सोने दें।
हम उम्र भाई-बहनों को अकेला न छोड़ें। टी.वी. या इंटरनेट के समक्ष तो बिल्कुल भी नहीं। सदैव उन पर नजर रखें पर ध्यान रखें कि बेटी को महसूस नहीं होना चाहिए कि आप उसकी जासूसी कर रही हैं।
आपके पति शराब या अन्य किसी भी प्रकार के नशे के आदी हैं तो बेटी को उनके पास कभी अकेले न रहने दें, फिर चाहे दिन हो या रात।
आपको बेटी के प्रति किसी संबंधी की नजरें सही न लगें तो उससे बेटी को दूर ही रखें क्योंकि वह कभी भी आपकी बेटी को कोई प्रलोभन देकर बहका सकता है।
बेटी को पुरूष जाति के खिलाफ भड़काएं नहीं, केवल आत्मसुरक्षा करना ही सिखाएं। कहीं यह न हो कि उसे मेल फोबिया हो जाए और भविष्य में वह किसी भी पुरूष के साथ रिश्ता ही न बना पाए।
उसे सेल्फ डिफेंस कार्यक्रमों में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करें।