अब लाइलाज नहीं एड़ी दर्द

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wertredsa

छरहरा दिखना हर महिला की दिली तमन्ना होती है और वह इसके लिये तरह-तरह के जतन करती है लेकिन इस चक्कर में कुछ महिलाएं ऐसे उपायों का सहारा लेती हैं जो उन्हें ताउम्र के लिए रोगी बना देते हैं।
छरहरा दिखने के लिये महिलाओं में ऊंची एड़ी की सैंडिल एवं जूतियां पहनने का प्रचलन काफी समय से है। मौजूदा समय में फैशन माडलों एवं सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली प्रतियोगियों की देखादेखी ऊंची एड़ी की सैंडिल एवं जूतियां पहनना एक फैशन सा बन गया है। जिन्हें इनकी जरूरत नहीं होती, वे भी इनका इस्तेमाल करती हैं लेकिन ये सैंडिल एवं जूतियां उनके लिए कमर एवं एड़ी में दर्द का सबब बन सकती हैं।
महिलाएं जाने-अनजाने इसका उपयोग करती हैं और जब वे भयानक एड़ी एवं कमर दर्द से परेशान हो जाती हैं तब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है।
जवानी के दिनों में कमर एवं एड़ी दर्द एक हद तक दबा रहता है लेकिन उम्र बढ़ने पर यह समस्या असहनीय हो जाती है। कमर एवं एड़ी दर्द से आमतौर पर कम तथा अधेड़ उम्र की महिलाएं ही अधिक पीडि़त होती हैं।
इसके अलावा गठिया एवं आर्थराइटिस जैसे जोड़ों के रोग होने पर कमर एवं एड़ी दर्द और उग्र हो जाता है। एड़ी एवं कमर दर्द महिलाओं के अलावा पुरुषों में किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन ऊंची एड़ी वाली सैंडिल एवं जूतियां पहनने वाली गठिया या आर्थराइटिस से पीडि़त तथा अधिक वजन एवं अधिक उम्र की महिलाओं में यह समस्या बहुत सामान्य होती है। इस समस्या को चिकित्सकीय शब्दावली में ’पेनफुल हील सिंड्रोम‘ कहा जाता है।
विभिन्न आयु वर्ग के लोगों में एड़ी दर्द के अलग-अलग कारण होते हैं जैसे बच्चों मेें सीवर्स रोग, लिंगामेंट की चोट और पैरों की जन्मजात बीमारी के कारण जबकि किशोरों में काल्फ मांसपेशियों के टेंडन के टूटने, वायरस संक्रमण के कारण होने वाली पैरों के तलवों की बीमारी, फ्रैक्चर और पैरों की हड्डियां टूटने के कारण एड़ी दर्द की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
युवकों में बर्साइटिस और तलवों की गद्दी की बीमारी के कारण जबकि अधेड़ों में पलांटर फेसाइटिस, अधिक कामकाज की वजह से होने वाले फ्रैक्चर और ओस्टियोपोरोसिस के कारण एड़ी दर्द की समस्या होती है। वृद्धों में आस्टियोआर्थराइटिस और रह्युमेटॉयड आर्थराइटिस एड़ी दर्द का कारण हैं। इसके अलावा मधुमेह और पेरिफेरल न्यूराइटिस जैसी तंत्रिकाओं के रोग से पीडि़त व्यक्तियों में भी एड़ी दर्द हो सकता है। अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में खासकर महिलाओं में एड़ी दर्द की समस्या अधिक पायी जाती है। इसका मुख्य कारण भारतीयों में बड़े पैमाने पर आर्थराइटिस का पाया जाना है।
चालीस साल से अधिक उम्र वाली मोटी महिलाओं में एड़ी दर्द का कारण एड़ी की तंतुओं का क्षतिग्रस्त होना है। एड़ी की हड्डी के तले में चर्बी की गद्दी होती है। इसमें कड़े फाइबर्स तंतुओं के बीच में लचीली चर्बी भरी होती है। उम्र बढ़ने पर पूरे शरीर के तंतुओं के साथ-साथ एड़ी की चर्बी की गद्दी भी धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है। धीरे-धीरे एड़ी के फाइबर्स तंतु फटने लगते हैं और चर्बी मुक्त होने लगती है जिससे शरीर का पूरा भार सीधे एड़ी की हड्डी पर पड़ने लगता है और एड़ी में दर्द होने लगता है। एड़ी की चर्बी एड़ी की हड्डी के फ्रैक्चर के कारण भी फट सकती है जिससे एड़ी में दर्द शुरू हो जाता है लेकिन फ्रैक्चर जुड़ने के बाद भी एड़ी दर्द की शिकायत बनी रह सकती है।
एड़ी दर्द को सक्रिय जीवन में बाधा नहीं बनने देने तथा उसे बेकाबू होने से रोकने के लिए सही समय पर उपचार आरंभ कराना आवश्यक है। इसका शीघ्र इलाज शुरू हो जाने पर इस समस्या से पूर्ण छुटकारा पाना संभव है। इलाज शुरू करने से पहले एड़ी दर्द के कारण का पता लगाकर उस कारण को दूर किया जाता है। मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति गठिया के कारण एड़ी दर्द से ग्रस्त है तब गठिया का इलाज करने से एड़ी दर्द दूर हो जाता है।
एड़ी दर्द के इलाज के लिए घरेलू उपायों से लेकर फिजियोथेरेपी ओर सर्जरी जैसे उपायों का सहारा लिया जा सकता है। एड़ी दर्द के इलाज में फिजियोथेरेपी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसकी मदद से एड़ी दर्द काफी हद तक कम हो जाता है और मरीज रोजमर्रा का काम-काज सामान्य तौर पर करने योग्य हो जाता है। फिजियोथेरेपी की मदद से न केवल एड़ी दर्द का बल्कि गठिया और आर्थराइटिस जैसे कारणों का भी इलाज करने में मदद मिलती है।
फिजियोथेरेपी के तहत मरीज की गर्म और ठंडे पानी से सिंकाई की जाती है। मरीज की प्रतिदिन तीन-चार बार गर्म पानी से और फिर एक मिनट ठंडे पानी से सिंकाई की जाती है। इसके अलावा गर्म मोम से सिंकाई की जाती है। एड़ी दर्द में शार्ट वेव डाइथर्मी, अल्ट्रासोनिक थेरेपी और स्ट्रेंथनिंग तथा मोबिलाइजिंग व्यायाम का सहारा लिया जाता है।
मरीज को एड़ी दर्द से छुटकारा पाने के लिये खान-पान का भी परहेज रखना चाहिए। उसे वसा रहित भोजन लेना चाहिये। अधिक तले हुये और मसालेदार भोजन से बचना चाहिए। इसके अलावा अधिक चीनी वाले खाद्य सामग्रियों से भी परहेज करना चाहिये।
घरेलू उपायों और खान-पान की सावधानियों के बावजूद एड़ी दर्द से आराम नहीं मिलने पर और दर्द के गंभीर हो जाने के कारण सुबह जागने पर जोड़ों में जकड़न महसूस हो तो मरीज को तत्काल अस्थि चिकित्सक से संपर्क करना चाहिये। इसके आरंभिक उपचार के तौर पर दर्द निवारक दवाइयां दी जाती हैं।
इसके बावजूद आराम नहीं मिलने पर एड़ी में दर्द वाले स्थान पर स्टेरॉयड के इंजेक्शन दिये जाते हैं। इससे रोगी को पूर्ण आराम मिलता है। कुछ गंभीर मामलों में सर्जरी की मदद लेनी पड़ सकती है।
एड़ी दर्द से बचने हेतु कुछ घरेलू उपचार
ु प्रतिदिन तीन-चार बार दस-दस मिनट तक गर्म पानी से एड़ी की सिंकाई करें।
ु एड़ी में दर्द निवारक मलहम लगायें।
ु एड़ी में चोट लगने पर तुरंत दस मिनट तक बर्फ की मालिश करें।
ु एड़ी और पंजों के जोड़ों तथा मांसपेशियों की कसरत करें।
ु प्रतिदिन नमकयुक्त गर्म पानी में तीन-चार बार पैर चलायें।
ु एड़ी की साधारण तेल से मालिश करें।
ु घर में इस्तेमाल करने वाले चप्पलों और जूतों के एड़ी वाले भाग पर स्पंज का प्रयोग करें।
ु किसी ऊंचे स्थान पर बैठकर पैर लटकाकर पंजे को गोल-गोल घुमाते हुये दस-पन्द्रह बार चलायें।
ु पैर की उंगलियों को पहले अपनी तरफ खींचें और फिर बाहर की तरफ खींचें।
ु पैर की मालिश के लिए पंजे को टेनिस की बॉल पर घुमायें। इससे रक्त संचार बढ़ जाता है और रोगी को आराम मिलता है।
ु एक्युप्रेशर थेरेपिस्ट की मदद से लगातार एक हफ्ते तक पैर पर एक्युप्रेशर कराने से एड़ी में रक्त संचार बढ़ जाता है और एड़ी दर्द से राहत मिलती है।

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