नाग वासुकी जिनके दर्शन के बिना अधूरी होती है प्रयागराज की यात्रा
Focus News 15 February 2025 0
महातीर्थ प्रयागराज में स्थित नागवासुकी देवता का मन्दिर श्रद्धा का परम केन्द्र है। प्रतिवर्ष लाखों भक्तजन यहाँ पहुंचकर नाग देवता का पूजन करते है। प्रयागराज की धरती पर माँ गंगा के आंचल में स्थित यह मन्दिर प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा में दारागंज के उत्तरी छोर पर स्थित है। पौराणिक गाथाओं को अपने आप में समेटे इस मन्दिर की भव्यता बेहद मनमोहक है। माना जाता है कि यहाँ नागवासुकी देवता साक्षात् विराजमान है और प्रयागराज यात्रा का फल इनके दर्शन के बाद ही पूर्ण माना जाता है।
नागदेवता के इस मन्दिर के बारे में अनेक कथायें वर्णित है। दंत कथाओं में भी इनका वर्णन भक्तजन बड़े श्रद्धा भाव से करते है। मान्यता है कि इस स्थान पर नागों के राजा वासुकी विश्राम करते है । समुद्र मंथन के समय समुद्र का मंथन सुमेरु पर्वत पर इन्हें लपेटकर किया गया था। देवताओं व दैत्यों ने इन्हें अलग- अलग हिस्से से पकड़कर समुद्र को मथा था, जिसके फलस्वरूप समुद्र से अनेक रत्नों सहित अमृत की प्राप्ति हुई थी। इस मंथन में मंथन की गति से घायल नागराज ने माँ गंगा में डुबकी लगाकर अपनी पीड़ा से शान्ति पायी और प्रयागराज की इस नगरी को भगवान विष्णु के कहने पर अपना बसेरा बनाया।
कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था, तो वह अति चर्चित नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था। जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया, तो अचानक दूध की धार निकली और उसके चेहरे के ऊपर पड़ने लगी। इस दुग्ध धारा का वेग इतना प्रबल था कि औरंगज़ेब वहीं बेहोश हो गया।
नागपंचमी, श्रावण मास व शिवरात्रि सहित तमाम पर्वो पर यहाँ विशेष रौनक छायी रहती है। इनके दर्शन का फल बड़ा अभीष्ट माना गया है । कालसर्प दोष का निवारण यहाँ के दर्शन मात्र से हो जाता है। संकट निवारण व भयानक बाधाओं से मुक्ति के लिए भी इनकी पूजा की जाती है। महाकुम्भ के दौरान इन दिनों लाखों करोड़ों भक्तजन यहाँ दर्शनों को पहुंच रहे है।
सनातन धर्म में वासुकी नाग को भगवान शिव के गले का हार भी माना जाता है । शेषनाग के भाई के रूप में भी इन्हें पूजा जाता है। ये अलौकिक सिद्धियों के स्वामी कहे जाते है। कहा जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण को वासुदेव डलिया में रखकर यमुना पार कर रहे थे तो वासुकी ने ही यमुना के प्रचंड जलावेग से उनकी रक्षा की। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की महिमा में भी वासुकीनाग की गाथाएं कही जाती हैं।
वासुकी नाग देवता के बारे में यह भी वर्णन मिलता है ये महर्षि कश्यप के पुत्र थे। इनका जन्म माता कद्रु के गर्भ से हुआ था। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनके पुत्र आस्तीक भी परम प्रतापी नाग देवताओं में एक है जिन्होंने जनमेजय के नागयज्ञ के समय नागों की रक्षा की थी। पाँच फन वाले वासुकी देवता के भारत भूमि में अनेक मन्दिर है जिनमें प्रयागराज के मन्दिर का विशेष महत्व है। इनके मन्त्र का जाप सुरक्षा एवं शक्ति का प्रतीक माना गया है जो इस प्रकार है – ‘
*तन्नो वासुक प्रचोदयात ओ सर्प राजय विद्महे, पद्म हस्तय धीमहि तन्नो वासुकी प्रचोदयात*
नौ नागों के स्मरण में भी इनकी स्तुति की जाती है। अनंत नाग, वासुकि नाग, शेषनाग, पद्यनाभ नाग, कंबल नाग, शंखपाल नाग, धार्तराष्ट्र नाग, तक्षक नाग और कालिया नाग इन नौ नागों के नामों में भी इनकी वंदना है।
प्रयागराज में स्थित वासुकी नाग देवता का भवन बड़ा ही भव्य है। मन्दिर की बनावट प्राचीन शैली का शानदार रूप है। गर्भगृह में विराजमान इनकी मूर्ति के दर्शन महापातकों के नाश करते है। गर्भगृह में भगवान वासुकी की काले पत्थर की मूर्ति है,जिनके पाँच फन और चार कुंडल हैं। मंदिर में भगवान शिव, भगवान गणेश, माता पार्वती और गंगा पुत्र भीष्म पितामह सहित अनेक देवी देवताओं के विग्रह सुशोभित हैं।