नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि भीड़ द्वारा पीटकर हत्या किए जाने के मामलों का दिल्ली में बैठकर सूक्ष्म प्रबंधन करना संभव नहीं है। इसके साथ ही इसने मामले से संबंधित चिंताओं, विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ कथित गौरक्षकों से जुड़ी चिंताओं को उठाने वाली एक जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें भीड़ हिंसा और गौरक्षा के नाम पर होने वाले अपराधों से निपटने के लिए ‘‘निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय’’ के संबंध में कई निर्देश पारित किए गए थे।
पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा, ‘‘हालांकि, यहां दिल्ली में बैठकर हम देश के विभिन्न राज्यों के विभिन्न इलाकों में होने वाली घटनाओं की निगरानी नहीं कर सकते। हमारे विचार में, इस अदालत द्वारा ऐसा सूक्ष्म प्रबंधन संभव नहीं होगा।’’
न्यायालय एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें राज्यों को 2018 के फैसले के अनुरूप तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था, ताकि पीटकर मार डालने और भीड़ हिंसा, विशेषकर कथित गौरक्षकों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ ऐसी घटनाओं से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।
इसने कहा कि अधिकारी 2018 के फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘जब इस अदालत द्वारा निर्देश जारी किए जाते हैं, तो वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के मद्देनजर देश के सभी अधिकारियों और अदालतों पर बाध्यकारी होते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने ऐसे मामलों में पीड़ितों को निवारण प्रदान करने और 2018 के फैसले में उल्लिखित दंडात्मक एवं उपचारात्मक उपायों का कड़ाई से अनुपालन करने के आग्रह पर भी विचार किया।
इसने कहा कि यदि शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों का कोई अनुपालन नहीं होता है, तो पीड़ित व्यक्ति के लिए उपाय उपलब्ध हैं और वह सक्षम अदालतों से संपर्क कर सकता है।
संबंधित हिंसा के पीड़ितों को पहुंचने वाली चोटों के लिए मुआवजे के रूप में न्यूनतम एक समान राशि प्रदान करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने के एक अन्य आग्रह पर अदालत ने कहा, ‘‘फिर से, पर्याप्त और उचित मुआवजा क्या हो सकता है, यह हर मामले में अलग-अलग होगा।’’
पीठ ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर ऐसी घटनाओं में किसी व्यक्ति को साधारण चोट लगती है और किसी अन्य को गंभीर चोट लगती है, तो एक समान मुआवजा देने का निर्देश अन्यायपूर्ण होगा।
इसने कहा कि ऐसी सर्वव्यापी राहत की मांग करने वाली याचिका पीड़ितों के हित में नहीं होगी।
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 2018 के फैसले का जिक्र किया और कहा कि शीर्ष अदालत ने विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए थे।
उन्होंने कहा, ‘‘अब नयी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत भीड़ द्वारा पीटकर हत्या किए जाने की घटना एक अलग अपराध के रूप में वर्गीकृत है।’’