
हाल ही में अमेरिका ने सैनिक विमान से अवैध भारतीय प्रवासियों को भारत वापस भेज दिया। पाठकों को जानकारी देता चलूं कि अमेरिका से निर्वासित किए गए 104 अवैध प्रवासी भारतीयों को लेकर अमेरिकी सेना का सी-17 विमान 5 फरवरी 2025 को अमृतसर के श्री गुरु रामदास इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा। यह बहुत ही दुखद है कि अमेरिका सेना की देखरेख में इन सभी प्रवासियों को हथकड़ी लगाकर भेजा गया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारतीयों को हथकड़ी लगाए जाने और अपमानित किए जाने की तस्वीरें देखकर हर किसी को दुख होता है। अमेरिका एक तरफ तो भारत को अपना दोस्त कहता है, प्रगाढ़ संबंधों का हवाला देता है और दूसरी तरफ वह कभी भारतीय राजनयिक के कपड़े उतारकर तलाशी लेता है तो कभी अप्रवासियों भारतीयों के साथ अपमानित किए जाने के व्यवहार करता है। गौरतलब है कि दिसंबर 2013 में अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को हथकड़ी लगाई गई थी और उनके कपड़े उतारकर तलाशी ली गई थी। उस दौरान विदेश सचिव सुजाता सिंह ने अमेरिकी राजदूत नैन्सी पॉवेल के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया था। यह बहुत ही दुखद है कि ट्रंप प्रशासन भारतीयों के साथ ऐसे दुर्व्यवहार कर रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस, सुपर स्टार शाहरुख खान, मंत्री आजम खान, योग गुरु बाबा रामदेव और भारतीय गोल्फर जीव मिल्खा सिंह के कोच कोट अमरितिंदर सिंह के साथ भी अमेरिका में बदसलूकी की गई थी। बात जार्ज फर्नांडिस की करें तो अमेरिका के एक एयरपोर्ट पर तलाशी के दौरान उनके भी कपड़े उतरवाए गये थे। गौरतलब है कि पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस की 2002 और 2003 में वाशिंगटन के डलेस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दो बार कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई थी और उन्होंने गुस्से में तत्कालीन विदेश उप-सचिव स्ट्रोब टैलबोट को इस घटना के बारे में बताया था।
हाल फिलहाल, जिन प्रवासियों को भारत भेजा गया है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें गुजरात के 33, हरियाणा के 34, पंजाब के 30, महाराष्ट्र के तीन, उत्तर प्रदेश-चंडीगढ़ के 2-2 लोग शामिल बताए जा रहे हैं। यहां तक कि इनमें आठ से दस साल के कुछ बच्चे भी शामिल हैं। गौरतलब है कि अमेरिका ने 205 लोगों की लिस्ट जारी की थी लेकिन हाल फिलहाल 104 लोगों को ही भारत भेजा गया है। बाकी के लोग कब आएंगे, इस पर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है। उल्लेखनीय है कि इन सभी भारतीयों को कस्टम व इमीग्रेशन से क्लीयरेंस के बाद पंजाब पुलिस को सौंप दिया गया है और इसके बाद उन्हें घर भेजने की प्रक्रिया शुरू की गई। उल्लेखनीय है कि अमेरिका से निर्वासित भारतीय प्रवासियों का यह पहला जत्था है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह कार्रवाई ऐसे समय की है, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 फरवरी को दो दिन की यात्रा पर अमेरिका जाने वाले हैं। जानकारी के अनुसार 13 फरवरी को पीएम नरेंद्र मोदी की डोनाल्ड ट्रम्प के साथ वार्ता प्रस्तावित है। अमेरिका हर बात में दादागिरी दिखा रहा है। कभी अमेरिका पड़ौसी देशों को टैरिफ वॉर का डर दिखाता है तो कभी अप्रवासियों को निष्कासित करता है।
मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की अनुमानित संख्या कम से कम 7.25 लाख है जो अवैध रूप से अमेरिका में हैं। जानकारी के अनुसार मैक्सिको और साल्वाडोर के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है। दरअसल, अमेरिका अपने वहां बसे अवैध अप्रवासियों को उनके संबंधित देशों में वापस भिजवा रहा है ताकि अमेरिका की समृद्धि का लाभ मूल अमरीकी ही उठा सकें। जानकारी के अनुसार छोटे देशों ग्वाटेमाला, होंडुरास, इक्वाडोर और पेरू के अवैध प्रवासियों को अमेरिका द्वारा पहले ही डिपोर्ट करना शुरू कर दिया गया था लेकिन अब भारत पांचवां देश है जिससे संबंधित प्रवासियों को डिपोर्ट किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका पहली बार अप्रवासियों को लेकर ऐसी कार्रवाई कर रहा है। पिछले साल भी एक चार्टर्ड विमान के जरिए करीब 1,100 भारतीयों को वापस भेजा गया था लेकिन उस समय कोई हंगामा और शोर-शराबा नहीं किया गया था जो कि इस बार हो रहा है। गौरतलब है कि अप्रैल 2023 में भी अमेरिका में करीब ऐसे 90 हजार भारतीयों को गिरफ्तार किया गया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि अमेरिका ने हाल फिलहाल भारतीयों की वापसी की जो प्रक्रिया अपनाई है, वह अमेरिका जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश से विशेषकर मानवीय और सम्माननीय दृष्टिकोण से तो बिलकुल भी अपेक्षित नहीं थी।
ट्रंप ही नहीं, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों के समय में भी ऐसा होता रहा है, जब बाहर के लोगों को वापस उनके देश भेजा गया है लेकिन इस तरीके(हथकड़ी लगाकर) से घोषित तौर पर अवैध भारतीय प्रवासियों को अमेरिका से निकाल देने का बकायदा अभियान ट्रम्प शासन में ही चलाया जा रहा है। और तो और, इन अवैध प्रवासियों में उन लोगों को भी शामिल किया जा रहा है, जिनका वर्क वीजा समाप्त हो गया है। उनके वर्क वीजा का नवीनीकरण नहीं करके उन्हें अवैध घोषित किया गया है। वास्तव में अमेरिका को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका को भारतीय कामगारों की हमेशा जरूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, क्यों कि भारतीयों से योग्य कामगार अमेरिका में आज उपलब्ध नहीं हैं और भारतीयों का तकनीकी व कौशल ज्ञान दूसरे देशों के अप्रवासी नागरिकों से अधिक होने के साथ ही साथ भारतीय कामगार अधिक पढ़ें-लिखे व योग्य भी हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि किसी अमेरिका ने भारतीयों को वापस भेजकर कहीं न कहीं अपनी अमानवीयता और दादागिरी का ही परिचय दिया है। कहना चाहूंगा कि डोनाल्ड ट्रम्प का भी यह बहुत ही अजब रवैया है कि वे अवैध प्रवासियों को अपराधियों की श्रेणी में डालते हैं।
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि कोलंबिया और मैक्सिको के विपरीत भारत ने अपने नागरिकों को वापस भेजने के अमेरिकी फैसले पर ना तो कोई हंगामा किया है और ना ही कोई विरोध। सच तो यह है कि भारतीयों की वापसी की प्रक्रिया तय नियमों के तहत हुई है। गौरतलब है कि पहले चरण में 5 हजार अवैध प्रवासियों को उनके देशों में भेजा जा रहा है। आने वाले दिनों में हवाई जहाज के जरिए ही अन्य भारतीय प्रवासियों को भी लाने की बातें कहीं जा रहीं हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अमेरिका में विभिन्न देशों से आए करीब डेढ़ करोड़ प्रवासी अवैध रूप से रहते हैं। ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि इनमें भारतीयों की संख्या करीब सवा सात लाख बताई गई है। प्रारंभ में करीब 18 हजार भारतीयों की सूची तैयार की गई हैं। बहरहाल, यह ठीक है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान अवैध अप्रवासन को बड़ा मुद्दा बनाया था और इसे रोकने का अमेरिकी लोगों से वायदा किया था, लेकिन इस प्रकार से भारतीयों को यकायक वापस भेजना हर किसी को आश्चर्य में डालता है।
पाठक जानते हैं कि ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद एक के बाद कई ऐसे फैसले लिए हैं जिससे पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है। फिर चाहे वो मुद्दा मेक्सिको, कनाडा या चीन पर टैरिफ बढ़ाने का हो या ग्रीनलैंड को अधिकार में लेने का हो या मैक्सिको खाड़ी का नाम बदलने का हो या पनामा नहर पर नियंत्रण का हो या विदेशों को दी जाने वाली मदद रोकने से जुड़े फैसले हों। यद्यपि कुछ फैसलों पर अदालत ने रोक भी लगा दी है लेकिन ट्रंप प्रशासन लगातार अपनी मनमर्जी पर उतारू है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि लॉस एंजिलिस में आज अप्रवासियों की गिरफ्तारियों और उनके निर्वासन के खिलाफ लगातार विरोध-प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं। वास्तव में, अवैध घुसपैठ का मुद्दा सिर्फ और सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कनाडा और यूरोपीय देशों में भी अवैध घुसपैठ हो रही है। वहां भी अवैध प्रवासन के विरोध में आवाजें उठ रहीं हैं। बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि आज विदेशों में भी जिनमें अमेरिका भी शामिल है, कुछ एजेंट्स अवैध घुसपैठ को लेकर लगातार सक्रिय हैं, जो युवाओं को बेहतर रोजगार, शिक्षा और लुभावने सपने दिखाकर उनसे लाखों रूपए ऐंठ लेते हैं और उन्हें जोखिम भरे डंकी रूट्स के जरिए अमेरिका एवं अन्य यूरोपीय देशों में अवैध घुसपैठ कराते हैं।
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि डंकी रूट से यहां तात्पर्य है-‘गैरकानूनी तरीके से विदेश जाने का रास्ता।’ वास्तव में, इसमें लोग कई देशों से होते हुए गैर-कानूनी रूप से अमेरिका, कनाडा या यूरोप में घुसने की कोशिश करते हैं। ये लोग टूरिस्ट वीजा या एजेंट्स की मदद से लैटिन अमेरिका के किसी देश जैसे कि ब्राजील, इक्वाडोर, पनामा, या मैक्सिको तक पहुंचते हैं। ऐसे में सरकार को यह चाहिए कि वह ऐसे तत्वों(एजेंट्स) के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। बहरहाल, यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत विश्व का एक ऐसा देश रहा है जिसने कभी भी अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस लेने से इंकार नहीं किया। भारत ऐसे लोगों की वापसी और उनके रहने-ठहरने की व्यवस्था करता रहा हैं और वर्तमान में भी कर रहा है। यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि अमेरिका, भारत से कई हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सच तो यह है कि अमेरिका द्वारा खदेड़े गए प्रवासियों में भारत के लोग ही सबसे अधिक दूरी वाले हैं। यह बहुत दुखद है कि बावजूद इसके भी अमेरिका द्वारा भारतीयों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई गई।
कहना चाहूंगा कि हर साल भारत से लाखों रूपए खर्च करके लोग अमेरिका पहुंचते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग अच्छे रोजगार व शिक्षा के लिए कर्ज लेकर विदेश (अमेरिका)जाते हैं। ऐसे में उन लोगों के सपने चकनाचूर हो गये हैं जो अमेरिका से वापस भारत भेजे गए हैं। वास्तव में, अमेरिका को इस संबंध में सहानूभूति व मानवीयता का परिचय देना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इससे निश्चित ही दोनों देशों के संबंधों पर भी कहीं न कहीं असर पड़ना स्वाभाविक ही है। बहरहाल, अमेरिका द्वारा 100 से अधिक भारतीय नागरिकों को निर्वासित किये जाने के मुद्दे पर हमारे यहां लोकसभा और राज्यसभा में भी हंगामा हुआ, जिससे सदन की कार्रवाई तक को स्थगित करना पड़ा।इधर, इस मामले पर लगातार राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही है, जो कि ठीक नहीं ठहराई जा सकती है।
यह ठीक है कि अमेरिका सरकार के इस रवैये से कोई भी खुश नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह तो कतई नहीं है कि इस मुद्दे पर तुच्छ व गंदी राजनीति की जाए। यह समय समस्या पर मंथन करने का है न कि राजनीति करने का।कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध अच्छे रहे हैं, लेकिन उन्होंने जिस तरीके से 100 से ज्यादा भारतीयों को मिलिट्री प्लेन से भेजा है, वो पूरी तरह से अमानवीय है। हमारे विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री को इस पर दमदार तरीके से अपनी बात व पक्ष रखना चाहिए। आने वाली 12 फरवरी को हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिन की यात्रा पर अमेरिका जा रहे हैं। उम्मीद की जा सकती है कि 13 फरवरी को वे इस संबंध में ट्रम्प से बातचीत करेंगे और इस समस्या का कोई न कोई उचित हल अवश्य निकलेगा व दोनों देशों के संबंध में पहले जैसी प्रगाढ़ता बनी रहेगी।
हाल फिलहाल, जिन प्रवासियों को भारत भेजा गया है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें गुजरात के 33, हरियाणा के 34, पंजाब के 30, महाराष्ट्र के तीन, उत्तर प्रदेश-चंडीगढ़ के 2-2 लोग शामिल बताए जा रहे हैं। यहां तक कि इनमें आठ से दस साल के कुछ बच्चे भी शामिल हैं। गौरतलब है कि अमेरिका ने 205 लोगों की लिस्ट जारी की थी लेकिन हाल फिलहाल 104 लोगों को ही भारत भेजा गया है। बाकी के लोग कब आएंगे, इस पर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है। उल्लेखनीय है कि इन सभी भारतीयों को कस्टम व इमीग्रेशन से क्लीयरेंस के बाद पंजाब पुलिस को सौंप दिया गया है और इसके बाद उन्हें घर भेजने की प्रक्रिया शुरू की गई। उल्लेखनीय है कि अमेरिका से निर्वासित भारतीय प्रवासियों का यह पहला जत्था है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह कार्रवाई ऐसे समय की है, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 फरवरी को दो दिन की यात्रा पर अमेरिका जाने वाले हैं। जानकारी के अनुसार 13 फरवरी को पीएम नरेंद्र मोदी की डोनाल्ड ट्रम्प के साथ वार्ता प्रस्तावित है। अमेरिका हर बात में दादागिरी दिखा रहा है। कभी अमेरिका पड़ौसी देशों को टैरिफ वॉर का डर दिखाता है तो कभी अप्रवासियों को निष्कासित करता है।
मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की अनुमानित संख्या कम से कम 7.25 लाख है जो अवैध रूप से अमेरिका में हैं। जानकारी के अनुसार मैक्सिको और साल्वाडोर के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है। दरअसल, अमेरिका अपने वहां बसे अवैध अप्रवासियों को उनके संबंधित देशों में वापस भिजवा रहा है ताकि अमेरिका की समृद्धि का लाभ मूल अमरीकी ही उठा सकें। जानकारी के अनुसार छोटे देशों ग्वाटेमाला, होंडुरास, इक्वाडोर और पेरू के अवैध प्रवासियों को अमेरिका द्वारा पहले ही डिपोर्ट करना शुरू कर दिया गया था लेकिन अब भारत पांचवां देश है जिससे संबंधित प्रवासियों को डिपोर्ट किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका पहली बार अप्रवासियों को लेकर ऐसी कार्रवाई कर रहा है। पिछले साल भी एक चार्टर्ड विमान के जरिए करीब 1,100 भारतीयों को वापस भेजा गया था लेकिन उस समय कोई हंगामा और शोर-शराबा नहीं किया गया था जो कि इस बार हो रहा है। गौरतलब है कि अप्रैल 2023 में भी अमेरिका में करीब ऐसे 90 हजार भारतीयों को गिरफ्तार किया गया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि अमेरिका ने हाल फिलहाल भारतीयों की वापसी की जो प्रक्रिया अपनाई है, वह अमेरिका जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश से विशेषकर मानवीय और सम्माननीय दृष्टिकोण से तो बिलकुल भी अपेक्षित नहीं थी।
ट्रंप ही नहीं, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों के समय में भी ऐसा होता रहा है, जब बाहर के लोगों को वापस उनके देश भेजा गया है लेकिन इस तरीके(हथकड़ी लगाकर) से घोषित तौर पर अवैध भारतीय प्रवासियों को अमेरिका से निकाल देने का बकायदा अभियान ट्रम्प शासन में ही चलाया जा रहा है। और तो और, इन अवैध प्रवासियों में उन लोगों को भी शामिल किया जा रहा है, जिनका वर्क वीजा समाप्त हो गया है। उनके वर्क वीजा का नवीनीकरण नहीं करके उन्हें अवैध घोषित किया गया है। वास्तव में अमेरिका को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका को भारतीय कामगारों की हमेशा जरूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, क्यों कि भारतीयों से योग्य कामगार अमेरिका में आज उपलब्ध नहीं हैं और भारतीयों का तकनीकी व कौशल ज्ञान दूसरे देशों के अप्रवासी नागरिकों से अधिक होने के साथ ही साथ भारतीय कामगार अधिक पढ़ें-लिखे व योग्य भी हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि किसी अमेरिका ने भारतीयों को वापस भेजकर कहीं न कहीं अपनी अमानवीयता और दादागिरी का ही परिचय दिया है। कहना चाहूंगा कि डोनाल्ड ट्रम्प का भी यह बहुत ही अजब रवैया है कि वे अवैध प्रवासियों को अपराधियों की श्रेणी में डालते हैं।
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि कोलंबिया और मैक्सिको के विपरीत भारत ने अपने नागरिकों को वापस भेजने के अमेरिकी फैसले पर ना तो कोई हंगामा किया है और ना ही कोई विरोध। सच तो यह है कि भारतीयों की वापसी की प्रक्रिया तय नियमों के तहत हुई है। गौरतलब है कि पहले चरण में 5 हजार अवैध प्रवासियों को उनके देशों में भेजा जा रहा है। आने वाले दिनों में हवाई जहाज के जरिए ही अन्य भारतीय प्रवासियों को भी लाने की बातें कहीं जा रहीं हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अमेरिका में विभिन्न देशों से आए करीब डेढ़ करोड़ प्रवासी अवैध रूप से रहते हैं। ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि इनमें भारतीयों की संख्या करीब सवा सात लाख बताई गई है। प्रारंभ में करीब 18 हजार भारतीयों की सूची तैयार की गई हैं। बहरहाल, यह ठीक है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान अवैध अप्रवासन को बड़ा मुद्दा बनाया था और इसे रोकने का अमेरिकी लोगों से वायदा किया था, लेकिन इस प्रकार से भारतीयों को यकायक वापस भेजना हर किसी को आश्चर्य में डालता है।
पाठक जानते हैं कि ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद एक के बाद कई ऐसे फैसले लिए हैं जिससे पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है। फिर चाहे वो मुद्दा मेक्सिको, कनाडा या चीन पर टैरिफ बढ़ाने का हो या ग्रीनलैंड को अधिकार में लेने का हो या मैक्सिको खाड़ी का नाम बदलने का हो या पनामा नहर पर नियंत्रण का हो या विदेशों को दी जाने वाली मदद रोकने से जुड़े फैसले हों। यद्यपि कुछ फैसलों पर अदालत ने रोक भी लगा दी है लेकिन ट्रंप प्रशासन लगातार अपनी मनमर्जी पर उतारू है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि लॉस एंजिलिस में आज अप्रवासियों की गिरफ्तारियों और उनके निर्वासन के खिलाफ लगातार विरोध-प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं। वास्तव में, अवैध घुसपैठ का मुद्दा सिर्फ और सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कनाडा और यूरोपीय देशों में भी अवैध घुसपैठ हो रही है। वहां भी अवैध प्रवासन के विरोध में आवाजें उठ रहीं हैं। बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि आज विदेशों में भी जिनमें अमेरिका भी शामिल है, कुछ एजेंट्स अवैध घुसपैठ को लेकर लगातार सक्रिय हैं, जो युवाओं को बेहतर रोजगार, शिक्षा और लुभावने सपने दिखाकर उनसे लाखों रूपए ऐंठ लेते हैं और उन्हें जोखिम भरे डंकी रूट्स के जरिए अमेरिका एवं अन्य यूरोपीय देशों में अवैध घुसपैठ कराते हैं।
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि डंकी रूट से यहां तात्पर्य है-‘गैरकानूनी तरीके से विदेश जाने का रास्ता।’ वास्तव में, इसमें लोग कई देशों से होते हुए गैर-कानूनी रूप से अमेरिका, कनाडा या यूरोप में घुसने की कोशिश करते हैं। ये लोग टूरिस्ट वीजा या एजेंट्स की मदद से लैटिन अमेरिका के किसी देश जैसे कि ब्राजील, इक्वाडोर, पनामा, या मैक्सिको तक पहुंचते हैं। ऐसे में सरकार को यह चाहिए कि वह ऐसे तत्वों(एजेंट्स) के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। बहरहाल, यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत विश्व का एक ऐसा देश रहा है जिसने कभी भी अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस लेने से इंकार नहीं किया। भारत ऐसे लोगों की वापसी और उनके रहने-ठहरने की व्यवस्था करता रहा हैं और वर्तमान में भी कर रहा है। यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि अमेरिका, भारत से कई हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सच तो यह है कि अमेरिका द्वारा खदेड़े गए प्रवासियों में भारत के लोग ही सबसे अधिक दूरी वाले हैं। यह बहुत दुखद है कि बावजूद इसके भी अमेरिका द्वारा भारतीयों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई गई।
कहना चाहूंगा कि हर साल भारत से लाखों रूपए खर्च करके लोग अमेरिका पहुंचते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग अच्छे रोजगार व शिक्षा के लिए कर्ज लेकर विदेश (अमेरिका)जाते हैं। ऐसे में उन लोगों के सपने चकनाचूर हो गये हैं जो अमेरिका से वापस भारत भेजे गए हैं। वास्तव में, अमेरिका को इस संबंध में सहानूभूति व मानवीयता का परिचय देना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इससे निश्चित ही दोनों देशों के संबंधों पर भी कहीं न कहीं असर पड़ना स्वाभाविक ही है। बहरहाल, अमेरिका द्वारा 100 से अधिक भारतीय नागरिकों को निर्वासित किये जाने के मुद्दे पर हमारे यहां लोकसभा और राज्यसभा में भी हंगामा हुआ, जिससे सदन की कार्रवाई तक को स्थगित करना पड़ा।इधर, इस मामले पर लगातार राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही है, जो कि ठीक नहीं ठहराई जा सकती है।
यह ठीक है कि अमेरिका सरकार के इस रवैये से कोई भी खुश नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह तो कतई नहीं है कि इस मुद्दे पर तुच्छ व गंदी राजनीति की जाए। यह समय समस्या पर मंथन करने का है न कि राजनीति करने का।कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध अच्छे रहे हैं, लेकिन उन्होंने जिस तरीके से 100 से ज्यादा भारतीयों को मिलिट्री प्लेन से भेजा है, वो पूरी तरह से अमानवीय है। हमारे विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री को इस पर दमदार तरीके से अपनी बात व पक्ष रखना चाहिए। आने वाली 12 फरवरी को हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिन की यात्रा पर अमेरिका जा रहे हैं। उम्मीद की जा सकती है कि 13 फरवरी को वे इस संबंध में ट्रम्प से बातचीत करेंगे और इस समस्या का कोई न कोई उचित हल अवश्य निकलेगा व दोनों देशों के संबंध में पहले जैसी प्रगाढ़ता बनी रहेगी।