अलवर (राजस्थान), 26 फरवरी (भाषा) भारत के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने बुधवार को कहा कि वैश्विक स्तर पर अस्थिरता ने दुनिया के व्यापार को खंडित कर दिया है, ऐसे में भारत के पास इस खालीपन का लाभ उठाते हुए स्वच्छ प्रौद्यागिकी विनिर्माण और आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने की दिशा में काम करने का बड़ा अवसर है।
उन्होंने यहां सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के वार्षिक अनिल अग्रवाल संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत के पास बैटरी विनिर्माण, इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया उत्पादन और पर्यावरण अनुकूल अन्य उद्योगों में अपना दबदबा कायम करने की क्षमता है।
कांत ने कहा, ‘‘यूरोप में 1,000 दिन से अधिक से युद्ध चल रहा है। इसलिए, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो स्थिरता बनी थी, समाप्त होती दिख रही है। और आपके पास दुनियाभर में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं टूट गई हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जो कुछ भी हो रहा है, मेरा निजी तौर पर मानना है कि यह भारत के लिए एक बहुत बड़ा अवसर है, क्योंकि इन सबसे एक खालीपन उत्पन्न हुआ है।’’
कांत ने कहा कि जब डोनाल्ड ट्रंप (पहली बार 2016 में) पेरिस समझौते से बाहर निकले, तो चीन ने कदम बढ़ाया और अब दुनिया के 80 प्रतिशत महत्वपूर्ण खनिजों पर उसका नियंत्रण है।
कांत ने कहा कि उसी प्रकार एक खालीपन उभर रहा है और भारत को स्वच्छ तकनीक विनिर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
उन्होंने आगाह किया, ‘‘यह भारत के लिए बैटरी विनिर्माण करने का एक बड़ा अवसर है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो हम चीन से सामान आयात करने वाला एक क्षेत्र बन जाएंगे और सभी स्वच्छ तकनीक विनिर्माण में हमारा आयात बहुत बड़ा हो जाएगा। आज तेल के मामले में जो हमारी हिस्सेदारी है, उससे कहीं अधिक हो जाएगी।’’
कांत ने भारतीय शहरों में नगरपालिका प्रशासन की खराब स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इससे प्रदूषण और कुप्रबंधन बढ़ गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर भारत के 42 शहर दुनिया के 50 सबसे खराब प्रदूषण वाले शहरों में से हैं, तो यह नगरपालिका की बड़ी विफलता है। इसका वित्त से कोई लेना-देना नहीं है। इसका केंद्र सरकार से कोई लेना-देना नहीं है।’’
कांत ने यह भी कहा कि बर्बादी रोकने के लिए भारत में पानी और बिजली की कीमत उचित होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि पानी की कीमत तय करने की जरूरत है क्योंकि दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी वाले भारत के पास सिर्फ चार प्रतिशत पानी है। दूसरा, 90 प्रतिशत पानी की खपत कृषि में होती है। इसका मतलब है कि चावल और गन्ना आपका सारा पानी खा रहे हैं। और हम वास्तव में बासमती चावल के नाम पर एक तरह से पानी का निर्यात कर रहे हैं।’’
कांत ने कहा कि मुफ्त बिजली ने भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को बढ़ावा दिया है। जो लोग कम उपभोग करते हैं उन्हें कम भुगतान करना चाहिए, और जो अधिक उपयोग करते हैं उन्हें अधिक अधिक भुगतान करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसी तरह से सिंगापुर ने खुद को बदला है। सिंगापुर ने शासन और आर्थिक सुधारों पर काम किया और आज उसकी प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 90,000 डॉलर है जो 1965 में 600 अमेरिकी डॉलर थी।